Sadhana Shahi

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धूप- छांँव (कविता) प्रतियोगिता हेतु-28-May-2024

धूप-छांँव

नन्ही सी गुड़िया एक दिन, अपने पापा से बोली। पापा, धूप और छांँव, क्यों ना बनते हमजोली।

गुड़िया के पापा उसको, समझाए और बोले। सूर्य देव हैं धूप ले आते, संझा को पट ना खोलें।

धूप को लेकर सूर्यदेव जब, शाम को हैं चले जाते। संध्या रानी रजनी लातीं, तब आदित्य शर्माते।

मास, दिवस कुछ दिन बीते, गुड़िया की मम्मी ना दिखतीं। धूप के संग क्या चली गईं? संध्या में कुछ हैं लिखती।

बोलो पापा जल्दी बोलो, मेरी मामा कहांँ गईँ। धूप तो अगले दिन दिखती, मम्मा बोलो कि जहांँ गई।

तब पापा ने बड़े प्यार से, गुड़िया को समझाया। धूप के संग चली गईं मम्मी, संझा में साधन ना आया।

गुड़िया रानी तब मायूस हो, पापा से यह झटपट पूछी। कैसे वहाँ रहती होंगी मम्मी, वो तो गई हैं बिल्कुल छूछी।

भगवान जी मम्मी को, सारा सामान देते हैं। धूप-छाँव से दे दिए मुक्ति, मम्मी से ना कुछ लेते हैं।

साधना शाही, वाराणसी

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2 Comments

Gunjan Kamal

03-Jun-2024 01:29 PM

👏🏻👌🏻

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Amit Ratta

29-May-2024 09:13 AM

मार्मिक

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