Sadhana Shahi

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कुछ तुम कहो कुछ हम कहें (गीत) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु-16-Aug-2024

16.08.2024 शुक्रवार कुछ तुम कहो कुछ हम कहें

तुम कह लो कुछ हम कह लें एक दूजे की बात को सुन लें। बड़ी गज़ब की यह दुनिया है इसके बारे में कुछ गुन लें।। आओ बैठें सोचें-समझें सच्चे रिश्तों का क्या है अर्थ। दुख- सुख में ना सहभागी हो ऐसे रिश्ते तो हैं व्यर्थ।।

सबको ही जान लिए और पहचान लिये रिश्तों का मतलब फिर भी न जान पाए। आज के हर रिश्ते में मतलब की बू है आती हरिश्चंद्र,राम जैसा ज्ञान नहीं जान पाए।। दिखावे के रिश्तों में ख़ुद को न बाँध सकी शूल से वो रिश्ते ना फूल होने चाहिए। मतलब निकल जाए फिर पहचानू ना मैं रिश्तों पर पड़ी हुई धूल धोने चाहिए।। तेरा मेरा मेरा तेरा कौन दीन और कौन समर्थ। दुख- सुख में ना सहभागी हो ऐसे रिश्ते तो हैं व्यर्थ।।

ऊंँच-नीच,प्रांत,संप्रदाय को नकारकर अपनापन जहांँ मिले वहांँ बने रिश्ता। दुख में न काम आएँ सुख में बिहस जाएँ ऐसे कुछ अपनों में सह्रदय है पीसता।। स्वार्थ वशीभूत जो हैं रिश्तों का मोल जानें यदि ये जान पाए नेकी को है बीधता। देश और कुटुंब को छुद्र स्वार्थ हेतु तोड़ें ऐसा ही तो करतब देश को है टीसता।। देश और राष्ट्र हेतु घुन का हैं काम करें धन-धन दोनों से जो है समर्थ। दुख- सुख में ना सहभागी हो ऐसे रिश्ते तो हैं व्यर्थ।।

आओ हिल-मिलकर सबको ही जान जाएँ अपने-पराए को हम पहचान जाएँ। विषबेल पौध था जो वो न वटवृक्ष बने यदि बन गया तो वो सकल जहान खाए।। भाई-भतीजा चाहे सास-बहू रिश्ता हो सबमें ही खोट दिखे जुड़े सब अर्थ हैं। दुख- सुख में ना सहभागी हो ऐसे रिश्ते तो हैं व्यर्थ।।

साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

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3 Comments

Babita patel

17-Jan-2025 07:25 PM

👌👌

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kashish

29-Sep-2024 01:26 PM

Amazing

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Arti khamborkar

21-Sep-2024 09:10 AM

v nice

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