डूबता सूरज (कहानी) प्रतियोगिता हेतु-24-Jul-2024
डूबता सूरज
सोहन एक अत्यंत ग़रीब मांँ-बाप का कर्मठ,परिश्रमी और ज़िम्मेदार बच्चा था। जब वह 7 वर्ष का था तभी उसके पिता स्वर्ग से सिधार गए। अब वह और उसकी मांँ दो ही लोगों की उसकी दुनिया थी। उसकी मांँ ईंट के भट्ठे पर काम करती और और सोहन स्कूल जाता। वह पढ़ाई, खेल सभी में अव्वल दर्जे का था। किंतु ईश्वर को तो कुछ और ही मंजूर था। जब 10 वर्ष का हुआ तब एक दिन उसकी मांँ का एक्सीडेंट हो गया जिसमें वह पूरी तरह घायल हो गईं। अब उसकी माँ का काम छूट गया। वह बिस्तर पर आ गई। क्योंकि घर में कोई दूसरा कमाने वाला नहीं था अतः सोहन को पढ़ाई छोड़कर काम में लगना पड़ा। वह एक पब्लिशर के यहांँ से किताबें लेकर बाज़ार में बेचता और जब शाम को लौटता था तो पर किताब ₹5 की दर से उसे पब्लिशर देता था। जिससे सोहन कर गुज़ारा हो रहा था। एक दिन सोहन सुबह किताबें लेकर बेचने के लिए निकला तभी आंँधी, तूफ़ान, बिजली चमकना, मूसलाधार बारिश सब कुछ एक साथ आ गया। और इस प्राकृतिक आपदा ने सोहन के आपदा को और भी बढ़ा दिया। सोहन एक दुकान के सामने थोड़ा सा जो छज्जा निकला था उसी के नीचे खड़े होकर बारिश के थमने का इंतज़ार करने लगा। लेकिन आंँधी, तूफ़ान, बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। देखते-देखते शाम हो गई सूरज अब डूबने को आतुर था और सोहन के सब्र का बाँध टूटने को। सोहन की धड़कनें तेज़ होते जा रही थीं। उसके हाथ-पैर ब ठंडे होते जा रहे थे। अब वह घर जाकर अपनी मांँ को क्या खिलाएगा। आज तो उसकी मांँ की दवा भी ख़त्म हो चुकी है वह उनके लिए दवा कहांँ से लाएगा। तभी एक गाड़ी आकर अचानक उसके सामने रखी हो गई।उस गाड़ी को देखकर सोहन पहले तो डर गया लेकिन फिर उसके अंदर उम्मीद की एक किरण जगी शायद ये मेरी किताब ले लें। उस गाड़ी से एक भलामानस छाता लिए नीचे उतरा और उसने सोहन से पूछा, बच्चे तुम इतने आंँधी- तूफ़ान में यहांँ क्या कर रहे हो? तुमने झोले में क्या लिया हुआ है? सोहन ने कहा मैं यह किताबें लिया हूंँ। लेकिन, आज मेरी एक भी क़िताब नहीं बिकी। अतः पब्लिशर भैया मुझे पैसे भी नहीं देंगे। मुझे मेरी मांँ के लिए दवाइयांँ तथा घर का राशन लेना है। मैं इंतज़ार कर रहा हूंँ कि शायद मेरी कि़ताब बिक जाए, ताकि मैं अपनी मांँ के लिए दवाइयांँ और राशन ले सकूंँ।उस भले मानस ने कहा, कैसी क़िताबें हैं मुझे दिखाओ। बच्चे ने अपने झोले से दो-चार किताबें निकाल कर उस व्यक्ति को दिखाया। उन्होंने देखा और कह तुम्हारे पास कितनी किताबें हैं? बच्चे ने कहा 50 किताबें। उस व्यक्ति ने कहा, ऐसा करो तुम मुझे पूरी किताबें दे दो, क्योंकि मुझे ऐसी शिक्षाप्रद किताबों की आवश्यकता है। मुझे एक एन.जी.ओ में ऐसी शिक्षाप्रद किताबें वितरित करनी हैं। मैं कहीं और जाकर ख़रीदूँगा तो तुम ही मुझे दे दो। बच्चे को तो बस ऐसा लग रहा था कि आज डूबता हुआ सूरज उसकी ज़िंदगी में एक नया प्रकाश, एक नई खुशियांँ लेकर आ गया। और इस व्यक्ति के रूप में उसे साक्षात भगवान ही मिल गए। बच्चे ने बड़ी ख़ुशी से कि़ताबों का झोला उस व्यक्ति को दे दिया। उन्होंने पूछा, कितने पैसे हुए तुम्हारे? बच्चे ने कहा, जी पाँच हज़ार। उस व्यक्ति ने बच्चे को 5,500 देते हुए कहा कि ₹5000 तुम पब्लिशर को देना और यह ₹500 तुम्हारे हैं। बच्चे ने कहा मेरे! लेकिन वो किसलिए? तब उन्होंने कहा, मैं तुम्हारे जैसे बच्चों के लिए ही काम करता हूंँ और इतनी कम उम्र में तुम्हारी कर्तव्य निष्ठा, ज़िम्मेदारी को देखकर मैं अभिभूत हूंँ, यह ₹500 मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए इनाम है। फ़िर उन्होंने पूछा तुम्हें जाना कहांँ है? बच्चे ने बताया पहले मुझे पब्लिशर के यहाँ जाना है। ये पैसे उन्हें देने हैं और जब मैं उन्हें पैसे दूंँगा तो मुझे पर किताब ₹5 की दर से ₹250 देंगे। उन पैसों को लेकर मुझे दवा और राशन लेना है। उसके बाद मुझे अपने घर जाना है।उस व्यक्ति व्यक्ति ने कहा तुम मेरी गाड़ी में बैठो तुम्हें जो-जो काम है वो सारे काम कराकर अंततः मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंँगा। बच्चा उनकी गाड़ी में बैठ गया, वो बच्चे को हर ज़गह लेकर गए जहांँ उसे जाना था। उसकी मांँ की दवाइयांँ तथा उसके घर के लिए एक महीने का राशन भी वो अपनी तरफ़ से उसे दिलवा दिए और अंत में वो उसको उसके घर पर छोड़ दिए। सोहन सोच रहा था बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि धरती पर भगवान किसी न किसी इंसान के रूप में ही आते हैं शायद वो ऐसे ही रूप में आते होंगे और इस तरह के विचारों में खोया हुआ सोहन ईश्वर को तथा उस भले व्यक्ति को धन्यवाद देते हुए अत्यंत ख़ुश हो रहा था।
सही कहा जाता है, ईश्वर भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करता है जिस तरह से सोहन ने किया।
साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
Zakirhusain Abbas Chougule
25-Jul-2024 01:34 PM
Nice
Reply