लेखनी प्रतियोगिता -26-Jul-2024" सुनो सहेली"

"सुनो सहेली"

सुनो सहेली इक बात बताओं...... 

हरदम और हर बात पे क्यों, इतना तुम मुस्काती हो। 

जिससे भी मिलती हो,सारे दांत फाड़ दिखलाती हो।।  

बात बात पे तुम हम सबकी,चुटकी खूब बजाती हो।। 

हमको भी यह राज बताओं,कौन सा गुड़ तुम खाती हो। 

जो इतनी मिश्री बातों में, कहाँ से घोल के लाती हो।। 


सुनो सहेली इक बात बताओ.....

हर बात पे इतना क्यों इतराती और इठलाती हो,


नहीं हूँ इतनी अच्छी मैं, जितना तुम मुझको समझती हो। 

पति देव और बच्चों पे, मैं भर- भर कर गुस्सा करती हूँ।। 

लड़ जाती हूँ उनसे मैं,रोज़ नया बखेड़ा खड़ा कर देती हूँ। 

चिल्लाती जोरों से उन सब पे,बात-बात पे मुँह फुलाती हूँ।। 

जो भी कहती मुँह पे कहती,दिल कांच सा साफ़ मैं रखती हूँ। 

कभी कभी इस कारण मैं,नई आफ़त लोगो से मोल ले लेती हूँ।। 


सुनो सहेली इक बात बताओ....

हर किसी को अपनी बातों में क्यों उलझाती हो,


लड़क-पन की हर निशानी, अपने आजु- बाजू रखती हो। 

हर किसी से ऐसे बतलाती,जैसे जान पहचान पुरानी रखती हो।। 

चुटकियों में समस्याओं का, समाधान झट कर देती हो। 

बन जाती हो लाडली सब की, चमत्कार कुछ ऐसा करती हो।। 

खोल के रख देते राज वो अपने, इस तरह उन्हें गले लगाती हो। 

सच में हो तुम दिल की सच्ची, इस वजह से सबको भाती हो।। 


सुनो सहेली इक बात बताओ....

क्यों किसी को आँखों की नमी नहीं दिखलाती हो,


कैसी हूँ और क्या हूँ मैं, इस बात की खबर नहीं अब रखती हूँ। 

जब भी किसी के पास से गुजरती, मुस्कान बिखेरती चलती हूं।। 

नहीं जानती कौन हैं यह, फिर भी हाय हेलो कर देती हूं। 

सारी दुनिया को जैसे मैं,अपना घर समझ बैठती हूं। 

बन जाती हूँ उनकी मैं, और उनको अपना कर लेती हूँ।। 

बाकी कुछ भी पता नहीं, पर दिल को बच्चे सा रखती हूँ।। 


मधु गुप्ता "अपराजिता"


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