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हरियाली तीज

सावन आने का साल भर ,

इन्तजार मुझे रहता था।

तीज का त्योहार मुझे तो ,

सबसे प्यारा लगता था।

पड़ जाते थे झूले बाग में ,

पैंगा खूब बढाते थे ।

ऊंची डाल को कौन छुएगा,

मिलकर होड़ लगाते थे ।

न गिरने का डर होता था,

बस मस्ती की थी धुन सवार।

सावन कब आएगा

वेसर्ब्री से होता था इन्तजार।

सखी सहेली मिल जुल कर

त्योहार तीज का मनाती थी।

भोर सबेरे सब मिल जुल कर,

बागों खेतों में जाती थीं।

चींटी चिड़ियों को दाना खिलाकर

होती थी दिन की शुरुआत।

सावन आने का साल भर

रहता था इन्तजार।

तरह-तरह पकवान थे बनते ,

मिलकर सभी बनाते आज।

खीर रसगुल्ले और सेंवइया ,

जो होते थे इनमें खास।

कर सोलह श्रंगार गुजरिया ,

खुद पर इतराती हैं आज।

तीज मैया को भोग लगाने ,

सब बाग ताल फिर जाती थीं।

सारे गांव की बहु बेटियां,

पूजन करती थी एक साथ।

जाति पाति और छुआछूत का,

कहीं नही था कुछ भी भाव।

ताल पूजना ,दूब पूजना

और पूजना कुश और कांश।

गरीबों को अन्न दान कर,

फिर तीज माता से मागें वरदान

रहे सुहाग अमर मेरी मइया

गोद सदा खेलत रहे लाल।

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