Sarfaraz

Add To collaction

स्वैच्छिक

🌹🌹🌹**ग़ज़ल** 🌹🌹🌹

मुख़्तसर ही सही मगर अपनी।
कुछ तो दीजे सनम ख़बर अपनी।

वक़्त है अब भी आईए दिलबर।
ताब  खो  दें  न  दिल-जिगर अपनी।

मेरा  मेह़बूब  छत  पे  तन्हा  है।
चांदनी    भेज    दे   क़मर अपनी।

काम करना है हमको सदियों का।
ज़िन्दगानी है मुख़्तसर अपनी।

दिल बचाना है गर गुनाहों से।
नीची  रखिए  सदा  नज़र अपनी।

ग़ौर  से  यह भी सोचिए वाइ़ज़।
क्यों  दुआ़  में  नहीं  असर अपनी।

चार छः लोग जानते हैं फ़क़त।
कम  ही  पहचान  है इधर अपनी।

बोझ सारे ही सह लिए लेकिन।
टूटी   मेंहगाई   से   कमर अपनी।

ऐसी ह़ालत है जंगलों की फ़राज़।
ख़ैर मांगें हैं अब शजर अपनी।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

   1
1 Comments

HARSHADA GOSAVI

30-May-2024 12:19 PM

Very nice

Reply