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मोह

मची है राम नाम की लूट,

दुखिया मैं पीछे गई छूट।
भटक गई जग की माया में,
गाय को बाँध रही थी खूँट।

जंजीरें भव कसता जाए,
मोह में पंछी फंस जाए,
सम्मोहक है जग का बंधन,
ये काया धसती ही जाए।

दूर कहीं मंदिर घण्टारे,
तार दिए छल-कपटी सारे,
गठरी थी पापों की वजनी,
न पहुंची मोहन के द्वारे।

कान में गूंजे राम की धुन,
तड़पता बावरा मन सुन-सुन,
बीनती रह गई पथ काँटे,
मैं जपती माला गुन-गुन-गुन।

भटक गई ध्यान से छलिया,
बिछा कर सो गई मैं खटिया,
जागी जब शंख नाद सुनकर,
बिछड़ गए मुझसे सांवरिया।

सुरखाई कलिका पर छाई,
भ्रमर ने सुध-बुध बिसराई,
साजन से मिलने को आतुर,
मधुप ले पंखुरि अंगड़ाई।

निहारे बाट मेरी साजन,
पहली बारिश सा सौंधापन,
सुगंधित हो गई घर बगिया,
कुरंग सी फिरती “श्री” कानन।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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1 Comments

Sarita Shrivastava "Shri"

20-Jun-2024 12:29 PM

👍👍

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