घर में खुशियांँ(कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु 15-May-2024
दैनिक सृजन दिनांक 15,05,2024 दिवस- बुधवार विधा- बाल कहानी प्रकरण- घर में खुशियांँ स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु
प्रौद्योगिकी में मास्टर करके अच्छी खासी नौकरी कर रहा था एक दिन वह प्रातः काल अपने घर के बाहर उपवन में उदास बैठा हुआ था, तभी उसके यहांँ स्कूल के एक शिक्षक घूमते हुए आए। सुयश को उदास देखकर गुरुजी ने उससे उसकी उदासी का कारण पूछा। तब सुयश ने कहा, गुरुजी मैंने प्रौद्योगिकी में स्नातक, मास्टर सब कुछ कर लिया अच्छी-खासी नौकरी भी कर रहा हूंँ, घर- परिवार सब कुछ ठीक से चल रहा है इसके बावजूद मेरा मन सदैव खिन्न रहता है। मुझे समझ में नहीं आता कि मैं ख़ुश क्यों नहीं रहता हूंँ।
तब गुरु जी ने बताया, बेटा तुमने अपनी पढ़ाई-लिखाई, सब कुछ कर लिया, अच्छी खासी नौकरी कर रहे हो, घर- परिवार चला रहे हो, अपनी ज़िम्मेदारियों का वहन कर रहे हो। किंतु जो तुम्हारी मुख्य ज़िम्मेदारी थी उसे तुम अभी भी पूरा नहीं कर पाए हो, शायद इसीलिए तुम्हारा मन उदास और खिन्न रहता है।
सुयश ने पूछा, कौन सी ज़िम्मेदारी गुरुजी? मैं तो अपने सभी जिम्मेदारियों का वहन बख़ूबी कर रहा हूंँ।
तब गुरु जी ने सुरेश को उसके बचपन की बातों को याद दिलाते हुए कहा, सुयश बचपन में तुम्हारे मांँ-बाप ने तुम्हें पढ़ाने- लिखाने के लिए बहुत कष्ट झेले। लोगों से क़र्ज़ लिये, लोगों के घर में काम किये, अपना जेवर बेचे, लोगों की खरी-खोटी और ताने सुने यह सब करने में वो अपने सपनों को दफ़न कर दिए। तुम्हें इस मुकाम तक पहुंँचाने में उन्होंने अपनी ज़िंदगी को जिया ही नहीं वरन् ज़िंदगी बस आगे बढ़ती रही।
बेटा, आज तुम सब कुछ कर रहे हो लेकिन तुम्हारे मांँ- बाप ने अपने किन-किन सपनों को दफ़न कर दिया? उनकी कौन-कौन सी चाहत अधूरी रह गई, उसको नहीं पूरा कर पा रहे हो।कभी तुमने अपने माँ- बाप के उन सपनों के बारे में जानने की कोशिश ही नहीं की जिसे उन्होंने तुम्हें यहांँ तक पहुंँचाने में आहुति दे दिया। आज जब तुम सब कुछ करने में सक्षम हो तो उनके अंदर कभी न कभी वो चाहत, वो सपनों के बीज अंकुरित होते होंगे और तुम्हारी उपेक्षा के कारण वो पौध बनने के पहले ही सूख जाते होंगे। जिस कारण तुम्हारे माता-पिता का अंतर्मन व्यथित रहता होगा। बेटा, तुम लाख पूजा- पाठ, जप- तप, यज्ञ, दान सब कुछ कर लो किंतु जब तक तुम्हारे मांँ-बाप खुश नहीं होगे तब तक बच्चे कभी भी ख़ुश नहीं रह सकते।शायद इसीलिए तुम सब कुछ होने,करने के बावजूद ख़ुश नहीं हो।
सुयश को अपनी ग़लती का एहसास हो गया। वह अपने मांँ-बाप के पास अब रोज जाकर घटा दो घंटा समय बिताने लगा और बात-बात में यह जानने की कोशिश करता कि उनको क्या पसंद था जो वो नहीं कर पाए और आज क्या पसंद है?
अब सुयश अपने सभी कामों के अलावा अपने मांँ-बाप के सपनों को पूरा करने की कोशिश करने लगा और देखते-देखते सुयश का घर- परिवार एक खुशहाल घर परिवार में तब्दील हो गया।
यह कहानी हमें यह सीख देती है कि कि हम चाहे जितने भी पैसे कमालें, कितने भी बड़े मुकाम पर पहुंँच जाएँ लेकिन अगर हमारे घर में माता-पिता उदास हैं तो उस घर में खुशियों का वास कभी भी किसी भी, कीमत पर नहीं हो सकता। अत: यदि हमें ख़ुश रहना है उस घर में मांँ-बाप का ख़ुश रहना ज़रूरी है।
साधना शाही, वाराणसी
Mohammed urooj khan
15-May-2024 11:30 PM
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