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छोटी बहन प्रीति

छोटी बहन प्रीति

प्रीति दो बहनों में छोटी तो मम्मी पापा के साथ दीदी की भी लाडली रही ।स्वाति और प्रीति के पापा के संघर्षों की डोर को घर के बड़े सुपुत्र बनने की जिम्मेदारियों को हमेशा के खींचकर लंबा किया ,घर की जिम्मेदारियों  ने उम्र को चेहरे पर समय से पहले लाकर चेहरे को गंभीर बना दिया प्रीति के पापा को। प्रीति की मां सरोज की हर समय ,शांति से बस दो रोटी मिल जाये यही कोशिश ,पनपती इच्छाओं को उभरने ही नहीं देती ।पर हमेशा मन में यह सपना बुनती, संघर्षों की छाव बेटियों पर कभी भी ना पड़े । घर के हालातों ने बेटियों को समय से पहले ही समझदार बना दिया ,पर दोनों बहनों ने जब बचपन में बचपने की इच्छा होती ,तो हाथ पकड़ उमड़ पड़ती बादलों की तरह इधर-उधर घुमडनेको ,दोनों बहनें एक दूसरे के के साथ की उष्मा से ही पल्लवित होने लगी । जब भी इच्छा कुछ करने या सीखने की होती और कुछ महंगा सा लगता ,तो एक दूसरे की इच्छा को बौना साबित कर  देता है एक दूसरे की आंखों का पढ़ना । बचपन की दहलीज प्रीति की स्वाति दीदी ने कब पार कर ली,  पता ही ना चला । 12वीं कक्षा में ही तो पढ़ रही थी, प्राती की मौसी ने अपने जेठ के बेटे के साथ स्वाति दीदी के लिए शादी का प्रस्ताव प्रीति की मां के सामने रखा । नजदीक का और अच्छे घर का रिश्ता और सरकारी नौकरी वाला लड़का ,और लड़का उसके घर वाले शालीन और शान्त स्वभाव वाले और धार्मिक विचार वाले ,ऐसे लड़के की बात सुनकर प्रीति की मां सरोज मना ही ना कर सकी,और प्रीती की दीदी स्वाति का रिश्ता तय कर दिया मम्मी पापा ने । कन्यादान और बारात आगमन के खर्चे की पूरी जिम्मेदारी दो बेटों की मां की मौसी ने ही निभाई ।प्रीति के साथ उसके मन का आनंद भी दीदी की शादी में बहुत आनंदित हो उठा ,पर दीदी की विदा ने चंचल प्रीति को गंभीर बना दिया । दीदी जब भी ससुराल से आती ,तो अपना ज्यादा समय प्रीति के साथ ही गुजारती । कब स्वाति दीदी की छोटी बहन प्रीति ,उनकी सबसे अच्छी सहेली बन गई दीदी को पता ही ना चला । अपनी ससुराल की सभी बातों को प्रीति के साथ बांटती दीदी बात चाहें पहनने ओड़ने से लेकर ससुराल वालों की खाने पीने की पसंद और सब की आदतों का जिक्र भी होता स्वाति दीदी की बातों में ,और प्रीति भी बहुत चाव से सुनती अपनी दीदी की बातों को प्रीति ।दीदी के अपने पास ना रहने की समय के रिते पन को दीदी की बातों से भर लेना चाहती है  प्रीति, जब दीदी ससुराल में होती हैं तो कितना रीता पंन छाया रहता है प्रीति के समय में ।दीदी उन बातों को भी प्रीती से कर लेती जब सब लोग मिलकर बातें करते और अपनी अपनी सुनाते पर दीदी नई होने के कारण थोडा चुप रहती और अपने को घर के कामों में उलझाने में लगी रहती । दीदी के ससुराल वाले भी स्वाति के काम संभालने से परिचित हो गए तो बेफिक्र रहते और दीदी जो भी काम करती अच्छे से करती ,किसी को कोई शिकायत ना रहती। दीदी के परिवार में सभी खुशमिजाज और सब की इच्छाओं की परवाह करने वाले रहे,तो दीदी कभी अपने मन मैं परेशानियों का बोझ लाद कर न लाती अपने मायके। स्वाति को खुश देख मम्मी पापा भी बेटी के प्रति इस तरह तसल्ली रखते और मन में सोचते ससुराल में बेटी सुखी रहे और सब उसको अपनेपन से अपना बना ले तो बेटी के मां बाप के लिए जीते जी स्वर्ग मिल जाता है,यही  समझना चाहिए । स्वाति के मम्मी-पापा के मन में अब यही इच्छा पनप़ती रहती थी मेरी छोटी बेटी प्रीति के लिए भी ऐसा ही अच्छा परिवार मिल जाए, तो हम गंगा नहाए ,और बड़ी बेटी स्वाति से मम्मा ने कहा बेटा अपने परिवार कोई अच्छा लड़का हो तो प्रीति के लिए भी ध्यान रखना । ठीक है मां कहकर स्वाति भी प्रीति की नज़दीकियां महसूस करने लगी । शादी के 2 साल बाद जब स्वाति दीदी अपने 6 महीने के जुड़वा बच्चों के साथ मायके आई ,तो ज्यादा रुकना संभव ना हो सका ,जबकि वह पहले आती थी तो कुछ दिन रहकर जाती थी। दीदी की जिठानी अपने दो छोटे बच्चों को छोड़कर  गई, बुखार के साथ तेज पेटदर्द ने भीषण रूप ले कर दीदी को निगल लिया। दीदी की जेठानी जाते जाते ,अपने बच्चों की जिम्मेदारी स्वाति दीदी के हाथ में सौंप गई। अपने बच्चों के ध्यान के चक्कर में भी,जिठानी के बच्चों की परवरिश में भी बिल्कुल चूक नहीं चाहती थी स्वाति दीदी ।घर में और लोग भी थे, परदीदी जेठानी के बच्चों को उनकी मां की कमी का बिल्कुल भी एहसास नहीं होने देना चाहती थी ,पर अब थोड़ी सी अपनी तरफ से कुछ भी कमी या देर हो जाती  तो दीदी परेशान हो जाती ।दीदी मायके आई तो मां को अपनी उलझन बताई । पास में बैठी प्रीति ,मांऔर स्वाति दीदी की बात को ध्यान से सुन रही थी ,बहुत देर चुप बैठे बैठे सुनती रही ,फिर प्रीति उठ कर अपने कमरे में चली गई और दीदी का इंतजार करने लगी । दीदी जब कमरे में आई तो प्रीति को इंतजार करता पाया। अपनी स्वाति दीदी के हाथों को अपने हाथ में लेकर प्रीति ने कहा ,क्या दीदी मैं आपकी जिम्मेदारी को बांट सकती हूं। क्या मैं आपकी जेठानी के बच्चों को अपनी ममता की छांव दे सकती हूं ।अनहोनी का शिकार मासूम बच्चों का मजबूत सम्बल बनना चाहती हूं मैं, मेरा इसमें स्वार्थ न समझना दीदी। मेरा जीवन अगर उन बच्चों के काम आ सके, जिन मासूमों ने बचपन में ही अपनी मां को खोने का  असहनीय दर्द झेला है, इस दर्द को मैं अपनी ममता से कम करना चाहती हूं, दीदी यह अनहोनी मेरे साथ होती, ऐसा सोचकर ही बहुत असहनीय पीडा होती है, दीदी उन बच्चो में मैं अपने आप को देख रही हूं, दीदी हैरान होकर प्रीती की बातों को सुन रही थी, स्वाति दीदी की आंखों में लगातार आंसू बह रहे थे दीदी अपनी प्रीती को अपनी गोद में लिटाकर प्रीती से पूछ रही थी, मेरी प्रीती इतनी बड़ी हो गई मुझे पता ही न चला ।

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1 Comments

Anjali korde

07-Jun-2024 06:46 AM

Amazing

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