प्रकृति कितनी सुंदर लगती है (कविता) -03-Jul-2024
विषय - प्रकृति कितनी सुंदर लगती है
पूरा ब्रह्मांड प्रकृति कहलाए, भिन्न रूप में पूजा जाए। भौतिक जगत है इसमें समाए, हमने इससे क्या नहीं पाए?
जीव का इससे गहरा नाता, इसके बिन ना कुछ भी सुहाता। क्या नहीं मिले हैं इसके हाता, नदी, सागर, तरू पात सुहाता।
गुरु सा हमको राह दिखाती, त्याग- तपस्या है सिखलाती। जीवन को यह सुखी बनाती सम् भाव का पाठ पढ़ाती।
जो खोजो तुम इसमें पाओ, साहित्य,विज्ञान,कला गह जाओ। दुख में कभी भी ना मुरझाओ, धीरज,धर्म, त्याग अपनाओ।
धन- दौलत पा दंभ करो ना, ईर्ष्या से स्व झोली भरो ना। इससा जग में कोई खरो ना इसके रहते कभी डरो ना।
जग में कोई ना इससे सुरम्य, साहस- उत्साह भरा अदम्य। इसका हर रूप लगे रम्य सुखों और खुशियों की है गम्य।
बेला, गुलाब, जूही,चमेली, इसके आंँगन सबने खेली। हरियाली जब इसने ले ली, लगती यह संपदा की हेली।
यह कितनी है सुंदर लगती, इसमें समाई पूरी जगती। यह हमको कभी न ठगती, सदा है देती कभी न थकती।
साधना शाही, वाराणसी