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पर्यावरण

आने वाला कल दुखदाई, 

प्रकृति संरक्षण कर ना पाए,
कटते तरुवर प्यासी सरिता, 
रहते समय रोक ना पाए।

ऊँचे-ऊँचे शैल तने हैं, 
तूफानों से लड़ जाते हैं,
संजीवनी भण्डार भरे हैं, 
धंसते सिमटते जाते हैं।

संसाधन पृथ्वी के जरूरी, 
दोहन से कम हो जाते हैं,
मनुज दखल ने दूर कर दिया, 
इला प्रदूषित कर जाते हैं।

आबादी सुरसा सी बढ़ती, 
जंगल भी मैदान बन गए,
प्राण वायु की कमी हो गई, 
खग नजर से ओझल हो गए।

क्षिति संसाधन मानव जीवन, 
लिप्सा का स्थान ना कोई,
तृष्णा कर दोहन करते हैं, 
इसके दण्ड से बचे न कोई।

क्षिति पर चादर हरियाली की, 
खुशियाँ खुशबू महकाती हैं,
वसुन्धरा जब आँसू बहाती, 
मानव गलती गिनवाती है।

एक समय ऐसा आएगा, 
मानवता अश्रु बहाएगी,
प्रकृति करिश्मा कुछ नहीं होगा,
"श्री"आत्मा नष्ट हो जाएगी।

स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)

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3 Comments

Anjali korde

07-Jun-2024 06:57 AM

Awesome

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Aliya khan

06-Jun-2024 07:41 PM

बहुत खूब

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Sarita Shrivastava "Shri"

06-Jun-2024 12:43 PM

👌👌

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