लेखनी कहानी -24-Jul-2024" आत्मा "
आत्मा.... जब थक जाओ सच झूठ के जाल से बेचैनियां लिबास की तरह लिपटने लगे पीड़ा आँखों में बसने लगे अधरों की मुस्कान पीड़ा में सिमटने लगे चुभने लगे कर्णो में में भय के खंज़र
जीतते-जीतते बाज़ी हारने लगो जब चरमराने लगे विश्वास की पकडंडी और चलते-चलते ठोकर खाकर गिर जाओ डबडबा जाए आँखें आँसुओं से ढूंढे किसी का चेहरा
जब छोड़ दे साथ ज़माना ना दिखे कोई रास्ता और रास्तों की तमाम उम्मीद हो जाए ख़तम जब डराने लगे अपना ही साया और सच्च और झूठा का फ़र्क आने लगे समझ
जब खुशी और दुख साथ जीने लगो जब राहों में चुभने लगे कांटे और फूलों की अहमियत आने लगे समझ जब लगने लगे सपने झूठे जब हारने लगो खुद से और नजर ना आए कोई मनोबल बढ़ाने वाला जब कचोटने लगे अंधेरा
तब चले आना मेरे पास मैं जीवित हूं अभी भी तुम्हारे अंदर दूंगी सहारा तुम्हें दिखाऊंगी रास्ता और बताऊंगी सच की अहमियत तुमको ले चलूंगी उस जहां जहां तुम अपने आप को जान पाओगें
जहां समझ सकोगे गलत और सही का मतलब जहां तुम्हें रोशनी दिखेगी सच्चाई, प्रेम, करुणा और दया की जहां झूठ और छल का जरा भी ना होगा स्थान
जहां होगा तो बस प्रेम फ़रेब की ना होगी कोई जगह मैं मिलूंगी तुमको वहीं तुम्हारे मन के कोनों में निर्भीक निडर और सहास का दामन थामे तुम्हारे लौट आने का करती इंतजार....
तुम एक छोटे बच्चों की तरह मासूम भावनाओं को लिए वापस आओगे तो भर लूंगी अपनी बाहों में और निर्भयता से समा लुंगी अपने अंदर
आज तक अनसुनी की जो मन की आवाज़ जब वो आ जाए समझ तब समझ लेना तुम सही रास्ते चले आ रहे हो उस वक़्त पीछे मुड़कर मत देखना और चलते चले आना मैं मिलूंगी तुमको वही मन के कोने में तुम्हारी बची- खुची अच्छाइयों के साथ मैं तुम्हारी अंतरात्मा....!! मधु गुप्ता "अपराजिता"