स्वयं से बात लेखनी कविता प्रतियोगिता -21-Jun-2024
स्वयं से बात
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कभी स्वयं से
कभी मां से
बात कर लूँ
पर माँ तो
खुद में समाई है
तो खुद से ही
बात कर लूँ
ऐ माँ मैं
तुम्हें दर दर
खोजता हूँ
पर तू तो
हर जगह
दिखाई देती है
घर आंगन में
चूल्हे और चौके में
हर जगह हर मौके में
कुंज और गली में
पुष्प और कली में
गुड़ की डली में
प्यार और दुलार में
हवा और बयार में
गीत और मलहार में
धरा और गगन में
दीपक की ज्योति में
हीरा और मोती में
अब समझ आया
मैं भी मृग हूँ
माँ तो मेरे दिल में है
सांसों में समाई है
माँ ही तो अंगड़ाई है
माँ ही तो मेरा जीवन है
माँ ही तो यौवन है
जब तक माँ है
तभी तक मैं हूँ
माँ नहीं तो मैं नहीं
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कल्यानपुर कानपुर