HUMSAFAR
864- पुलिया- 103 टनेल्स् -999-मोड से गुजरती हुइ शिवालिक-एक्सप्रेस-कालका से शिमला तक की टोय ट्रैन् के छोटे
लोकोमोटिव इंजन ने शिमला की पहाड़ियों में आर्किटेक्ट-अजायबी समान ब्रिज-नं 493 पर कुछ
पल रूककर सास ली। सुबह 11 बजे चारो और हरियाली-खुला आसमान-गहरी पहाड़िया-छोटे दिखाई
देते रास्ते-बादलो से भरा आसमान-रिमझिम-रिमज़िम बारिश-दूर-दूर-बादलो के गुच्छे से बने
हुए-गद्दे सा नजारा, कही बादलो से निकालता हुवा धुआँ निचे से और निचे गिरते हुए छोटे-छोटे
झरने, प्यार और रोमांस के लिए परफेक्ट मौसम छाया हुवा था।
स्नेहा ने आज पुरे डेढ़ महीने के बाद खुली आज़ादी
की साँस ली थी| इंजन ने फिर से व्हिसल मारी और फिर से वक्री गति शुरू कर दी| बचपन से
ट्रैन की दीवानी स्नेहा बारिश के बावजूद हर एक मोड् के माध्यम से पुरे शिवालिक एक्सप्रेस
का लुत्फ़ उठा रही थी। उसकी नजर पास बैठे विनोदबाबू पर गयी. उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं
थे। वो भी खुले आसमान को तक रहे थे लेकिन हमेशा की तरह उसकी आंखे भावशून्य, चमकहीन थी।.
श्रूष्टि के इस अवर्णनिय आनंद का मोल भी जैसे उसके स्वभाव में नहीं था। उसके लिए हर
एक परिश्थितियां एकसमान थी। दुःख सुख शोक मौज मस्ती पैसा गरीबी रुत्वा कपडे जैसे शब्द
जैसे उसे कभी प्रभावित करते ही नहीं थे। स्नेहा सिकुड़कर बैठी हुयी थी| वो ज़िन्दगी में
कभी हार मान ने वाली लड़की नहीं थी।
"ओह...गॉड...." आहे भरकर स्नेहा
फिर से चुपचाप विंडो में से झाकने लगी। इतनी हसीन वातावरण में भी उसे कुछ पल पसीना
छा गया। लेकिन आदत से मजबूर फिर से वो इन हरीभरी वादियों में खो गयी। पिछले दो महीने
से उसके जीवन में बीते हुए तूफ़ान से आगे उठकर जैसे उसे ज़िन्दगी की गहराई समज में आ
गयी थी। अहमदाबाद के जानेमाने इंडस्ट्रियलिस्ट नरोत्तम दीवान की इकलौती वारिस स्नेहा
आखिर में भूतकाल की खाइयो में डुब गयी।
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दो महीने पहले की उसकी लाइफ एकदम मस्त बनी हुयी
थी। कॉलेज से लेकर एम.बी.ए. की वो फर्स्ट क्लास स्टूडेंट रह चुकी थी। आखिर उसको ही
सारा कारोबार संभालना था, क्युकी नरोत्तम दीवान के पास ढेर सारा काम, बेशुमार दौलत,
बेटी स्नेहा और एक वफादार पी.ए. विनोदबाबू ही था। विनोदबाबू एक कर्तव्यनिष्ठ और विश्वासु
मैनेजर थे। बीवी बहुत साल पहले चल बसी थी। वैसे स्नेहा बहुत ही सुशिल और होशियार लड़की
थी। लेकिन उसे लाइफ बनाने के साथ ज़िन्दगी भरपूर एन्जॉय करने में भी विश्वास था।
शायद इसीलिए उसके जीवन में रोहित प्यार बनकर छाया
हुवा था। रोहित बेहद खूबसूरत और पढ़ने में भी होशियार लड़का था। शायद इसीलिए स्नेहा उसकी
तरफ खींची चली गयी थी। दोनों ने कई बार अहमदाबाद के लॉ-गार्डन में अच्छा समय बिताया
था कभी लकी-रेस्टोरेंट की मशहूर चाय तो कभी मस्का-बन कभी भेलपुरी तो कभी पकोड़े कभी
रिलीफ सिनेमा की बालकनी तो कभी मल्टीप्लेक्स के सोफे पर बैठे बैठे दोनों ने अपने कॉलेज
का अच्छा समय बिताया था। लेकिन न जाने क्यों नरोत्तम दीवान को उसके रिश्ते से ऐतराज़
था। उसने स्नेहा को रोहित के साथ रिश्ता बढाने से मना कर दिया था। इसके बावजूद स्नेहा
अपने आप को नहीं रोक पायी। वैसे वो अपने डैड को भी नाराज नहीं करना चाहती थी। बस रोहित के नाम से वो पिघल जाती थी। न जाने रोहित में क्या समोहन था की वो अपने आप को
रोक नहीं पायी।
जब उसे लगा की वो रोहित के बिना नहीं रह सकेगी तो
उसने अपने डैड के सामने प्यार का इज़हार कर लिया और कह दिया की उसकी मर्जी हो या न हो
वो रोहित से ही शादी करेगी।
एक दिन जब स्नेहा को देरी हुइ उस दिन स्नेहा का
अपने डैड से बड़ा जगडा भी हो गया। दोनो बाप बेटी मे बडी बहस चली और नरोत्तम दिवान
से अनजाने मे एक गलती हो गइ और उस के मुह से “Get Out” शब्द निकल गया
। अब प्रैक्टिकल को ही लाइफ मानती स्नेहा आसानी से घर से बहार निकल गयी
और रोहित के साथ घूमने चली गयी। उस दिन हलकी हलकी बारिश थी और स्नेहा लॉ-गार्डन के
पास रोहित का इंतज़ार कर रही थी। कुछ ही देर में रोहित अपनी पल्सर बाइक को लेकर आ गया।
स्नेहा उसके पीछे बैठ गयी और दोनों चल पड़े ज़िन्दगी की आज़ादी सेलिब्रेट करने के लिए।
रोहित, ‘डिअर......आज मूड क्यों ख़राब है ?
स्नेहा,’डैड से फिर बहस हो गयी और मैंने कह दिया
की मै तुज से ही शादी करुँगी चाहे जो हो जाये।‘
रोहित ने बाइक जट से रोक ली और पलटकर स्नेहा को
देखने लगा। उसकी आँखों में कई भाव बदल रहे थे।
स्नेहा ने पूछ लिया, "क्या हुवा?"
सारे भाव समेटते हुए रोहित बोला, "नहीं यार...लेकिन
तुजे अपने डैड को नाराज नहीं करना चाहिए था। अभी हमारे सामने पूरी लाइफ पड़ी है पहले
मै कुछ बन जाऊ फिर शादी की बात आएगी न।"
स्नेहा, "तब तक डैड मुझे तुज से मिलने तो क्या शायद
शादी भी करा देते। मेरे पास और कोई चारा नहीं था यार। मै तेरा जिक्र हमारे घर में होने
से परेशान हो जाती हु। मै लाइफ एन्जॉय करने में बिलीव रखती हु..न की दुसरो की बाते
सुनकर जीना। फिर भले ही वो मेरे डैड ही क्यों न हो।"
रोहित ने उसका मूड देखकर कहा, "ओके बाबा लेकिन अभी
तो मूड ठीक कर लो यार। चल आज कर्णावती क्लब में चलते है।"
स्नेहा ने पुछा, "क्यों ?"
रोहित, "अब तु सवाल ज्यादा पुछती हो। यार मूड ठीक नहीं है तो इस से बहेतर कौन सी अच्छी जगह मिलेगी और वैसे भी मेरी लाइफटाइम मेम्बरशिप कब काम आएगी ?"
और जब ६ घंटे के बाद स्नेहा वहा से बहार निकली तब
तक उसकी लाइफ रोहित ने बदल डाली थी। आज पहलीबार रोहित के भरोसे पर सिर्फ और सिर्फ ज़िन्दगी
भरपूर एन्जॉय करने की ज़िद पर स्नेहा ने शराब पी। और बाद में वो अपने आप को नहीं रोक
पा रही थी। पहलीबार पीने से वो आधी होश में और आधी मदहोशी में थी। मजबूरन रोहित को
उसे छोड़ने जाना ही पड़ा।
अहमदाबाद के जजीस बंगलो एरिया आते ही रोहित ने बाइक
स्लो कर दी और स्नेहा को नीचे उतारा। धीरे से अपनी बाहो में आधी लेकर उसने बंगलो में
प्रवेश किया। वो आज पहलीबार स्नेहा के घर आया था। ड्राइंग रूम में उसे देखकर नरोत्तम
दीवान कुछ पल देखते ही रह गए। उसने जल्दी से जाकर स्नेहा को संभाला और सोफे पर बिठा
दिया और सुलगती आँखों से रोहित को देखने लगे।
रोहित जैसे ही मुड़ने लगा स्नेहा के डैड की आवाज़
गूंज उठी, "लड़के आज तू पहली और आखिरीबार मेरे घर आया है। आज के बाद मै नहीं चाहूंगा
की तेरी सूरत मै और मेरी बेटी दोनों में से कोई देखे।"
रोहित रुक गया और पलटकर देखने लगा फिर उसने बडी
मासुमियत से कहा, "सर हम दोनों एकदूसरे को चाहते है।"
"शट योर माउथ अप यू स्काउंड..." और अभी मि. दीवान
कुछ आगे बोले उसके पहले स्नेहा चीख उठी, "Stop It Dad, enough is enough…you may do
whatever you can… but still I will love Rohit और बस
ये बहस यही ख़त्म|"
मि. दीवान अपनी जिद्दी लडकी को देखते ही रहे और
स्नेहा ऑलमोस्ट रोहित को घसीटते हुए बाहर ले गयी और उसके साथ चली गयी। उस रात रोहित
स्नेहा को अपने घर ले गया और बेचैन स्नेहा को दिलासा दिलाने की लाख कोशिश करी। लेकिन
स्नेहा का गुस्सा सातवे आसमान पर था। आखिर बहुत समजाने पर वो टूट गयी और रोहित की बाहो
में रोने लगी। हारी थकी और आल्कोहोल से फटे दिमाग ने आखिर अपना जादू चला दिया और पहलीबार
स्नेहा ने रोहित को अपनी जवानी लुटाने पर मजबूर कर दिया। दोनों शरीर आखिर सारी मर्यादा
छोड़कर एकदूसरे में समां गए। बहार तेज बारिश के साथ शायद तूफ़ान शुरू हो चूका था। सुकून
से रोहित की बाहो में लिपटी स्नेहा को जरा भी अंदाजा नहीं था की वो रात सचमुच उसकी
लाइफ में तूफ़ान ला चूका था.।
*********
टनल नं 103 क्रॉस कर के जब टॉयट्रेन ने
शिमला स्टेशन पर अपनी यात्रा समाप्त की तब स्नेहा अपने खयालो से बहार आयी। विनोदबाबू
कुली को सामान देने में व्यस्त थे और स्नेहा धीरे से कोच से बहार आयी। अभी अभी हल्की
बारिश छायी हुयी थी। स्नेहा ने शिमला स्टेशन से दूर दूर तक हरीभरी पहाड़ियों को देखा
और गहरी सांसे लेकर प्रकृति का अनन्य आनंद उठाया।
दोनों को लेने के लिए ग्रांट होटल का व्हीकल आया
था। कुछ ही समय के बाद दोनों कमरे में थे। एक आलीशान महल जैसा रूम बुक करवाया था विनोदबाबू
ने। स्नेहा रूम को भरपूर देखने के बाद विनोदबाबू को देखने लगी जो अभी भी सामान व्यवस्थित
करने में लगे हुए थे। स्नेहा तुरंत फ्रेश होने चली गयी। एक घंटे के बाद वो बाहर आयी
तब भी विनोदबाबू वेइटर को कुछ सूचनाएं दे रहे थे।
स्नेहा नजदीक आयी और धीरे से विनोदबाबू के पास जाकर
कहा, ‘Thanks
for nice arrangements’.
विनोदबाबू ने वोही भावशून्यता से अपने शर्ट को ठीक
करते हुए कहा, “My
pleasure Madam”.
और स्नेहा का मूड फिर से ऑफ हो गया, “My foot...” उसके
मुँह से निकल गया|
विनोदबाबू ने फिर से पूछा, “आप् ने कुछ कहा ?”
स्नेहा ने गुस्से से उसके सामने देखकर कहा, “No nothing.” और
विनोदबाबू वेइटर के साथ बाहर् जाने लगे।
स्नेहा अचानक होश में आयी और ऑलमोस्ट चिल्ला उठी,
“कहा जा रहे हो ?”
“जी मै बस ये बाजु में कमरे में ही हु”, विनोदबाबू
ने कहा।
स्नेहा दौड़कर दरवाजे के पास गयी और जैसे ही वेइटर
बहार निकला उसने अंदर से रूम लॉक कर दिया और गुस्से से विनोदबाबू को देखने लगी। अभी
अभी ताजी नहायी हुयी स्नेहा ने सिर्फ टॉवल पहना हुवा था और सर से पानी की बुँदे टपक
रही थी।
लेकिन इतना हसीं नजारा भी विनोदबाबू के लिए स्वाभाविक
ही था । स्नेहा ने अपने हाथो से अपने सर को जोर से मारा और फिर से चिल्लाई, “किस मिटटी
से बने हुए हो । क्या मेरा ये रूप देखकर आप को कुछ नहीं हो रहा ।“
विनोदबाबू फिर भी चुप रहे. स्नेहा जल्दी से और नजदीक
आयी और फिर से उसकी आँखों में आंखे डालकर सुलग उठी, “आप से बात कर रही हु, मेरे सामने आंख उठाकर बात
का जवाब दीजिये ।“
विनोदबाबू ने अपनी पलकें उठाकर कहा, “Ma’m”;
“उफ़..ये Ma’m कितना
चीप वर्ड बन गया है पता है आप को !” ,स्नेहा ऑलमोस्ट रो उठी थी |
विनोदबाबू ऐसे ही निस्पृह खड़े रहे और उसने कुछ देर
पर कहा, “ I know आप पर
क्या बित रही है।“....फिर कुछ पल के बाद बोले,”But हमारे
कॉन्ट्रैक्ट में....”
बस इतना सुनते ही...
”कॉन्ट्रैक्ट..कॉन्ट्रैक्ट..कॉन्ट्रैक्ट..माय फुट
Go to hell with the कॉन्ट्रैक्ट.
अब यहाँ शिमला आप मुझे कॉन्ट्रैक्ट की शर्त सुनाने के लिए लाये हो क्या ?” स्नेहा
की आँखों में से अंगारा और आंसू दोनों एकसाथ उसे बेबस कर रहे थे ।
"No Ma’m…I am very sorry…but as per…para no. 9 of the..contract…” विनोदबाबू आगे बोले
उसके पहले स्नेहा अपने कानो पर दोनों हाथ रखकर बिखर उठी, प्लीज...प्लीज...प्लीज मेरे साथ कॉन्ट्रैक्ट की बाते
अब न करे। मै आप की क़ानूनन् बीवी बन चुकी हु। यू आर माय् हस्बैंड और...और..और बस मै
सिर्फ इतना जानती हु की मै यहाँ पर दुनिया के सारे दर्द भूलने शिमला की हसीन वादियों
में अपनी पति जो सिर्फ और सिर्फ मेरा पति है...न कोई नौकर..न कोई कंपनी का कर्मचारी
है...मै उसके साथ अपनी लाइफ के हसीन पल गुजारने आयी हु। पिछले कुछ दिनों ने मुझे नौच
डाला है। मै सब के साथ लड़ाई लड़ते लड़ते थक गयी हु। मुझे सुकून चाहिए मेरे पतिदेव...मुझे
सिर्फ कुछ सुकून चाहिए...मुझे अपना प्यार भीख में दे दो प्लीज...प्लीज..मुझे कुछ और
नहीं चाहिए...मुझे सच्चा प्यार दे दो प्लीज..”और स्नेहा बिलख उठी।
उसकी आँखों से आंसुओं का सैलाब बाह उठा.
इसके बावजूद विनोदबाबू ने, “As you wish Ma’m”… कहकर करीब उसे आधे
घंटे अकेला छोड़ दिया|और
स्नेहा फुट फुट्कर रोइ.....।
******
आधे घंटे के बाद विनोदबाबू फिर से लंच और वेइटर
के साथ प्रकट हुए। जैसे ही लंच को छोड़कर विनोदबाबू वापस मुड़े...स्नेहा ने अपने हाथो
से उसकी कलाई पकड़ ली और सुलगती आँखों से उसकी और देखा। विनोदबाबू ने पलटकर उसको देखा
और धीरे से नजर घुमाकर वेइटर को जाने को कह दिय। स्नेहा ने उसका हाथ छोड़ दिया और सुलगती
आँखों से विनोदबाबू को देखते देखते हुए खाने लगी। विनोदबाबू ऐसे ही पथ्थर की मूरत बनकर
खड़े हुए थे। अचानक स्नेहा को गुस्सा आया और उसने चीखकर कहा, “ कम से कम बैठ तो सकते
हो या उसके लिए भी मेरे आर्डर की वेइट करोगे ?”
विनोदबाबू ने धीरे से अपना स्थान लिया। स्नेहा अचानक
खड़ी हुयी और विनोदबाबू का हाथ पकड़कर अपनी और खींच ले आयी और अपने पास बिठा लिया और
कहा, “अपने हाथो से मुजे खिलाओ।“
और पहलीबार विनोदबाबू की आँखों के भाव पलटे, चौकने
के साथ साथ उसकी आँखों में कुछ पल के लिए अजब सा खुमार छा गया और दुसरे ही पल फिर से
वे भावशून्य होकर अपने हाथ से स्नेहा को खिलाने लगे। आँखों में से फिर से आंसू बहने
लगे थे स्नेहा के...लेकिन विनोदबाबू फिर से बिलकुल शांत भावशून्य बन चुके थे।
“आप भी खाओ” ,स्नेहा ने कहा।
कुछ इनकार नहीं किया विनोदबाबू ने और धीरे धीरे
वे भी खाने लगे। बिलकुल स्वश्थ बनकर वो अब स्नेहा को खिलाये जा रहे थे और खुद भी खा
रहे थे। स्नेहा ये देखकर कुछ शांत हुयी थी ।
उसने खाते खाते पूछा, “साथ एक ही कमरे में रहोगे
न ?”
विनोदबाबू ने बिना नज़रे उठाये कुछ पल के बाद धीरे
से जवाब दिया, “प्लीज शाम तक का वक़्त दे दिजिये।“
स्नेहा कुछ पल उसके सामने देख देख खाती रही और्
ये देखकर विनोदबाबू ने अपनी नज़रे जुका ली थी।
अचानक स्नेहा जोर से है पड़ी, “मै भी कितनी बुद्धू
हु। इतना मुज पर बित गया लेकिन ये नहीं समज पायी की प्यार हो जाता है...माँगा नहीं
जाता। ठीक है मै कोई आप पर जबरदस्ती नहीं करुँगी बस सिर्फ इतनी बिनती है की मुझे अकेला
न छोड़िये। मेरे साथ यहाँ एक ही कमरे में ही रहिये। हम दोनों की आबरू को बहार सब के
सामने लिलाम न होने दीजिये। आइ प्रॉमिस मै आप को परेशान नहीं करुँगी.।
”ओके medam”
,जैसे ही ये वर्ड्स विनोदबाबू के मुँह से
निकले स्नेहा जोर से हस पड़ी।
उस रात फिर से जमकर बारिश हुयी और स्नेहा
फिर से भूतकाल में गिर गयी...
रोहित की बाहो में से उठकर स्नेहा जैसे ही सुबह
उठी की उसे न्यूज़ मिले की उसके डैड को सीवियर हार्ट अटैक आया हुवा है। वो जल्द ही हॉस्पिटल
पहुंची लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डैड की चिता को आग देने के बाद भी स्नेहा
रोई नहीं थी क्युकी उसने फैसला कर लिया था की इस स्थिति की जिम्मेदार सिर्फ वोही थी
और उसका प्रायश्चित अब उसके डैड की इच्छा अनुसार ही करेगी। लेकिन जैसे ही स्नेहा के
सामने उसके डैड का अगली रात को वकील के सामने बयां किया हुवा विल आया तो उसकी हालत
बिगड़ गयी। उसके डैड की इच्छा थी की स्नेहा तभी उसकी जायदाद की वारिश बन सकती है जब वो उसके मैनेजर और विधुर विनोदबाबू
से शादी कर ले और उसके एक साल के बाद ही वो वारिश बन सकती है।
उस शाम जब रोहित उसके पास आया तो स्नेहा ने अपने
डैड के विल के बारे में बताया और कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए चल हम दोनों यहाँ से निकल
जाते है। भले ही सारी दौलत किसी ट्रस्ट में चली जाये।"
लेकिन रोहित ने उसे समजाने की कोशिश करी की ऐसे
ही उसके डैड की बरसो की मेहनत बेकार नहीं जानी चाहिए।
स्नेहा ने गुस्से से रोहित को कहा, “तुम समजते क्यों
नहीं उसके लिए मुझे शादी करनी पड़ेगी।
रोहित, “ तो क्या हुवा यार..एक साल की तो बात है
फिर तो हम एक है न। मुझे भी दौलत की लालच नहीं है। लेकिन आखिर तेरे डैड की बरसो की
कमाई हुयी दौलत ऐसे ही थोड़े कोई ट्रस्ट को दान कर दिया जाये यार ।
बात बिलकुल सही थी और मज़बूरी में स्नेहा ने अपने
से १० साल बड़े विनोदबाबू के साथ सिविल मेरेज कर लिया और वो भी कुछ शर्तो के अधीन। ये
कॉन्ट्रैक्ट मेरेज था। मेरेज के दो दिन तक रोहित उसके साथ ही रहा और फिर अचानक दो दिन
वो नहीं आया । स्नेहा ने उसे बहुत कॉल्स किये लेकिन रोहित ने नहीं उठाये।
तीसरे दिन रात को नशे की हालत में रोहित उसके पास
आया और सॉरी बोलकर उसे समाल लिया फिर कहा, “डिअर मुझे २५ लाख रुपयों की जरुरत है।“
“किसलिए?” स्नेहा ने पुछा
।
“अरे सेटल होने के लिए और किसके लिए यार... और वैसे भी ये प्रॉपर्टी कब काम आएगी हम्म.।“ लड़खड़ाते
हुए रोहित ने कहा।
”Are
you mad रोहित ? क्या
तुम्हारे पास पैसे नहीं है ? और तुम्हारी लाइफ तुम खुद सेटल करो तो as a वाइफ
मुझे खुद्दार पति मिलने पर ख़ुशी महसूस होगी| मेरे डैड के पैसो
से अपने पैरो पर खड़े होने से मुझे ऐतराज़ है यार|” स्नेहा ने दलील पेश की।
”देख यार मै बहस नहीं करना चाहता लेकिन पैसे तो
तुजे देने ही पड़ेंगे।. देख यार अपने पर्सनल रिलेशन का मामला है.” रोहित ने अचानक रंग पलटा था।
”माय गॉड रोहित आर यु आउट ऑफ़ सेंस ? तुम मुझे ब्लैकमेल
कर रहे हो क्या ?” स्नेहा चिल्ला उठी और उसने चिल्लाकर वह
नौकरो को इकठ्ठा कर लिया और कहा बहार ले जाओ ये होश में नहीं है”
अब रोहित ने अचानक रूम अंदर से बंध कर लिया और स्नेहा
को लपक लिया और उसे बेड पर डालकर उसके शरीर को दबोचकर कहा, “जानम...मै एक साल तक इंतज़ार
नहीं कर सकता। एक बड़ी डील मेरे हाथो से निकल जाएगी। और इस डील में मेरे डैड मुझे पैसे
नहीं देंगे तो मै तेरे से मांग रहा हु। कल शादी के बाद ये दौलत हमारी ही होने वाली
है. तो आज थोड़ी देने में तेरा क्या जाता है? और प्लीज ना मत कहा वरना हमारे सम्बन्ध
के पोस्टर्स शहरभर मे चिपका दूंगा ।
”यू ब्लडी स्वाइन..” स्नेहा ने कसकर एक लात रोहित को मारी और
फिर से चिल्लाना शुरू किया.
अचानक बैडरूम का नॉब घुमा और विनोदबाबू ने अंदर
प्रवेश किया और कहा, “रोहित प्लीज आप बाहर चले आईये।
रोहित ने कहा, “ ए चिरकुट चल निकल मै अपनी होनेवाली
बीवी से बात कर रहा हु।
विनोदबाबू ने धीरे से अपनी शर्ट को सीधा किया और
कहा, “And
I am talking about my today’s wife.”
उसके स्वर में इतनी गहराई थी की कुछ पल रोहित सहम
गया फिर उसने विनोदबाबू को कस के एक झापट लगायी और फिर से स्नेहा को दबोच लिया।
स्नेहा ये देखकर चीख उठी, “गेट हिम आउट” और अचानक
पतले शरीरवाले विनोदबाबू ने दायिने हाथ की दोनों पहली उंगलियों से उल्टा रोहित का नाक
पकड़ा और झटका देखर नाक दबा दिया । रोहित चीख उठा उसका शरीर ढीला हो गया और उसकी जान
विनोदबाबू की दो उंगलिया और अंगूठे के बिच फसे हुए अपने नाक पर अटक गयी। इसी हालत में
विनोदबाबू उसे बंगलो के बहार खींच के ले गए और बाहर जाकर छोड़ दिया और कहा, “यहाँ आने
से पहले सो बार सोचियेगा ।
ये देखकर स्नेहा सोच में पड गयी की हलके फुल्के
लग रहे विनोदबाबू मे ये रूहानी ताक़त कहा से आयी की सिर्फ दो उंगलियों के सहारे वो रोहित
जैसे इंसान को बहार खींच गए !. लेकिन ये सच था सत्य था । उसके बाद स्नेहा ने रोहित
को जवाब देना ही बंध कर दिया, उसका फ़ोन उठाना बांध कर दिया । कुछ दिनों के बाद उसके
कहने पर विनोदबाबू ने रोहित को कुछ दिनों के लिए जेल भी भेज दिया था। अब स्नेहा इस सब परिश्थितियों से तंग आ चुकी थी और हारकर वो
कही बहार चलने पर मजबूर हो गयी। और आखिर में वो विनोदबाबू के कहने पर शिमला आने के
लिए राजी हो गयी।
फिर से रोहित ने उसकी शुद्ध प्रेमकहानी को मरोड़कर
अभद्र भाषा के साथ और क्लिपिंग्स के साथ सोशल नेटवर्क पर देकर ब्लैकमेल करना शुरू किया।
स्नेहा ने विनोदबाबू को फिर से इस प्रॉब्लम को ख़त्म होने के लिए कहा।
बस इसके आगे क्या हुवा वो विनोदबाबू बता नहीं रहे थे। एक तरफ वो विनोदबाबू को सच्चे दिल से पति मान बैठी थी और उसका प्यार मांग रही थी और दूसरी और जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर विनोदबाबू उस से डिस्टेंस रखते जा रहे थे। गुस्से और प्यार के बिच लव एंड रोमांस स्नेहा के दिल में किसी ज़हरीले सांप की तरह उछल रहा था। और उसने आज दुरी मिटा ने का निस्चय कर ही लिया और वो खड़ी हुयी तभी उसकी तन्द्रा टूटी और उसे बड़ी जोर की वोमिट हुयी। वो सर से पाव तक काप उठी। उसकी आवाज़ सुनकर विनोदबाबू जल्दी से आये और उसके पास बैठकर सहलाने लगे शायद वो भी जान चुके थे की रोहित का पाप स्नेहा के पेट में आकर ले चूका था।
*******
“एक आखरी काम मेरे लिए कर दो प्लीज” ,स्नेहा ने
दूसरी सुबह चाय पिते हुए विनोदबाबू को कहा।“
”आइ एम सॉरी मे'म बट
प्लीज आप मुझे ये काम करने के लिए न कहे” ,विनोदबाबू ने दूर दूर पहाड़ियों को बादल की
चादर में छपते हुए नज़ारे देखते हुए कहा।“
”Are you mad ? मै उसका बच्चा नहीं
चाहती प्लीज। मै आप की बीवी हु और आप कैसे पति हो अपनी बीवी को दूसरे के बच्चे को पैदा
होने के लिए जोर दे रहे हो ?. क्या आप नहीं चाहते की मै आप के बच्चे की माँ बनु ?”
कुछ देर विनोदबाबू खामोश रहे और फिर धीरे धीरे स्नेहा
के पास आये. और ये क्या आज पहलीबार उसकी
आँखों में प्यार का महासागर उमड़ रहा था। पहलीबार विनोदबाबू स्नेहा की और मुस्कुराये
और कहा, “मै आप के साथ इसी कमरे में रहूँगा आप चाहो तो ज़िंदगीभर रहूँगा। लेकिन प्लीज
ये बच्चे को जन्म दीजिये।“
“But why? मैंने पाप किया है तो फल भी भुगतना उतना ही जरुरी है मेरे लिए” स्नेहा ने कहा ।
“ओह फॉर
गॉड सैक इसे पाप मत समजिये....इसमें आप की कोई गलती नहीं है” चीखकर विनोदबाबू खड़े हुए।
उसने पलटकर रूम से बाहर जाते हुए कहा, “दुबारा मै
इसे खोना नहीं चाहता। मेरी पहली और आखरी विनती है प्लीज इसे जन्म दीजिये ।“और उसने
बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाये ही थे की स्नेहा ने उठकर उसे रोक लिया और उसकी आँखों में
आंखे डालकर पूछा, “दुबारा मतलब ? आप ठीक ठीक मुझे
बताइये.”
कुछ देर ख़ामोशी के बाद विनोदबाबू ने कहा, “मै एक
अनाथ हु आप के डैड ने मुझे सहारा दिया बदले में मैंने भी वफ़ादारी निभाई है। मेरी शादी
हुयी और मै खुश था अपनी लाइफ से। लेकिन मेडिकल रिपोर्ट से मेरे बाप बन ने के चान्सेस
1 लाख में से सिर्फ 2% थे। एक दिन मै बिझनेस ट्रिप से वापस आया तो मुझे पता चला की
मेरी बीवी पेट से है। मुजे शक हुवा और मेरा संसार उजड़ गया और मैंने उसे बुलाना बंध
कर दिया। नौ नौ महीने तक वो मेरी नफरत सहन करती रही और आखिर में डिलीवरी के वक़्त वो
चल बसी। डॉक्टर ने कारन बताया की नफरत से जमीं और पौधा दोनों सुख गए थे। बच्चा चला
गया लेकिन एक चिठ्ठी वो छोड़ गयी थी जिसमे लिखा था की वो 2% चान्सेस काम कर गए थे। बच्चे
का टेस्ट भी उसने करवाया था जिसकी रिपोर्ट मैंने देखने से इनकार कर दिया था वो भी उसके
मरने के बाद मैंने पढ़ी। वो मेरा ही बच्चा था। मै पछताया... बहुत रोया... सर फोड
लिया...लेकिन मजबूर था। आखिर ज़िन्दगी ने अपना खेल दिखा ही दिया था। मे'म आप जैसे गलती स्वीकार कर जी रही है प्रैक्टिकल
बनकर...उसी तरफ मैंने भी प्रैक्टिकल बनकर जीना शुरू कर दिया। यहाँ तक की मरते वक़्त
आप के पिताजी ने मुझे अपनी शर्त बताई थी वो भी निभाने के लिए मेरी मर्जी न होते हुए
भी तैयार हो गया। जब कल रात मुझे पता चला की आप माँ बन ने वाली है तो मैंने अपने आप
को आप का पति मान भी लिया है और ज़िन्दगी बिताने के लिए तैयार हो गया हु। अब आप ही बताईये
की आप की खुशिया का जवाब तो मै बन सकता हु...लेकिन उसी खुशियों की गंगोत्री इस बच्चे
को गिराने के बाद फिर सुख जाएगी।“ विनोदबाबू के आँखों में से अश्रुधारा बहकर गालो से
होकर गले तक पहुंच रही थी।
उसने हाथ जोड़कर स्नेहा के सामने देखा। स्नेहा ने
उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा 2% चान्सीस पर मुजे भी विश्वास है। आप मेरे साथ गलती
नहीं करेंगे। मै आप के ही बच्चे को जन्म दुंगी।“
“लेकिन बच्चे का क्या कसूर ?” विनोदबाबू ने फिर से रिक्वेस्ट की और उसके मुँह पर स्नेहा ने हाथ रख दिया
और कहा, “प्यार से सिचा हुआ पौधा बड़ा वटवृक्ष बनता है लेकिन नफरत से सुख जाता है और
ये बात आप मुज से बहेतर जानते है।
स्नेहा ने आखरी ज़िद कर ली । विनोदबाबू ने स्नेहा
का चेहरा अपने हाथो में लिया और उसे चुम लिया ।
विनोद्बाबु ने कहा, “ओके...स्नेहा, लेकिन अगर ये
पौधा सही हुवा तो ये जन्म लेगा।“
और स्नेहा ने विनोदबाबू को बेड पर खींचते हुए कहा,
“एझ् यू विश सर....” और वो पल स्नेहा की ज़िन्दगी का सही हनीमून था प्यार विश्वास और
लव एंड रोमांस का सुनहरा सफर शुरू हो गया था.......और इसी के साथ बादलो में छुपा सूरज
अपनी रोशनी के आशीर्वाद बरसाने के लिए पहाड़ियों के बिच में से दौड़कर निकल आया........साथ
में बारिश भी जमकर गिरी......अजब समन्वय था प्रकाश और बारिश का समन्वय....।
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क़ुछ पल मे स्नेहा नीन्द की आगोश मे खो गयी और
धीरे से विनोद्बाबु उठे और स्नेहा सो रही है वो पक्का कर के रुम से बाहर निकले और
रोहित को फोन किया,”रोहित मुबारक हो आप बाप बन ने वाले हो और स्नेहा आप दोनो के
प्यार को जन्म देना नही चाहती थी लेकिन मैने मना लिया है” ...... और फोन काट दिया
और सोचने लगे की अगर रोहित को ब्लड केंसर नही होता और नाटॅक नही करता तो उसे अपने
निजी झिन्दगी बताने की जरुरत ही नही थी और यु ही अकेले अकेले कुदरत की चक्की से
पिसते रह्ते। भला हो रोहित का जिस ने ये नाटक कर के स्नेहा की आगे की जिंदगी को
सवार लिया था। विनोद्बाबु ने मनोमन उसे सलाम किया और सही मे स्नेहा को हमसफर मिल
ही गया। और चन्द्रमा ने ध्रीरे से जाने इस कुरबानी को देखकर फैसला लिया की बादलो
मे ही छुप जाना ठिक रहेगा..........और इधर विनोद्बाबु फिर से रुम मे स्नेहा की
मासुमियत को प्यारभरी निगाहो से देखते रहे।
#लेखनी
#लेखनी कहानी
# लेखनी कहानी सफर
Fiza Tanvi
03-Nov-2021 11:56 AM
Good
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PHOENIX
15-Nov-2021 05:04 PM
Thanks 🙏
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Chirag chirag
01-Nov-2021 06:37 PM
बहुत अच्छी कहानी है आपकी... डिफरेंट भी।
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PHOENIX
15-Nov-2021 05:03 PM
आप का दिल से धन्यवाद।🙏
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Ankit Raj
27-Oct-2021 05:05 PM
👌👌👌
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PHOENIX
15-Nov-2021 05:03 PM
धन्यवाद 🙏
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