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उम्मीद

मैंने मूवी की एक क्लिप देखी। उसमें एक दृश्य था- मूवी का खलनायक धार्मिक स्थल के चबूतरे पर बैठकर मदिरा पान करता है साथ में मांसाहारी भोजन भी ग्रहण करता है। पुजारी के रोकने और मना करने पर वह उसे धक्का देकर कहता है, “ये मेरा क्या बिगाड़ लेगा।”

पुजारी दुखी होकर कहता है, “तूने अच्छा नहीं किया तुझे दण्ड अवश्य मिलेगा।”
ये सुनकर खलनायक गुस्से से पुजारी को दो लात भी मार देता है और चबूतरे पर जूते सहित पैर रखकर मदिरा और मांसाहारी भोजन जारी रखता है। 
उसके चमचों की भीड़ में से भी एक-दो उससे कहते हैं, “बाॅस चलो यहाँ से कहीं और बैठेंगे।”
एक-दो बार वह उन्हें नज़रंदाज करता है किन्तु उनके बार-बार कहने पर खड़ा हो जाता है और गुस्से से दारू की बोतल चबूतरे पर फैंक कर चकनाचूर कर देता है। 
चबूतरे पर काँच के साथ मदिरा भी बिखर जाती है।
क्लिप यहीं समाप्त हो जाती है। 

धार्मिक स्थल पर की गई ज्यादती का इसे क्या दण्ड मिलेगा?? ये सोचकर मैंने YouTube पर मूवी सर्च की। चूंकि इस प्रकार की मूवी मुझे पसंद हैं। जैसे- किसी दैवीय शक्ति या आत्मा का आगमन.. और उसके द्वारा मूवी संचालन!
इसलिए मूवी को देखना शुरू किया। मूवी आगे बढ़ती गई मेरी उम्मीद भी बढ़ती गई कि अब कुछ चमत्कार होगा विलेन को दण्डित करने किसी दैवीय शक्ति का आगमन होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ वह नायक के ही हाथ बार-बार पिटता रहा और मात खाता रहा।

मेरी उम्मीद फिर भी नहीं टूटी, मुझे लगा कि मूवी के अंत में शायद कुछ ऐसा होगा कि खलनायक के हालात उसे उसी धार्मिक स्थल के चबूतरे पर ले जाएंगे और दैवीय शक्ति उसे पछाड़कर जीवन लीला समाप्ति के साथ मूवी का The End होगा। 
लेकिन ऐसा नहीं हुआ पूरी फिल्म में उस धार्मिक चबूतरे को दुबारा नहीं दिखाया गया। खलनायक का अंत नायक के हाथों करा के फिल्म का The End किया गया।

मुझे बहुत पछतावा हुआ कि मैंने नाहक़ ही अपना वक्त बर्बाद किया, जो चाहिए वह नहीं मिला…!!

साथियो ऐसे ही हमारी जिंदगी के साथ होता है, एक उम्मीद के सहारे जीवन चलता रहता है, अब मुराद पूरी होगी!! अब ईश्वर सुनेगा!!
अब उसकी दया दृष्टि पड़ेगी। शायद अब सुन ले, अब नज़र-ए-इनायत हो जाए..!! 

जीवन चलता रहता है उम्मीद बरकरार रहती है। उम्मीद कायम रखते-रखते उम्मीद का वजूद ही खत्म हो जाता है, क्योंकि जीवन की लौ बुझने लगती है। अंतिम सांसें चल रही है। जिंदगी टिमटिमा रही है। शरीर हल्का हो रहा है! आत्मा देह छोड़ रही है! देह और आत्मा का बिछोह हो रहा है ऐसे में उम्मीद कहाँ..??

उम्मीद तो विलीन हो गई, उखड़ती साँसों के साथ टूटकर उसका वजूद ही खत्म..!!
साँसें खत्म, उम्मीद भी खत्म..!!

यही जीवन का चरमोत्कर्ष है..!!

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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2 Comments

Anjali korde

13-Jun-2024 08:19 AM

Amazing

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Sarita Shrivastava "Shri"

12-Jun-2024 10:51 PM

👍👍

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