गंगा सप्तमी (कविता) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु-16-Jun-2024
गंगा सप्तमी (वैशाख, शुक्ल, सप्तमी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु
वैशाख माह और शुक्ल पक्ष, तिथि सप्तमी जान। अति पावन यह तिथि है भक्तों, गंगा सप्तमी मान।
माॅं गंगा की करें आराधना, पूजें विधि-विधान से । पावन ,मोक्षदायिनी माॅं हैं, कह दें सकल जहान से।
आजीवन अनुष्ठान जब साधें, प्रयोग करें हम गंगाजल। सकारात्मकता यह फैलाए, तन, मन ,स्थल निर्मल।
इस दिन पूजें माॅं गंगा को, इनके जल का छिड़काव करें। ग्रह-बाधा को दूर करें माॅं, उन्नति का सदा भाव भरें।
पीतल का एक लोटा ले लें, भर लें उसमें गंगाजल। उत्तर- पूर्व दिशा में रख दें, वास्तुदोष मिटे उस पल।
बुरे स्वप्न रजनी ले आए , रात्रि भयावह लगने लगे। गंगाजल छिड़कें शैय्या पर, सुख का पवन है बहने लगे।
जीवनदायिनी माॅं गंगा हैं, पापनाशिनी हैं माता। इनके पुनर्जन्म की याद में, गंगा सप्तमी सदा मनता।
पूरे भारत में है मनता , प्रयाग,ऋषिकेश में महत्ता भारी । गंगा दशहरा माॅं उतरीं धरा पर , अथाह वेग ना वर्णनकारी।
मार्ग में इनके जो आ जाए, उसका समूल माॅं नाश करें। ऋषि जाह्नु आश्रम पहुंँची, ऋषि क्रोधाग्नि में तुरंत भरे।
गंगा का जल पी गए पूरा, हाहाकार मचा चहुॅं ओर । कर जोर विनय किए भगीरथ, पूर्वज उद्धार का मिल गया ठौर।
जह्नु सप्तमी भी इसे हैं कहते, ऋषि ने इनको पुत्री माना। पुनर्जन्म मिला माता को, सकल धरा इस दिवस को जाना।
राजा सगर के साठ हजार पुत्रों का, इस दिन था उद्धार हुआ। सबके सब को मोक्ष मिल गया, सब का बेड़ा पार हुआ।
वामन पुराण यह बात बताता, माॅं गंगा का जन्म समझाता। आओ इसकी बात सुनें, गहकर इसको सदा गुनें।
श्री हरि ने वामन रूप में, एक पग नभ की ओर किये। महर्षि ब्रह्मा थे चरण पखारे, जल को कमंडल में थे लिये।
जल में इतना तेज विराजित, माॅं गंगा का जन्म हुआ। हिमालय राज को सौंपे महर्षि, देवी पार्वती,माॅं गंगा का जन्म हुआ।
दूजी कथा कुछ और है कहती, आओ इसको भी जानें। इसका तथ्य भी जान समझकर, इसकी बात को भी मानें।
नभ में वामन पग जो किए थे, आघात लगा उनके पद में। संग में नभ में छेद हो गया, त्री धारा फूटी थी क्षण में।
एक धारा थी धरा पर आई, दूजी स्वर्ग लोक में जाई। तीजी गई पाताल लोक में, तभी माॅं गंगा त्रीपथगा कहलाईं।
साधना शाही, वाराणसी
Anjali korde
17-Jun-2024 12:07 AM
Amazing
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Varsha_Upadhyay
16-Jun-2024 03:34 PM
Nice
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