लेखनी कहानी -15-May-2024
"ना सुनूंगी "
भोली सुरत लेके तु मुझको क्यो बहकाता है। आलाप ना कर, तेरी मैं ना सुनगी बहाना लेके तु मीठे बोल से क्यों समझाता है । आलाप ना कर, तेरी मैं ना सुनंगी अकेला सुझे पाके तु पास आकर बतियाता है। मेरे बिगेर जी ना पायेगा तू. क्यो जहर की पुडिया बतलाता है । आलाप ना करें ,मैं तेरी ना सुनेगी आदत तेरी मै जानती हु पागल तुझे मैं मानती हूँ ख्यालों में तु खोया रहता है सपनो चाहत में तू सोया रहता है। आलाप ना कर, मैं तेरी ना सुनुगी हवा में कोई बाते करना तुमसे सीखे झुठे वादो में ललचाना कोई तुमसे सीखे होशो हवास में तुम रहते नहीं. शादी करने को तुम कहते नहीं आलाप ना कर, मैं तेरी ना सुंनुगी अब यह बता मेरे महबूब, हवा से नाता रखेगा। ख्योलो के वृक्ष पर रख शहतूत दवा से नाता रखेगा चुप कर मैं तेरी ना सुनुँगी जिन्दगी तेरी दिवानी नही बिन कमाई तेरी जवानी नही रजनी को रजनी से हम बिस्तर होगा बिन कमाई मेरी नजर में तेरा क्या स्तर होगा। चुप कर मैं तेरी नां सुनुगी मुझे अब यह बता ख्यालो के शहजादे क्या तेरी आशिकी से मेरा पेट भरेगा चुप कर मैं तेरी ना सुनुगी
अगर तेरे लगाव से मैं अपनो से नाता तोड़ती हूँ . तो तु मुझे अपनी मेहनत संग लगन रख मेरी उम्मीद से जोड़ता है। चुप कर मै तेरी ना सुनुगी
Varsha_Upadhyay
18-May-2024 10:06 AM
Nice
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