Saroj Verma

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लोग क्या कहेंगे--लेखनी कहानी -11-Jun-2024

मुनीम मनसुख लाल जमींदार साहब के खलिहान में चारपाई पर लेटकर धूप सेंक रहे थे,तभी रामकृपाल अहीर उनके पास आकर बोला.... "मुनीम जी! हम दूध दूह लिए हैं,अब जात हैं" "ठीक है जाओ!",मुनीम मनसुख लाल आँखें मूँदे मूँदे ही रामकृपाल से बोले... "ठीक है,तो हम जा रहे हैं",और ऐसा कहकर जैसे ही रामकृपाल ने दूध से भरा डब्बा साइकिल में टाँगा तो मुनीम मनसुख लाल बोल पड़े.... "सुनो! थोड़ा दूध मेरे घर भी दे देना,पूरा का पूरा दूध हवेली लेकर मत चले जाना... "जी! ठीक है,लेकिन मुनीम जी! काल ठाकुराइन पूछ रही थी के दूध का डब्बा इत्ता खाली काहे हैं", रामकृपाल बोला... "ऐसा करना ,मेरे घर दूध देकर दुल्हिन से कहकर उतना ही पानी मिलवा लेना,फिर तुमसे कोई भी सवाल जवाब नहीं करेगा",मुनीम मनसुख लाल बोले... "जी! अच्छा!",और ऐसा कहकर जैसे ही रामकृपाल अपनी साइकिल पर सवार होकर चलने को हुआ तो तभी मुनीम मनसुख लाल ने उसे टोकते हुए कहा... "आज कैलशिया नहीं आई,अब ढ़ोर जानवरों को घास कौन डालेगा,मैं कब से उसका इन्तजार कर रहा हूँ", "मुनीम जी ! अब से वो नहीं आऐगी",रामकृपाल बोला... "काहे! नहीं आऐगी",मुनीम मनसुख लाल ने पूछा... "उहका उधारी का पइसा चुक गया है,जो उसने जमींदार साहब से उधार लिया था",रामकृपाल बोला... "तो का अब ये ढ़ोर जानवर भूखे मरेगें",मुनीम मनसुख लाल ने पूछा... "नाही! अब से यहाँ गुन्जा आऐगी",रामकृपाल बोला... "कौन गुन्जा!",मुनीम मनसुख लाल ने पूछा... "वही...चरनदास की बिटिया",रामकृपाल बोला.... "ठीक है,अब तू जा!",मुनीम मनसुख लाल ने रामकृपाल से कहा.... इसके बाद रामकृपाल वहाँ से चला गया,तो ये हैं मुनीम मनसुख लाल,इनके दादा परदादा भी जमींदार साहब के यहाँ मुनीमगीरी किया करते थे,मनसुख लाल जी तो शहर में रहकर पढ़ना चाहते थे,लेकिन उनके बाप के मारे उनकी एक ना चली,इस डर से कि कहीं इकलौता बेटा गाँव छोड़कर शहर ना भाग जाएँ, इसलिए उन्होंने उसकी कम उम्र में ही शादी करा दी,मनसुख लाल जी तो शहर जाकर सिनेमा की तरह किसी कमसिन और खूबसूरत लड़की से मौहब्बत और इश्क़ फरमाने के ख्वाब देखा करते थे,वो ख्वाब जो  कभी पूरे ना हो सकें.... क्योंकि उनकी दुल्हिन फूलकुमारी खूबसूरत तो थी,लेकिन कमसिन बिलकुल भी नहीं थी,ऊपर से खाते पीते घर की लड़की थी तो घी दूध खाने से तनिक बेडौल सी हो गई थी,पहली ही रात को जब उन्होंने फूलकुमारी का घूँघट हटाया तो उनके अरमानों के फूल कुचलकर रह गए,इसके बाद जल्दी जल्दी दो बच्चे, बस फिर क्या फूलकुमारी अब गुलदस्ता बन चुकी थी,प्यार मौहब्बत क्या होती है ये मनसुख लाल जी कभी महसूस ही नहीं कर पाएँ,बस तब से अपना समय काटने के लिए वो जमींदार साहब के खलिहान में ही पड़े रहते हैं,खलिहान के बगल में ही जमींदार साहब की गौशाला भी है और वहीं कुआँ भी है,तो कोई दिक्कत ही नहीं रहती,खाना घर से फूलकुमारी किसी ना किसी लठैत के हाथों भिजवा ही देती है...... मनसुख लाल जी चारपाई पर लेटे ही थे कि तभी उन्हें कुएँ पर बाल्टी उठाने की आवाज़ आई और उन्होंने अपने चेहरे पर डाले हुए गमछे को हटाकर देखा तो वहाँ एक लड़की थी, जिसकी उम्र सोलह सत्रह साल रही होगी,तब मनसुख लाल ने उस लड़की से पूछा... "कौन है तू?", "जी! हम गुन्जा,चरनदास की बिटिया",वो लड़की बोली.. "अच्छा...अच्छा...ठीक है,पहले जानवरों को पाना पिला दे,इसके बाद कटिया काटकर डाल दे उनके सामने", मनसुख लाल उससे बोले... "वही करने जा रही थी हुजूर!",गुन्जा बोली.... "ठीक है,जब काम हो जाएँ तो मुझे बता देना", और ऐसा कहकर मनसुख लाल जी फिर सो गए.... गुन्जा सारा काम निपटाकर पेड़ की छाँव में खाने बैठी और तब तक मनसुख लाल जी जाग उठे और वे गुन्जा को ढूढ़ते हुए उसके पास पहुँचे,गुन्जा ने देखा कि मुनीम जी आ रहे हैं तो उसने फौरन पीठ फेर ली... "क्यों री! मुझे देखकर पीठ क्यों फेर ली",मुनीम जी ने पूछा... "हमारे यहाँ परपुरूष के सामने बैठकर रोटी नहीं खाते",गुन्जा बोली... "कोई बात नहीं,खा ले रोटी,मैं जाता हूँ और सुन कल से खलिहान की कोठरी में बैठकर खाया कर , ख्वामख्वाह में तुझे ढूढ़ते हुए यहाँ तक आना पड़ा,मैं समझा कि तू बिना काम खतम किए चली गई",मुनीम जी बोले... "ठीक है", और ऐसा कहकर गुन्जा फिर से खाने लगी.... अब दूसरे दिन गुन्जा खलिहान की कोठरी में बैठकर खाना खा रही थी,तभी मुनीम जी वहाँ पहुँचे और उससे बोले.... "खा रही है" "हाँ! आप भी खा लीजिए",गुन्जा ने पूछा.... "नहीं! तुम खाओ",मुनीम जी बोले... "हाँ! आप हमारा छुआ थोड़े ही खाऐगें ",गुन्जा बोली... "ऐसी बात नहीं है",मुनीम जी बोले... "ऐसी ही बात है",गुन्जा बोली... "ला ! अगर इतनी जिद कर रही है तो फिर दे रोटी,मैं खाकर ही मानूँगा",मुनीम जी बोले... "नहीं! हम तो ऐसही कह रहे थे",गुन्जा बोली... "नहीं! अब तो मुझे खाना है",मुनीम जी बोले... इसके बाद सकुचाते हुए गुन्जा ने अपना स्टील का दो खाने का डब्बा मुनीम जी के आगे बढ़ा दिया,सूखी रोटी और आलू की तरकारी थी डब्बे में और मुनीम जी ने उस दिन गुन्जा के डब्बे से खाना खा लिया, फिर ऐसे ही दिन गुजरे अब गुन्जा दिनबदिन खूबसूरत होती जा रही थी,अब मुनीम जी भी अपना खास ख्याल रखने लगे थे,पैतीस साल के मुनीम जी अब रोज नया कुरता बदलते ,बाल रंगते और अपनी हजामत बनाना तो वे बिलकुल भी नहीं भूलते थे, उनके भीतर आ रहा बदलाव लोगों की समझ से परे था.... फिर एक रोज़ गुन्जा से मिलने उसकी सहेली कैलशिया वहाँ आईं और उससे बोली... "तू तो अब दिखती ही नहीं है गाँव में" "हाँ! यहाँ बहुत काम होता है,फुरसत ही नहीं मिलती",गुन्जा बोली... "लेकिन लोग तो तेरे बारें कुछ और ही कह रहे हैं",कैलाशिया बोली... "लोग तो कुछ भी कहते हैं", और ऐसा कहते कहते ना जाने गुन्जा को क्या हुआ ,वो खलिहान के किनारे पहुँची और उल्टियाँ करने लगी,उल्टियाँ करने के बाद कैलाशिया ने उससे पूछा... "तू ठीक तो है ना!", "हाँ! हम बिलकुल ठीक हैं",गुन्जा बोली.. "फिर ये उल्टियाँ,कहीं गरभ तो नहीं ठहर गया",कैलशिया बोली... "ये तो सोचा नहीं हमने",गुन्जा बोली... तब कैलशिया उससे बोली.... "ये बड़े लोग हैं गुन्जा,ऐसी नासमझी मत कर,नहीं तो कहीं की नहीं रहेगी", "ये नासमझी नहीं,ये तो प्रेम है कैलशिया!",गुन्जा बोली... "उस बुढ़ऊ मुनीम से प्रेम,उमर देखी है उसकी,इस बच्चे का क्या करेगी",कैलशिया ने पूछा... "हम सब सम्भाल लेगें",गुन्जा बोली... "अपने बूढ़े बाप के बारें में तो कुछ सोच,वो तो जीते जी ही मर जाऐगा,",कैलशिया बोली... "ऐसा कुछ नहीं होगा,मुनीम जी सब सम्भाल लेगें",गुन्जा बोली... "तो फिर मर!",और ऐसा कहकर कैलशिया वहाँ से चली गई,लेकिन ये बात जंगल की आग की तरह गाँव भर में फैल गई और गुन्जा का बाप चरनदास अरज लेकर जमींदार के पास पहुँचा,जमींदार ने साफ इनकार कर दिया कि वो इस मामले में कुछ नहीं कर सकते,मुनीम जी के बीवी बच्चे हैं,उनका क्या होगा,अगर तेरी बेटी का साथ दिया हमने तो लोग क्या कहेंगें... और ये बात एक लठैत ने सुबह सुबह आकर मुनीम को बता दी,बात तो पक्की थी इसलिए मुनीम जी डर गए कि अब क्या होगा,लोग क्या कहेंगे,उस समय तक गुन्जा खलिहान में नहीं आई थी,आने वाली थी, इसलिए मुनीम जी ने उस लठैत से कह दिया कि तू खलिहान के बाहर जो पोखर है वहीं पहुँच और झाड़ियों में छुप जाना,मैं भी वहीं पहुँचता हूँ... दोनों वहाँ पहुँचे और जब गुन्जा वहाँ आई तो मनसुख लाल ने उससे कहा... "ए...वहाँ कहाँ जा रही है,मैं यहाँ हूँ,चल थोड़ी देर यहाँ बैठते हैं" फिर क्या था गुन्जा वहाँ पहुँच गई तो मनसुख लाल ने उससे पूछा... "क्या वो बात सच है" "हाँ! बिलकुल सच है",गुन्जा लजाते हुए बोली... "ओह...चलो ठीक है",मनसुख लाल बोला... "आपको खुशी नहीं हुई ये सुनकर",गुन्जा ने पूछा.... "हाँ! बहुत खुशी हुई" और ये कहकर मनसुख लाल ने पीछे से बहुत जोर का एक पत्थर गुन्जा के सिर पर दे मारा, पत्थर लगते ही गुन्जा वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी और फिर मनसुख लाल ने अपने गमछे से उसका मुँह बंद कर दिया, इसके बाद वो लठैत भी उसके पास आ गया और दोनों ने मिलकर एक बड़ा सा पत्थर गुन्जा के पेट पर रख दिया, वो बड़ा सा पत्थर वो उसके पेट पर तब तक रखें रहे,जब तक कि उसका गर्भ गिर ना गया,इसके बाद वे लहुलूहान गुन्जा को वहीं छोड़कर भाग खड़े हुए.... कुछ देर के बाद वहाँ से गुजरने वाले लोगों ने गुन्जा को देखा तो उसे फौरन कस्बे के अस्पताल ले गए, डाक्टरनी ने गुन्जा को बचाने की बहुत मेहनत की और वो बच गई लेकिन बच्चा नहीं बचा.... ये खबर सुनकर मनसुख लाल के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी कि जब गुन्जा ये बात सबको बताऐगी तो लोग क्या कहेगें,छोटा सा कस्बा था और छोटे से कस्बे की छोटी सी क्लीनिक,रातोंरात मनसुख दो लठैतों के साथ वहाँ पहुँचा और गुन्जा को वहाँ से ले आया,इसके लिए उसने डाक्टरनी को मुँहमाँगी रकम भी दे दी और वे सब रातों ही रात गुन्जा वो एक खेत में ले गए और वहाँ उसका गला दबा दिया,... अब मनसुख निश्चिन्त था कि लोग अब कुछ नहीं कहेगें,पुलिस भी आई चरनदास ने रिपोर्ट भी दर्ज करवाई लेकिन जमींदार ने रुपए देकर पूरा मामला रफा दफा करवा लिया...... इतना सब हो गया ,ना लोगों ने कुछ कहा और ना ही कोई आवाज़ उठाई, लोग क्या कहेंगे इसी चक्कर में गुन्जा की जान ले ली गई... ये एक सत्य घटना पर आधारित कहानी है,बस पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं....

समाप्त... सरोज वर्मा...

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2 Comments

Babita patel

03-Jul-2024 08:29 AM

👍

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Anjali korde

12-Jun-2024 09:23 AM

V nice

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