लेखनी कहानी -19-May-2024
शीर्षक -स्वैच्छिक - मेरा भाग्य और कुदरत के रंग
हम सभी अपनी सोच और उम्र के साथ साथ साथ एक सोच ही तो हम सभी के जीवन में हमारा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच कहते हैं। सच तो हमारी सोच और उम्र के साथ-साथ हम स्वयं होते हैं क्योंकि हम अपनी उम्र के फर्क से एक दूसरे को प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ मन भावों से अपने विचार और अपने मन से अच्छा या बुरा सोच सकते हैं परंतु हमारे मन की सूची हमारे मन की उम्र और हमारी जिंदगी के साथ दिनचर्या को महत्व देती है।
अनीता 45 वर्ष की महिला है और वह बचपन से अपने माता पिता के देहांत की बात घर में बड़ी बहन होने के साथ-साथ अपने छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी उठाती है। और वह अपने छोटे भाई बहनों को पढ़ा लिखा कर अच्छा बना देती है और भाई बहन पढ़ लिखकर अपनी जिंदगी जीने के लिए अपना घर बसा लेते हैं और बड़ी बहन से संबंध दूर-दूर तक हो जाती है। अब अनीता समाज और सामाजिक नियम के साथ-साथ जहां भी काम ढुढने जाती। उसकी उम्र उससे पहले वहां पहुंच जाती। आधुनिक समय में हम सब की सो जबां और सुंदर हसीन खुबसूरती के साथ हैं। न कि समझदारी और ईमानदारी महत्व रखती है क्योंकि हम सभी दिखावा और सोच को बताते हैं। कुछ ऐसा ही अनीता के साथ था और अनीता जिस कंपनी में नौकरी करती है वहां उसे या तो आंटी कहते हैं या बस आप अनीता यह काम कर लो ऐसा नाम लेकर बोलते हैं क्योंकि हमारी सब की सोच अपने साथ रहती है हम दूसरे के मान सम्मान और उसकी अंतर्मन को नहीं देखी क्योंकि आजकल समाज में हम केवल अपना वर्चस्व अपना परिचय अपना और अपना सोचते हैं।
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच के साथ हम सभी को एक कहानी के माध्यम से सच और सच की रहा बताता है जिससे हमारे मन की मानवता जागृत हो और हम जीवन में एक दूसरे को सहयोग करें ना की उसकी मजबूरी और उम्र की सोच का फायदा उठाएं। जन्म से लेकर जवानी तक वही उम्र बढ़ती है और इस उम्र में हम एक दूसरे को पसंद भी करते हैं एक दूसरे के साथ सहयोग भी करते हैं। तब फिर उम्र के अधेड़ पड़ाव पर हमारी सोच और उम्र बीच में कहां से आ जाती है केवल हमारी सोच और उम्र इसलिए बीच में आ जाती है क्योंकि हमारे काम और हमारी इच्छाएं समय के साथ पूरी नहीं होती हैं।
फिर भी कहीं ना कहीं संसार समाज में कुछ ऐसे लोग अभी मौजूद हैं जो लोग खुद भी सोच और उम्र से गुजरते हैं और वह अपनी सोच और उम्र के साथ-साथ उम्र दराज लोगों का ख्याल और सहयोग करते हैं। सच तू बस इतना सा है कि हमारी सोच और उम्र ही सहयोग करती है अनीता भी 45 वर्ष की उम्र में 30 वर्ष के लोगों से अधिक कम कर सकती थी और बस बाल सफेद चेहरे पर हल्की सी झुर्रियां और उसे ऑफिस में करने वाले जवान और खूबसूरत कर्मचारी केवल उसे अनीता की मजाक ही बना सकते थे। क्योंकि अनीता जिन हालातो से गुजरी थी इस समाज के लोगों का उससे कुछ लेना-देना नहीं है क्योंकि हम मानवता केवल शब्दों में जानते हैं और मानवता और सामाजिकता हम केवल दिखावा करते हैं जिससे हमें कोई गलत साबित न कर सके। तू हम भूल जाते हैं हम सभी को एक न एक दिन उसी राह से गुजरना जिस राह पर आज अनीता चल रही है।
बस आज की कहानी में सोच और उम्र का संदेश कुछ शब्दों में लिखने का प्रयास किया है और उसे संदेश के माध्यम से केवल अनीता एक किरदार का माध्यम है वैसे तो समझ में हमारी सोच और हमारी उम्र ही सब कुछ नहीं कुछ हमारी खुद की मेहनत और योग्यता भी होती है उसी के प्रयास से हम सोच और उम्र को बदल देते है। जिंदगी में हम सभी को कभी ना कभी बेटी मां सास और ज्यादा उम्र हो जाने पर दादी भी बनना पड़ता है परंतु हमारी सोच और उम्र सोच दादी और पोती या मां और बेटी एक दूसरे का सहयोग करती हैं और कहती है अभी तो आप जवान हैं और आप अभी बहुत खूबसूरत हैं तो यह सोच और उम्र हमारे अपने रिश्ते नातों के साथ है। तब हम किसी कामगार और अपने घर काम करने वाले लोगों को अपनी सोच और उम्र के साथ-साथ उनके साथ भी सहयोग करना चाहिए।
मेरे भाग्य किस्मत की रंग एक सच के साथ-साथ कभी भी ईश्वर किसी के साथ की कुछ भी कर सकता है आओ हम अपनी सोच बदले और सोच और उम्र को एक नहीं रहा थी सभी का सहयोग करें।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र