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ब्रीफ टेल्स– दूर के ढोल

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एक लड़की जंगल में लकड़ियां इक्कठा करने के लिए आई हुई थी। लकड़ियां इक्कठा करते हुए उसे एक अजीब सी आवाज सुनाई दी। वह लड़की अपने कानों पर हाथ रखते हुए बोली। “पता नही किस बेवकूफ ने यह कहावत बनाई थी कि दूर के ढोल सुहावने होते है। मुझे तो वे दूर से भी कान फाड़ू लगते है।”  लड़की ने चिढ़ भरे लहजे से अपनी बात कही।

उसने खुद को सामान्य किया और देखा कि कानों पर हाथ रखने के चक्कर में उसके हाथ से लकड़ियां नीचे गिर गई। उसने नीचे पड़ी हुई लकड़ियों को एक बार फिर से इक्कठा किया और उन्हें अपने कंधे पर रखकर वहां से चली गई।

जंगल के ठीक पास वाले गांव में एक जश्न मनाया जा रहा था। जिसकी खुशी में ढोल नगाड़े बज रहे थे। गांव के बहुत से लोग उनकी आवाज पर उम्र के अंतर को भूल कर एक साथ नाच रहे थे।

“आज तो मजा ही आ गया।” एक लड़की ने रुकते हुए कहा और फिर अपनी सांसों को सामान्य बनाते हुए आगे बोली। “ढोल की आवाज वाकई में बहुत दमदार थी। पता नही किसने यह कहावत बनाई थी कि दूर के ढोल सुहावने होते है जबकि वे तो पास से उससे भी बहुत सुहावने होते है।” इतना कहने के बाद वह दोबारा फिर से नाचने लगी।

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