पर्यावरण ( कविता )प्रतियोगिता हेतु-23-May-2024
प्रदत्त विषय- पर्यावरण/प्रकृति प्रतियोगिता हेतु
अंशु की रश्मियाँ गा रही हैं, खुशियों को वो फ़ैला रही हैं। तेरे संग ज़ीने की खातिर, हर झोंके ही रैला रही हैं।
अंशु की रश्मियाँ गा रही हैं, खुशियों को वो फ़ैला रही हैं।
दिव्य इस संग जीए जो हुए हैं, गरल को ना कभी वो पीए हैं। खुशियों से भरे हैं वो दामन, इसको जन्नत का कैला रहे हैं।
अंशु की रश्मियाँ गा रही हैं, खुशियों को वो फ़ैला रही हैं।
रवि,शशि भी तेरे संग ही भाएँ, तेरे संग ही मधुरता को पाएँ। प्रति जन में आलोक तेरा, तू है पावन ज्यूँ खैला रहे हैं।
अंशु की रश्मियाँ गा रही हैं, खुशियों को वो फ़ैला रही हैं।
सृष्टि का रोम- रोम है प्रफुल्लित, धरती का रज- रज मानो मुकूलित। इस बिना अस्तित्व ना किसी का, दे सुख-समृद्धि का घैला रहे हैं।
अंशु की रश्मियाँ गा रही हैं, खुशियों को वो फ़ैला रही हैं। साधना शाही, वाराणसी
Gunjan Kamal
03-Jun-2024 02:32 PM
👏🏻👌🏻
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HARSHADA GOSAVI
23-May-2024 09:05 PM
V nice
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