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मुक्ति

मुक्ति

लेखक: प्रिन्स सिंहल

बूढे की आंख खुली तो वह हडबडा कर उठ बैठा। टूटी फूटी झोपड़ी में से धूप छनछनकर अन्दर आ रही थी। तभी झुग्गी के एक कोने में अंगीठी पर कुछ गरम करती हुई बुढिया उसकी तरफ देखकर बोली,
आज बहुत देर तक सोये रहे।
तूने मुझे उठाया क्यों नहीं।
नहीं उठाया, रात तुम्हारी तबीयत जो खराब थी। 
उसकी बात सुनकर बूढे के झुर्रियों एवं झाड़-झंकाड की तरह उगी हुई दाढ़ी वाले चेहरे पर एक मुस्कान रेंग गयी। वह बुढिया से कहने लगा, काम पर तो जाना ही है, भगवती। अगर काम पर नहीं जाउंगा तो हम लोग खायेंगे कहां से ...।
भगवती उसकी बात का कोई जवाब देती उससे पहले ही बूढ़ा नारायण फिर कहने लगा,
मेरा खाना बांध दिया?
हां बांध दिया। हाथ-मुंह धोकर नाश्ता करलो।
अरे, नहीं भगवती, नाश्ते का समय नहीं है। अब मैं जा रहा हूँ, नहीं तो सेठ जी नाराज होंगे।
नारायण अपनी खाने की पोटली उठाकर चल दिया।
वह, दयाल सेठ के यहां काम करता था। उसका वहां सिर्फ इतना काम था कि आडत पर से ट्रकों पर लादें जाने वाली बोरियों की गिनती करना और बोरियों को यथास्थान लगवाना। यहां वह सुबह से ही आ जाता और शाम ढलने पर जाता था। हालांकि उसे यहां बहुत कम पैसे मिलते थे, लेकिन फिर भी वह यहां नौकरी करने के लिये मजबूर था। क्योंकि और कहीं जाकर इस उम्र में उससे मेहनत मजदूरी अब नहीं हो सकती थी।

उस दिन दोपहर के तीन बज चुके थे मगर ट्रकों की आवाजाही के कारण अभी नारायण ने खाना भी नहीं खाया था। थोड़ी देर बाद जब भीड पूरी तरह छंट गई तो उसने हाथ मुंह धोकर रुमाल में बंधी रोटियों को
खोला। लहसुन की चटनी और प्याज देखकर उसकी भूख और जाग उठी। उसने रोटी का एक निवाला
अभी मुंह में रखा ही था कि गोदाम के अन्दर से किसी के चीखने की आवाज सुनाई दी। नारायण तुरन्त ही खाने पर से उठकर अन्दर की तरफ दौडा। उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। कमला, जो दयाल सेठ के गोदाम में सफाई का कार्य करती थी, वह जमीन में पड़ी थी। उसके शरीर से खून बह रहा था। तन ढकने के लिये कुछ चीथडे उसके शरीर पर थे, जिन्हें वह साडी कहती थी। पास ही दयाल सेठ बहुत अधिक घबराया हुआ खड़ा था। नारायण को देखते ही दयाल सेठ उसकी ओर बढा और उसके पैरों में गिर गया, 
मुझे बचा लो नारायण, मैं इसे मारना नहीं चाहता था, लेकिन जब इसने शोर किया तो अनजाने में मुझसे यह गुनाह हो गया। मैं तो सिर्फ इसके साथ.......। 
कहते हुए उसकी आवाज लड़खड़ा गई और वह आगे कुछ नहीं बोला।
नारायण को सेठ की बात समझने में देर नहीं लगी। वह दयाल सेठ के बारे में अच्छी तरह जानता था कि उसकी उम्र चाहे 55 की है, लेकिन उसकी नीयत किसी भी लड़की पर खराब होते देर नहीं लगती। नारायण ने दयाल सेठ से कहा,
मैं तुम्हारा इल्जाम अपने सर ले लूंगा। बदले में मुझे कुछ नहीं चाहिये। बस मैं इतना चाहता हूं कि आप कमला के जो दो मासूम छोटे बच्चे हैं उनके नाम बैंक में एक-एक लाख रुपया जमा करा दें। दयाल सेठ को अपनी जान बचाने के लिये सब मंजूर था। उसने नारायण से तुरन्त हां भर दी और बैंक की रसीद भी दिखाने का वादा किया। इतने में ही पुलिस आ गई। क्योंकि नारायण ने बयान दिया, कि खून उसने किया है इसलिये पुलिस नारायण को पकड़कर ले गई, लेकिन इंस्पेक्टर भी जानता था कि नारायण एक गरीब बूढा है। उसे कमला को मारकर क्या मिलेगा। और फिर दयाल सेठ के चर्चे तो पूरे शहर में थे। इसलिये इंस्पेक्टर को समझते देर नहीं लगी कि दयाल सेठ ने ही कमला को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की है, और जब कमला ने शोर मचाया तो दयाल सेठ ने उसका खून कर दिया।

शाम घिर चली थी और अब तो अन्धेरा भी अपना साम्राज्य फैला चुका था। भगवती, नारायण के
इन्तजार में कभी झोपड़ी के अन्दर जाती तो कभी दरवाजे पर खड़ी होकर दूर तक देखती, लेकिन नारायण नजर नहीं आया। फिर बड़बड़ाती हुई पडौस में गयी और श्यामू से बोली,
देख तेरे काका अभी तक नहीं आये। तू दयाल सेठ के जाकर देखकर आ। मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।
तुम फिक्र मत करो काकी, मैं अभी देखकर आता हूँ ।
श्यामू चला गया। दयाल सेठ की दुकान काफी दूर थी, लेकिन इतनी भी नहीं कि श्यामू अभी तक न आ सके, भगवती सोचने लगी। वह परेशान हुई झोंपड़ी के दरवाजे पर खड़ी थी। तभी उसे श्यामू आता दिखाई दिया। उसके मन में कुछ तसल्ली हुई, लेकिन जब वह थोड़ा नजदीक आया तो उसने देखा श्यामू अकेला ही आ रहा है। नारायण उसके साथ नहीं है। तभी भगवती के दिल में अनिष्ट की आशंका होने लगी। जब श्यामू ने आकर बताया कि काका गिरफ्तार कर लिये गये हैं, और उनके उपर कमला के खून का इल्जाम है। तो भगवती के कमजोर शरीर में बसने वाला कमजोर दिल और दिमाग बर्दाश्त नहीं कर सका और वह कभी न उठने के लिये गिर पड़ी।
जब इंस्पेक्टर ने नारायण को जेल में बताया कि भगवती खत्म हो गई है तो नारायण न चीखा, न रोया। बस उसकी चिता को अग्नि देते हुए आसमान की तरफ मुंह उठाकर इतना बुदबुदाया कि, तुमने तो मुक्ति पा ली भगवती, लेकिन मेरी आत्मा इस शरीर से कब मुक्त होगी।

आज भगवती को गुजरे सात दिन बीत गये थे। नारायण जेल में बहुत कमजोर हो गया। इंस्पेक्टर ने उससे पूछा, नारायण क्या तुमने कमला की इज्जत लूटने की कोशिश की थी। उसके मुंह से चीख निकली।
नहीं ........।
तो फिर तुमने कमला को क्यों मारा, और मारने से पहले हत्यारे ने उससे जबरदस्ती की कोशिश भी की।
इंस्पेक्टर ने नारायण को समझाया, तुम किसी गुनहगार को बचाने की कोशिश कर रहे हो और इस बात की सजा तुम्हारी पत्नी भुगत चुकि है। इंस्पेक्टर की बात सुनकर नारायण अपने आप को रोक न सका और उसने इंस्पेक्टर को सारी बात सच-सच बता दी इंस्पेक्टर की आंखें जीत की खुशी से चमक उठी। दयाल सेठ को गिरफ्तार करके सख्ती से पूछताछ की गयी तो उसने सब कुछ स्वीकार कर लिया।
नारायण को छोड दिया गया। वह अपने घर की तरफ अनमने डग बढाता सोच रहा था कि भगवती को मुक्ति मिल चुकि है। अब मैं घर जाकर क्या करूंगा। वहां मेरा कौन ध्यान रखेगा। तभी बीच सड़क पर एक रेला सा आया। चीख-पुकार, अफरा-तफरी, मारो-काटो की आवाज ने नारायण को चौंका दिया। तभी उसकी नजर उस बच्चे पर पड़ी जो सड़क पार करने के चक्कर में इस रेले में आ फंसा, लेकिन नारायण में न जाने इतनी जान कहां से आ गई कि वह लपककर उस बच्चे पर जा
पडा। पूरी भीड उनके उपर से होकर निकल गई। नारायण ने बच्चे को तो बचा लिया, लेकिन उसके
शरीर खून से लथपथ हो गया । उसकी सांसे थमने लगी। उसने गर्दन उठा कर बच्चे को देखा तो अपना कंपकंपाता हाथ उसके सिर की तरफ बढ़ा दिया और बुदबुदाने लगा, अब मैं इस निर्मोही दुनिया को छोडकर अपनी भगवती के पास आराम से जा सकूँगा। आज मेरी आत्मा को इस शरीर से मुक्ति मिल रही है। कहते हुए नारायण की आवाज और सांसे थम गई। तभी एक गाड़ी आकर रुकी और बच्चा, गाड़ी से उतरे व्यक्ति के पापा - पापा कहते हुए लिपट गया । वह व्यक्ति ज्योंही नारायण की तरफ बढ़ा तो उसकी चीख निकल गई। अचानक चारो ओर वातावरण मे सन्नाटा छा गया। शायद उस व्यक्ति ने किसी अपने को कभी न पाने के लिए खो दिया था।

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