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मोबाईल

बदल गया है बहुत जमाना,

नीम नीचे कोई न खेले।
उंगलियां हैं मोबाइल पर,
बरगद छांव न लगते मेले।

धूल फांकती पड़ी पुस्तकें,
मोबाईल ने स्थान लिया।
शब्द कोष को भूल गए सब,
जग को मुट्ठी में बंद किया।

कोई चिट्ठी कब आए अब,
खड़काए न कुंडी डाकिया।
बातें करलो मुँह भी देखो,
मैया भैया ने फोन किया।

सोशल मीडिया दोस्त बहुत,
पड़ौसी कौन है नहीं पता।
खेल खेलते हैं आभासी,
गिल्ली-डण्डा कंचे न पता।

इश्क-मुश्क जोरों से चलता,
दिलरुबा से गुटरगूं पल-पल।
चुपके से संदेश भेजते,
मात-पिता को पता न हलचल।

चोगा शराफत का पहन कर,
अश्लील दृश्य देखा करते।
तन व्यापार चले फोन से,
लड़का-लड़की राह भटकते।

हैं मगन पति-पत्नी चैट में,
दाल चूल्हे पर जल जाए।
आपस में बातें कम करते,
बच्चों से दूरी बन जाए।

"श्री" मोबाइल आँखें चिपकी,
यात्री बाहर नहीं झांकते।
पेड़ भागते पंछी उड़ते,
प्रकृति सौंदर्य नहीं ताकते।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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2 Comments

Gunjan Kamal

03-Jun-2024 03:32 PM

👌🏻👏🏻

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Sarita Shrivastava "Shri"

17-May-2024 07:00 PM

👍👍

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