बुद्ध पूर्णिमा (कविता)23-May-2024
महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों की प्रासंगिकता
सत्य एवं अहिंसा के पुजारी, दार्शनिक, समाज सुधारक एवं बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध जिन्होंने दुनिया को मध्यम मार्ग अपनाकर जीवन को सफल बनाने का संदेश दिया। आज उनके मरने के 2500 वर्ष बाद भी उनके सिद्धांत कितने प्रासंगिक हैं इसी बात को बता रही है आज की मेरी कविता-
ये ना मानव विभूति महान थे, बौद्ध धर्म संस्थापित थे किए। मध्यम मार्ग का चयन कर, मानव सभ्यता को नई राह दिए।
उनकी शिक्षा इतनी महती, 2500वर्ष बाद भी प्रासंगिक। निर्वाण को प्राप्त किए पर दृष्टि,शिक्षाएंँ आज भी वांछित।
व्यावसायीकरण की अंधी दौड़ में, मानव ना मानव रह पाया। वस्तु के जैसे बदल गया है, स्व- फैसला ना कर पाया।
दूजे के विवेक पर आश्रित, कितनों का जीवन है निर्भर। बुद्ध सिद्धांत को अपना लें, व्यक्ति बनने को हों तत्पर।
आज समाज हुआ जब विकृत , मध्यम मार्ग की बड़ी अपेक्षा। वीणा के तार सा इसे बनाओ , रामराज्य लाना हो स्वेच्छा।
ना अति सख्त कभी निर्णय लो, ना अनुशासन रखो ताख पर। सख्ती- नरमी का करके संतुलन, विकसित समाज को रखो साख पर।
धार्मिक सहिष्णुता शस्त्र है ऐसा, जिससे दुनिया में खुशियाॅं आएंँ। धर्म संभाव्य अचूक मंत्र है, वसुधैव कुटुंबकम स्थापित हो जाए।
प्रभु इच्छा समझकर दुख को सह लो, विपरीत समय में ना टूटो तुम। अहंकार को गरल समझ लो, अपनों से कभी ना छूटो तुम।
कर्मवाद सिद्धांत बुद्ध का, विकसित समाज का नींव डालता। भाग्यवाद को दीमक समझो, नकारा, निठल्ला हमें बनाता।
नैतिकता,करूणा आत्मसात कर, अमन चैन कायम कर सकते। संघर्ष से ना कभी घबराकर हम , जीवन से संताप तज सकते।
हिंसा फैली गली-गली में, अहिंसा है दम तोड़ रही। ऐसे में यदि गहें इसे तो , समाज को सही दिशा में मोड़ रही।
अष्टांगिक मार्ग आज करे दरकार, सभ्य समाज का हो निर्माण। अंतः शुद्धि सिद्धांत अपनाकर, जीव मात्र का कर लें त्राण।
रूढ़िवादिता कभी गहें, ना नवसृजन से काॅंट कूश को काटें। यथास्थिति दूर भगाकर, समानता, सौमनस्य चहुँ पाटें।
साधना शाही, वाराणसी