असंभव कुछ भी नहीं (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु 13-May-2024
असंभव कुछ भी नहीं स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु
वास्तव में दुनिया में असंभव जैसे कोई चीज़ है ही नहीं । असंभव हम बनाते हैं, हम पैदा करते हैं। वास्तव में हमारे मन के नकारात्मक विचार ही हमारे लिए किसी कार्य को असंभव बनाते हैं। जब हम किसी भी कार्य के लिए सोच लेते हैं कि यह कार्य तो हमसे हो ही नहीं सकता तभी वह कार्य हमारे लिए असंभव हो जाता है। इतिहास गवाह है की फ़तह उसने ही किया है जिसे दुनिया तो कमज़ोर समझी है किंतु उसने स्वयं से स्वयं को कभी कमज़ोर नहीं समझा और अपने सकारात्मक विचारों को पुष्पित- पल्लवित करते हुए दृढ़ प्रतिज्ञ हो किसी भी काम को करने में अपना पूरा तन, मन,धन लगाकर नियत कार्य को किया,जिसका परिणाम दुनिया आँखें फाड़- फाड़ के देखती रही। इसलिए कहा जाता है जो वास्तव में विद्वान और बुद्धिमान होते हैं वो तैयारी तो ऐसे करते हैं कि बगल वाले को भी आवाज़ नहीं होता है किंतु परिणाम ऐसा होता है की पूरी दुनिया में डंका बज जाता है।
जैसे थॉमस अल्वा एडीसन, बोपदेव, सावित्रीबाई फुले, मैडम भीकाजी कामा, अब्दुल कलाम,एकलव्य आदि ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने अपने शब्दकोश से असंभव जैसे शब्द को निकाल फेंका तभी आज वो पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
सार रूप में हम यही कह सकते हैं हम मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति हैं अतः हमारे शब्दकोश में असंभव जैसे शब्द को स्थान नहीं मिलना चाहिए। असंभव शब्द आलसी, कामचोर तथा नकारात्मक विचारों वाले व्यक्तियों को ही शोभा देता है। यदि हम इस तरह के नाकारात्मक विचारों से ग्रसित हैं और हम उसे परिवर्तित करना चाहते हैं तो इसके लिए आवश्यक है त्याग ,तपस्या, बलिदान, दृढ़ प्रतिज्ञ, समय का नियोजन व सदुपयोग और सकारात्मक विचारों से स्वयं को लवरेज करें। यदि हम समय रहते इन गुणों को स्वयं में समाहित कर लिये कुछ भी असंभव नहीं होगा।
साधना शाही, वाराणसी
kashish
13-May-2024 12:13 PM
V nice
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