अपने कहां
अपने कहां
ढूंढे अपने जाने कहां कहां
इंकार क्यों करूं
मिले हजूम में अपने
लिए शमशीर हाथ में
लिखी रब ने किस्मत ऐसी जो भी मिले वे मुरब्बतमिले
हमदर्द हूँ
हमदर्दी की आस में में
जाने कहां-कहां जा फंसा
मिले हमदर्द बड़े
जो भी मिला
बड़ा बेदर्द मिला
सुर से सुर मिलता कैसे
शराफत की आड़ में
बेहूदा शैतान ही मिले काबिल ना था दुनिया के
हे भगवान दुनिया में
क्यों जन्म दिया मुझे
खुद ही बिक जाऊं
इतना भी गरीब कहां हुआ
समझ जाता ए इंसान
तौर तरीके दुनियादारी तेरी
था वक्त पास मेरे
जाया कर दिया
ढूंढे अपने जाने कहां-कहां
इनकार क्यों करूं
मिले हजूम में अपने
लिए शमशीर हाथ में
लिखी रब ने किस्मत ऐसी
जो भी मिले
बे -मुरब्बत मिले
जो भी मिले
बे- मुरब्बत मिले
मौलिक रचना
उदयवीर भारद्वाज भारद्वाज भवन मंदिर मार्ग कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
पिन एक साथ ए 176001 मोबाइल 94187726
Varsha_Upadhyay
23-May-2024 07:34 AM
Nice
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hema mohril
22-May-2024 09:18 PM
Very nice
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Gunjan Kamal
22-May-2024 08:17 PM
बहुत खूब
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