दंभ

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दंभ

लंबी सी लक्जरियस कार पहाड़ों के घुमावदार रास्तों पर हिरनी सी कुलांचे मारती चली जा रही थी।
नेहा और समीर, मौसम का आनंद लेते, पहाड़ों के अप्रतिम सौंदर्य के साथ साथ इंपोर्टेड म्यूजिक सिस्टम से बिखरते मधुर संगीत का आनंद लेते हुए सफर का मजा ले रहे थे।

नेहा का मन नहीं था लौटने का, कितने दिनों बाद निकले थे, लॉकडाउन की वजह से घर से निकलना ही ना होता था। घर मे पड़े पड़े बोर हो गई थी वो। 
वो तो भला हो लॉकडाउन में थोड़ी राहत मिली और उन्हे अपने मन पसन्द रिजॉर्ट में बुकिंग भी मिल गई।
फैक्ट्री अभी भी पूरी तरह चालू नही थी तो काम का बोझ भी ज्यादा नही था। ऐसे में पापाजी ने भी दोनो को जाने की इजाजत दे दी।
वैसे भी उनकी शादी को कुछ ही समय गुजरा था, तो ये हॉलीडे किसी हनीमून से कम न था। फिर महामारी के चलते ज्यादा लोग घर से निकल नही रहे इसलिए भीड़ भाड़ भी कम थी।
सबसे अच्छी बात थी कोई काम नही, सुबह देर तक अलसाए से बिस्तर में पड़े रहो जब तक वेटर चाय ना ले आए, उसके बाद फ्रेश होकर निकल पड़ो वादियों में, पहाड़ों में, झरनों के पास, पेड़ों के पास, हर तरफ हरियाली, हर तरह बिखरा सुकून भरा सन्नाटा, दिन भर प्रकृति की गोद और समीर का साथ। दिल करता यहीं रह जाएं, कभी वापस न लौटें।
क्या सोच रही हो, अचानक समीर की आवाज ने नेहा को वर्तमान में ला दिया।
सोच रही हूं ये दिन इतनी जल्दी क्यों चले गए, बड़ा मन था कुछ दिन और यहां गुजारते।
यार, तुमको तो मालूम है फैक्ट्री का काम बढ़ गया है पापा से संभल नहीं रहा। कोई नही सर्दियों में फिर आएंगे, कह कर समीर ड्राइविंग पर ध्यान देने लगा।
नेहा आराम से सीट को रिकलाइन कर के गाड़ी की खिड़की से आती बारिश की फुहार और संगीत साथ ही वादियों की खूबसूरती का आनंद लेने लगी।
सच ये वादियां किसी जन्नत से कम नहीं, पहाड़ी रास्तों पर इस वक्त वाहन दूर दूर तक नहीं था। आसमान काले काले बादलों से अटा पड़ा था। रह रह कर बिजली की चमक और गड़गड़ाहट आने वाली बारिश का संकेत दे रहे थे।
समीर चाहता था कि इस से पहले मौसम और बिगड़े और मूसलाधार बारिश आ जाए इन दुर्गम रास्तों को पार कर लिया जाए।
तभी सामने से सड़क पर एक बादलों का झुंड आ खड़ा हुआ, अचानक ऐसा लगा जैसे उनकी गाड़ी सड़क पर नही बादलों के बीच तैर रही हो। बादल इतने घने की सामने की सड़क अचानक गायब हो गई। हार कर समीर को गाड़ी रोक देनी पड़ी।
गाड़ी रुकते ही नेहा दीवानों की तरह गाड़ी से उतर कर बादलों के झुंड में खो गई, ये देख कर समीर मुस्कुराए बिना नही रह सका और वो खुद भी गाड़ी का इंजन बंद करके बादलों के गालों से खेलने लगा।
ऐसा लग रहा था जैसे दो बालक सफेद गुब्बारों के बीच खेल रहे हो, बादलों का ठंडा ठंडा गीला सा स्पर्श मन को गुदगुदा रहा था। हल्की सी ठंड की सिरहन रोम रोम को महका रही थी।
अचानक बारिश तेज होने लगी, दोनो ही भाग कर गाड़ी में बैठ गए। समीर ने तुरंत गाड़ी को स्टार्ट किया और आगे बढ़ चले।
बारिश उनके साथ साथ ही चल रही थी, और अब तो काफी तेज हो गई थी।
सड़क पर जगह जगह पानी जमा हो गया था जिसमें से गुजरते हुए बहुत रोमांच आ रहा था।
सारा वातावरण किसी रोमांचक फिल्म जैसा दिख रहा था। बारिश, बादल, धुंध, पहाड़, छोटे बड़े झरने, और गाड़ी का मिला जुला शोर और साथ ही बजता हुआ संगीत। फिर अचानक बादलों की भयंकर गड़गड़ाहट, और तेज कोंधती बिजली।
सुबह के अभी 11 ही बजे थे पर यूं लगता था शाम घिर आई है।
समीर को गाड़ी चलाने में भी दिक्कत आ रही थी, क्योंकि गाड़ी के वाइपर पूरी तरह बरसते बादलों का सामना नहीं कर पा रहे थे।
उसने अपना पूरा ध्यान सड़क पर केंद्रित कर रखा था, जरा सी चूक भी इस समय जान लेवा हो सकती थी। समीर सोच रहा था इससे तो वो लोग रुक ही जाते, काश वो होटल मैनेजर की बात सुन लेता, उसने तो मना किया था निकलने से।
बारिश में पहाड़ों पर अचानक जमीन खिसकने और बरसाती नालों की बहुत सी कहानियां उसे याद आ रही थी। पर अब कुछ भी सोचना बेकार था, अब तो बस सावधानी से आगे बढ़ना था और अगर इन बियाबान पहाड़ों में कोई रुकने की जगह मिले तो कुछ समय रुक कर बारिश थमने का इंतजार करना ही अच्छा।
अब उसकी नजरें धुंधले रास्ते के साथ साथ कोई आश्रय भी ढूंढ रही थी, पर इस भारी बरसात के चलते जैसे जमीन का कोई कण सूखा न था वैसे ही उसकी उम्मीद भी थी।
बरसात अब पूरे शबाब पर थी लगता था आसमान खुल कर रो रहा है, कदम कदम पर सड़क से बरसाती नाले बह निकले थे। बारिश और तेज और तेज होती चली जा रही थी, उस पर अब तो तेज हवा भी चलने लगी थी। बारिश तूफान जहां एक ओर सामने की सड़क को देखने में मुश्किल कर रहे थे वहीं तेज हवा गाड़ी को संभालने में तकलीफ दे रही थी।
गाड़ी किसी मदमस्त हाथी की तरह मस्ती में आगे बढ़ रही थी। तभी कुछ दूरी पर समीर को सड़क किनारे एक छोटी सी झोपडी दिखाई दी। वैसे अगर कोई और समय होता तो समीर उस झोंपड़ी की तरफ एक नजर भी न देखता, पर मरता क्या न करता आज उसे किसी गरीब की झोंपड़ी में ही पनाह लेनी पड़ेगी। सोच कर ही समीर सिहर गया।
उसने गाड़ी को झोपड़ी के सामने जा कर रोका और नेहा को उतरने का इशारा किया।
गाड़ी से झोपड़ी तक के चंद कदमों में ही दोनो सर से पैर तक बारिश में सराबोर हो गए।
झोंपड़ी की छत के नीचे पहुंच कर बारिश से भीगने से तो बचाव हो गया, पर फिर भी बार हवा से पछवाड़ उन्हे रह रह कर भिगो रही थी।
समीर चाह कर भी उस जीर्ण शीर्ण टपरी में घुसना नही चाहता था। उसे सोच कर ही घिन आ रही थी कि शायद उसे अंदर जा कर किसी गंदी सी कुर्सी या स्टूल पर बैठना पड़ेगा।
पर बारिश इतनी ज्यादा हो रही थी की अंदर जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। झोपड़ी में कोई दरवाजा नही था। नेहा के पीछे पीछे समीर भी अंदर दाखिल हुआ। ये एक छोटा सा ढाबा या कोई होटल था। सामने कोने में चूल्हा जल रहा था, जिस पर कुछ पाक रहा था, शायद कोई दाल, जिसकी सोंधी सोंधी खुशबू चारों तरफ बसी हुई थी। एक तरफ एक बान की चारपाई रखी हुई थी उसके पीछे दीवार पर कुछ कपड़े और समान बेतरतीबी से रखा हुआ था। चूल्हे के पास ही एक अधेड़ सा जोड़ा बैठा हुआ था। चूल्हे की वजह से पूरी झोंपड़ी में धुएं की एक चादर बिछी हुई थी और उसके असर से दीवारें काली सी नजर आ रही थी।
उस आदमी ने उठ कर खाट को झाड़ दिया और नेहा और समीर को बैठने का इशारा किया। बाहर इंद्रदेव पूरी तन्म्यता से पृथ्वी को स्नान करवा रहे थे, लगता नहीं कुछ घंटों तक बरसात रुकने वाली है।
बहुत देर तक चारों खामोशी से अपने अपने विचारों में खोए रहे।
कुछ देर बाद उस आदमी ने नेहा और समीर से पूछा, आप लोग कुछ चाय पानी वगैरा लेंगे।
उसकी इस बात से नेहा और समीर दोनो को ही भूख का अहसास हो आया।
समीर ने पूछा क्या चाय और बिस्कुट मिल जायेंगे आपके पास। जी, क्यों नही, बिस्कुट है, नमकीन है और कुछ पकोड़े भी बना रखे हैं। आप रुको मैं अभी चाय बना देता हूं आपके लिए।
वो चाय के लिए पैन में पानी चढ़ाने ही वाला था कि समीर ने टोक दिया। भाई ये बर्तन पहले अच्छे से धो लो, पता नही कब से नहीं धुला।
उस की पत्नी ने झट चूल्हे की राख से बर्तन को मांज कर उसे दे दिया। अभी चाय उबल ही रही थी। समीर फिर बोला गिलास भी अच्छे से साफ कर दें, गंदे लग रहे हैं। उस औरत ने चूल्हे की राख से गिलास भी मांज दिए।
चाय के साथ कुछ बिस्कुट और नमकीन के पैकेट मांगे। इस बार देने से पहले आदमी ने कपड़े से पैकेट साफ कर के ही पकड़ाए।
समीर और नेहा आराम से चाय के साथ मौसम का आनंद लेने लगे, बारिश कुछ हल्की हो चली थी। चाय बहुत बढ़िया बनी थी एक दम नपा तुला सब कुछ पानी दूध पत्ती और अदरक साथ ही चीनी भी। चाय पीकर और बिस्कुट नमकीन खाकर कुछ पेट को सहारा मिला। अब तक कपड़े भी काफी सुख चुके थे।
समीर ने समय देखा, इस गंदी सी झोपडी में उन्हें करीब दो घंटे हो चुके थे। अब तो उसे वहां कोई दुर्गंध भी नही आ रही थी। समान भी सुव्यवस्थित रखा हुआ था। खैर, बारिश काफी हल्की हो चली थी।
उसने नेहा को कहा अब हमको चलना चाहिए।
कितना पैसा हुआ, उसने उस आदमी से पूछा,  40 रुपए। एक चाय के 10 रुपए, वो मुंह बिचका कर बोला।
साहब बहुत दूर से समान लाना पड़ता है।
अच्छा अच्छा, कहते हुए उसने जेब से पर्स निकाल कर एक 500 का नोट इस आदमी की तरफ बढ़ाया, और मुंह ही मुंह में बोला, ब्लडी cheats, लोगों को ठगते हैं।
साहब, इतना बड़ा नोट, मेरे पास इसके छुट्टे नही है, आप के पास खुले पैसे नही क्या....
लो अब खुल्ले भी मैं लाऊं, दुकान तुमने खोली या मैने, समीर हिकारत भरी नजरों से उसे देखता हुआ बोला।
साहब मुश्किल से दिन में 4/5 ग्राहक आ जाते हैं इतनी दुकानदारी नही हमारी और आज तो बारिश की वजह से केवल आप ही लोग आए हो।
नेहा ने झट अपना पर्स खोला और एक 100 का नोट उस आदमी को दिया, बाबा आप इसमें से काट दीजिए। समीर तुम गाड़ी स्टार्ट करो मैं चेंज लेकर आती हूं। उसे समीर की आदत मालूम थी और उसकी पसंद नापसंद भी।
Ok, समीर, गाड़ी की तरफ बढ़ गया।
आदमी ने सारा अपना गल्ला छान मारा फिर भी 10 रुपए कम रह गए। उसने कातर नजरों से देखते हुए पैसे नेहा की तरफ बढ़ाए और बोला मैडम जी, 10 रुपए कम हैं अभी भी।
कोई नही बाबा, आपने हमको इस तूफान में रुकने की जगह दी। अच्छा चलती हूं, चाय बहुत बढ़िया बनाई आपने। कहते हुए उसने दोनो बुजुर्गों को हाथ जोड़े और मुड़ कर गाड़ी की तरफ बढ़ चली।
बुजुर्ग दंपति दरवाजे से उसे विदा कर के वापस झोपड़ी में आ गए।
गाड़ी में बैठते ही, समीर ने पूछा, हंस हंस कर क्या बात कर रही थी। देखो इन छोटे लोगों को मुंह नही लगाना चाहिए, कहते हुए उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी। 
देखा न कैसे बड़ी गाड़ी देख कर वो हमको लूटने को तैयार था 5 रुपए की वो चाय हम को 10 रुपए की बेची उसने।
गाड़ी मोड से आगे आ चुकी थी, उन दोनो को पीछे हाथ हिलाता हुआ वो आदमी दिखाई ही नहीं दिया।
बारिश अभी भी लगातार पड़ रही थी पर रफ्तार धीमी थी। 
नेहा ने समीर का ध्यान उस झोंपड़ी से हटाने के लिए, उसे शानदार मौसम की याद दिलाई।
कुछ ही देर में गाड़ी में बजता संगीत और सुंदर मौसम उसका मन मोहने लगा। वर्षा और ढलान वाली संकरी सड़क की वजह से गाड़ी धीमी रफ्तार से ही चल रही थी।
कुछ  दूर तक गाड़ी सीधी उतार पर चलती रही, करीब आधे घंटे ऊंची नीची सड़क पर चलने के बाद अब सड़क सामने सीधी थी, बारिश अभी भी पड़ ही रही थी।
दूर सड़क पर एक साया, बीच सड़क में बाहें पसारे खड़ा था। नेहा और समीर समझ नही पाए ये कौन पागल है जो बीच सड़क में खड़ा है। उसने एक अजीब सा मटमैला सा लबादा सर पे ओढ़ रखा था।
एक अजीब सी सिरहन दोनो के जिस्म में दौड़ गई, कहीं कोई उनको लूटना तो नही चाहता। सड़क इतनी भी चोड़ी नही थी की गाड़ी उस से बच कर निकल सके। उनकी गाड़ी को नजदीक आता देख वो सड़क के किनारे आ गया और हाथ हिला कर रुकने का इशारा करने लगा।
समीर गाड़ी रोकना नहीं चाहता था, पर नेहा के कहने पर शायद कुछ समस्या हो उसने गाड़ी की रफ्तार धीमी कर ली, अगर कुछ भी परेशानी नजर आई तो गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दूंगा।
जब गाड़ी और करीब आई तो साए की सूरत भी दिखाई दी, ये वही ढाबे वाला शख्स था।
समीर ने गाड़ी रोकी, और नेहा की तरफ का शीशा नीचे किया, और बोला अब क्या चाहिए तुमको पहले ही 10 रुपए ज्यादा ले चुके हो।
उसने अपने लबादे यानी बोरी के अंदर हाथ डाल कर एक पॉलिथीन का लिफाफा निकाला और उस के अंदर से एक काला पर्स।
हाथ बढ़ा कर उसने समीर को पर्स थमा दिया, बोला, देख लीजिए सब चीज है ना। समीर निरूतर उसको देख रहा था, उसके पर्स में कम से कम 10000 रुपए और उसके कागजात इत्यादि सब ज्यों के त्यों थे।l
फिर उसने दोबारा अपने लबादे में हाथ डाल कर नेहा के हाथ में एक गीला मुड़ा तूड़ा 10 का नोट रखा, आपके बाकी पैसे, गल्ले में मिल गया तब नही दिखा। नमस्ते।
इतना कह कर वो मुड़ा और लंबे डग भरता हुआ वापस पहाड़ी रास्ते पर चल दिया।
नेहा और समीर हक्के बक्के उसे जाते हुए देख रहे थे, जाते जाते वो अपने साथ उनकी अमीरी का थोथा दंभ भी लेकर जा रहा था।
समाप्त

आभार – नवीन पहल  – २६.१०.२०२१ 👍🌹🙏💐

आपके अमूल्य विचारों का इंतजार रहेगा

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वाओ सर आपने बहुत अच्छे से लिखी है स्टोरी👌👌 चाहे आसपास के माहौल का जिक्र हो, या चरित्रों की भावनाएं या डायलॉग्स सब आपने शानदार तरीके से प्रस्तुत किया है। पढ़कर आनंद भी आ गया😁😁 कहानी सच में बहुत अच्छी थी और शिक्षादायक भी! वाकई आजकल के बहुत से अमीर, नाम के ही अमीर है। जिनका ज़मीर मर चुका है, उनके पास सब कुछ होते हुए भी वो अपनी खोखली सोच और पैसों के घमंड के कारण वो गरीबों से भी बड़े गरीब है। जबकि वास्तविक गरीब अपने अच्छे दिल और जिंदा जमीर के कारण अमीरों से भी अमीर है। आपकी इस कहानी ने दिखा दिया, कि आज का गरीब असली अमीर है और आज के अमीर वास्तविक गरीब है। आपकी यह कहानी काबिलियत तारीफ है, पर इसमें कुछ कमियां भी है, जैसे आपने डायलॉग्स को "इन चिन्हों " के भीतर नही रखा। और कहानी को सुंदर प्रस्तुतिकरण के चक्कर में आपने जैसा रूप दे रखा है, वो कहानी की जगह एक बड़ी-सी कविता लग रही है😂 बस ये दोनों चीजें ठीक कर लीजिए बाकी सब ठीक है। और गलती और भी हुई है आपसे😂😂 इसे परिवारिक की श्रेणी में डालने की जगह सामाजिक में डालिये और साथ मे सस्पेंस और रोमांच वाला भी श्रेणी डालिये😇

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Fiza Tanvi

03-Nov-2021 11:59 AM

Good

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Swati chourasia

27-Oct-2021 04:54 PM

Very beautiful 👌

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धन्यवाद जी

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