Sadhana Shahi

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सरला निवास (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु 15-Jun-2024

सरला निवास (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु

सरला देवी पाँचवें दशक को पार कर चुकी थीं। जब उन्होंने अपने ज़िंदगी का तीसवाँ वसंत देखा था तभी घरेलू राजनीति में उन्हें अपने छोटे से बच्चे को लेकर घर छोड़कर दर-दर भटकने पर मज़बूर होना पड़ा था। घर छोड़ते समय उनके मन में सिर्फ़ एक ही अभिलाषा, एक ही उत्कंठा, एक ही इच्छा थी वो यथाशीघ्र अपना ख़ुद का घर खरीदेंगी। उनके पास कई बार उनका छोटा सा सपनों का घर खरीदने लायक पैसा आया। किंतु घर के सभी निर्णय पति के हाथ में होने के कारण या यूँ कहें पति के अति महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति का होने के कारण वो अब तक घर न ले सकीं और पैसे ख़त्म होते गए।

ज़िंदगी जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी उनके घर की चाह उन्हें जकड़ती जा रही थी।

50वाँ वसंत पार करने के पश्चात उनका घर उनके दिलों- दिमाग में छा गया था। उनके जीवन का सिर्फ़ दो ही मकसद था बेटे को पढ़ा- लिखा कर किसी मुकाम पर पहुंँचाना और उनका घर। उनका पहला मकसद तो लगभग पूरा हो चुका था लेकिन दूसरा मकसद अभी भी उनसे काफ़ी दूर खड़ा दिखाई पड़ रहा था।

अब वो अपने सपने को लेकर अपने बच्चे की तरफ़ ललचाई हुई नजरों से देखती थीं। क्योंकि बच्चे को पढ़ाने- लिखाने में अब वो लगभग खाली संदूक बन चुकी थीं।

वक्त के थपेड़ों को सहते-सहते अब वो शरीर और दिमाग दोनों से स्वयं को कमज़ोर महसूस करने लगी थीं।

उनकी ऐसी हालत देखकर उनका घर अब मात्र उन्हीं का नहीं बल्कि उनके बेटे का भी सपना बन चुका था।

श्रावणी पूर्णिमा को रिमझिम बरसात हो रही थी हर घर से आती हुई शंख की ध्वनि तथा धूप की ख़ुशबू पूरे वातावरण को सकारात्मकता प्रदान कर रही थी।

इसी सकारात्मक वातावरण में सरला जी का बेटा अपने चेहरे पर अपार खुशियों को धारण किए हुए सरला जी से कहने लगा मांँ जल्दी से तैयार होइये हमें कहीं जाना है।

इतना कहते ही वह अलमारी से एक सुंदर सी साड़ी, सिंदूर, बिंदी आदि तैयार होने के लिए सरला जी को जिन- जिन चीजों की आवश्यकता थी वह सब कुछ लाकर उनके सामने रख दिया।

सरला जी पूछीं कहांँ जाना है? कुछ बतायेगा। बेटे ने कहा, पहले तैयार तो होइए जहांँ जाना है पहुंँचकर देख लीजिएगा।

आनन- फानन में सरला जीऔर उनके पति तैयार हुए। उनके पति,बेटा, तीनों गाड़ी में बैठकर चल दिए गाड़ी एक सामान्य से घर के सामने खड़ी हुई। दरवाज़ा खटखटाने पर उस घर से बड़े ही भद्र दिखने वाला एक अधेड़ सामने आये। जिनको देखकर सरला जी के बेटे ने बड़े ही अदब से उनका पैर छुआ और उन्होंने सरला जी के बेटे को गले से लगा लिया।

घर के अंदर जाने पर कुछ पेपर हस्ताक्षर हेतु सरला जी का इंतज़ार कर रहे थे जिस पर एक- एक करके बिना कुछ बताए सरला जी के बेटे ने उनसे हस्ताक्षर करवाया।

वो जितनी बार हस्ताक्षर कर रही थीं उतनी बार उनके मन में अनेकों प्रश्न उनके अंदर अंतर्द्वंद्व मचा रहे थे।

हस्ताक्षर की प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात एक बड़ा ही स्वादिष्ट मिठाई का डिब्बा वही व्यक्ति लेकर आए और टेबल पर रख दिए।सरला जी का बेटा उसमें से तीन मिठाई निकाल कर अपने माता-पिता तथा उस तीसरे व्यक्ति का मुँह मीठा कराया।

और साथ ही उसने चहकते हुए कहा, मुबारक हो माँ आपका सपना पूरा हुआ। अब आप सरला निवास की मालकिन हैं। सरला जी की आंँखों से ख़ुशी का समंदर बह निकला। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वो अपनी ख़ुशी किस प्रकार जाहिर करें। बस उनकी आंखों से होती हुई खुशी की बरसात थमने का नाम नहीं ले रही थी।

तभी उनके बेटे ने सरला जी को गले से लगाया और बच्चों की तरह चुप कराते हुए कहा,आप रो रही हैं आपकी इतने दिनों की तपस्या पूरी हुई है, आपका सपना साकार हुआ है, आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं आपके सभी सपनों पर इसी प्रकार ख़रा उतर सकूँ।

वो तीनों उसी गाड़ी में बैठकर अपने किराए के घर में आए किंतु अब वह किराए का घर उनके लिए ब्याहता बेटी के मायके की तरह था। किंतु यह नहीं पता था कि इस मायके से उन्हें कुछ ही घंटे में विदाई लेनी है। अपने पुराने घर आने के पश्चात बेटे ने भगवान का मंदिर, अपनी मांँ का सामान और थोड़े से रसोई के बर्तन उसी कार में डाला और श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही अपने छोटे से सपनों के घर में अपनी मांँ के साथ गृह प्रवेश कर लिया।

यद्यपि कि घर बहुत बड़ा नहीं था। दो बेडरूम, ड्राइंग रूम, डाइनिंग रूम,पूजा रूम, स्टोर रूम,एक बहुत छोटा सा स्टडी रूम के अलावा छोटी सी किंतु चमेली, गुड़हल, गुलाब, डेहलिया,मनी प्लांट,बाँस,से लहहाती,खुखबू बिखेरती बालकनी। सरला जी को स्वर्गानुभूति कराते थे।

डाइनिंग हॉल से जाती हुई गोल स्टील की सीढ़ियांँ उन्हें बेहद पसंद थी। वो नित्य क्रिया से निवृत होकर पूजा- पाठ करने के पश्चात थोड़ी देर छत पर जाकर जरूर बैठतीं। छत पर भी उन्होंने गमले में ही आम, बेल, हरसिंगार, मौसमी सब्जियांँ सब कुछ लगा रखा था उसी के साथ जगह-जगह पर चिड़ियों का चारा- पानी भी रखी हुई थीं। छत पर जाकर इन हरे- भरे पौधों को, चहचहाते पक्षियों को देखना उन्हें सकारात्मक ऊर्जा से भर देता था।

पंडित जी आए एक छोटी सी पूजा हुई और उसी दिन से सरला जी अपने स्वर्ग में रहने लगीं। सरला जी के बेटे और पति ने दो-तीन दिन में उस पुराने घर को ख़ाली कर दिया। अपने घर में रहते ही उनकी सारी बीमारियांँ उनसे मोह मोड़ लीं और अब खुशियांँ, सुख उनके जीवन के अभिन्न अंग बन चुके थे। किंतु यह ख़ुशी उनके जीवन में बहुत लंबे समय तक उनका साथ न निभा सकी। अभी 3 वर्ष ही अपने घर में रह पाई थीं कि एक दिन रात को अचानक उन्होंने अपने बेटे से कहा, बेटा आज मेरा मन बहुत घबरा रहा है, आज तू मेरे साथ रह पता नहीं क्यों आज मुझे ऐसा लग रहा है कि कोई मुझे बहुत दूर लेकर जाने वाला है। बेटे ने हंँसते-हंँसते कहा, जाना है न अगले ही महीने हम लोगों को अयोध्या, वृंदावन,काशी कन्नौज आदि जगहों पर पंद्रह दिन का टूर करने जाना है। लेकिन बेटे को यह क्या पता था कि सरला जी तो कहीं और टूर करने जाने वाली हैं। जहांँ से उनका कभी भी आना ही नहीं होगा।

रात्रि अपने परवान पर थी तभी सरला जी की तबीयत अचानक बहुत अधिक खराब हो गई। उनके पति और उनका बेटा अभी कुछ सोच ही पाते कि वो अपने बेटे की गोद में सर रखकर उसके सर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद देते हुए एक ऐसी यात्रा पर चली गईं जहाँ से उन्हें कभी वापस नहीं आना था।

अपनी मांँ को खोकर उनका बेटा बहुत दुखी था। क्योंकि बस तीन ही लोगों की तो दुनिया थी उसकी। अब उस दुनिया में सिर्फ़ दो ही लोग थे। किंतु उसे इस बात की ख़ुशी थी कि वह जीते जी अपनी मांँ के सपनों को पूरा कर चुका था।

उसकी मांँ देवलोक से अपने इस सपने को पूरा करने के लिए आशीर्वाद का पुष्प अपने बच्चे पर बरसा रही थीं जिसमें नहाकर उनका बच्चा अपने आप को धन्य महसूस कर रहा था।

साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

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2 Comments

Babita patel

03-Jul-2024 08:48 AM

👍👍👍

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shweta soni

15-Jun-2024 11:17 PM

👌

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