Sadhana Shahi

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दूरी बड़ा सताए (कविता) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु 09-Jun-2024

शीर्षक - दूरी सही न जाए स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु

सावन की रिमझिम बूंँदों में दूरी सही न जाए, तुझको मेरी याद न आए कितना मुझे तड़पाए।

हर पल दिल में हूँक उठे जियरा धक- धक कर जाए, कैसा निर्मोही तू बालम तब भी याद न आए।

सावन की रिमझिम बूंँदों में दूरी सही न जाए, तुझको मेरी याद न आए कितना मुझे तड़पाए।

चातक, दादुर, मोर पपीहे वो मुझको भरमाएँ, जीवन भर की बात कहूंँ क्या एक ऋतु निभाना न पाएँ।

सावन की रिमझिम बूंँदों में दूरी सही न जाए, तुझको मेरी याद न आए कितना मुझे तड़पाए।

रात निगोड़ी बैरन हो गई नींद नहीं है आए, मेरा साजन मुझको भूला नागिन सी डँस जाए।

सावन की रिमझिम बूंँदों में दूरी सही न जाए, तुझको मेरी याद न आए कितना मुझे तड़पाए।

साखियांँ आ-आ छेड़ें पूछें साजन तेरे कब आए? मेरे आकुल मन की वीणा का तार झंकृत हो जाए।

सावन की रिमझिम बूंँदों में दूरी सही न जाए, तुझको मेरी याद न आए कितना मुझे तड़पाए।

साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

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