विरासत
रिश्तों की है नींव विरासत,
ज़िम्मेदारी सिखलाती है।
पुरखों से जो मिली धरोहर,
पीढ़ी दर पीढ़ी जाती है।।
धन-दौलत सिंहासन मिलता,
लेकिन बुद्धि नहीं मिल पाए।
जिसने मति मेधावी पाई,
वही विरासत आगे जाए।।
श्रम के मद को पीकर देखो,
जर जमीन फीकी पड़ जाए।
स्वाभिमान की रोटी खाकर,
पर्णकुटी भी मन को भाए।।
मिले किसी को अकूत माया,
कर्ज किसी के हिस्से आए।
उम्र भर बंधुआ मजदूरी,
चैन सुकून कहीं खो जाए।।
पुरखों से जब मिले बपौती,
दीवारें साजिश रचती है।
कहीं झगड़ा कहीं पर मैयत,
जननी दिन रात सिसकती है।।
सपूत को गर मिले धरोहर,
दिन दूनी बरकत आती है।
कपूत के कर लगे ख़ज़ाना,
बर्बादी रंग दिखाती है।।
भाई-बंधु में कुचक्र चालें,
द्योत के पासे पलटते हैं।
रचना करके चक्रव्यूह की,
“श्री” छल से साँसें हरते हैं।।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Gunjan Kamal
03-Jun-2024 03:45 PM
👌🏻👏🏻
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kashish
16-May-2024 10:27 PM
V nice
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Sarita Shrivastava "Shri"
15-May-2024 11:49 PM
👌👌
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