Yusuf

Add To collaction

बेखबर



दुनियादारी का यह अजब ही रिश्ता है 
जो भी मर गया यहां वो ही फ़रिश्ता है

एक कोई है जो भर-भर कर पीता है 
एक कोई है जो एक बूंद को तरसता है

चलना तो चाहता हूं मैं भी साथ सबके पर 
दुनिया से मेरी ज़रा चाल आहिस्ता है 

मेरे हक में तो, वीरां दश्त-ओ-सहरा है 
जाने किसके हक, गुल-ओ-गुलिस्तां है

जब भी रात आती है ग़म चले आते हैं 
न जाने ग़मों से रात का क्या बावस्ता है

खूब चलन चला इश्क में बेवफ़ाई का अबके
वफा-ए-इश्क की हालत खस्ता है।

एक ये कमरा और दो-चार वो किताबें 
'बेख़बर' तेरा शौक भी कितना सस्ता है!!

   1
1 Comments

hema mohril

19-May-2024 08:46 AM

V nice

Reply