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धन्यवाद

धन्यवाद है धरती मैया,

जिसपर हमने जन्म लिया।
माँ के गर्भ से जैसे निकले,
तूने हमको थाम लिया।

तेरी थाती में खेले हम,
दौड़े भागे मस्ती की,
बचपन से कब जवां हो गए,
बस परवाह थी हस्ती की।

तेरी माटी में ही जीवन,
फिर भी कद्र नहीं जानी,
बढ़ता जाता स्वार्थ मनुज का,
करता तुझपर मनमानी।

भोजन बयार पानी तुझसे,
पेड़ों की हरियाली भी,
सबकुछ न्यौछावर है हम पर,
दामन की खुशहाली भी।

सूखा सा एक बीज गिरकर,
अंकुर बन भू से निकले,
लिपटी रहकर जड़ तुझसे ही,
बढ़ता जाए नभ छू ले।

कब तक माफ करे मानव को,
इक दिन तो थक जाएगी,
कहाँ मिलेंगी जीवन सांसें,
कैसे जल बरसाएगी।

तुलसी पर कब दीपक बाती,
चुप “श्री” संझा आती है,
खो गया कलरव पंछी का,
बस्ती बढ़ती जाती है।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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4 Comments

RISHITA

01-Jun-2024 04:16 PM

Amazing

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Aliya khan

01-Jun-2024 12:55 AM

Nice

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HARSHADA GOSAVI

31-May-2024 08:30 PM

Amazing

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