GUDDU MUNERI

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बगावत ना हो तो क्या हो


[ बगावत न हो तो क्या हो ] 


मां कहां ? खुश है, बेटे कहां ? खुश है 

कैसे अब एक दूसरे पर विश्वास हो 

मां की तर्रार आवाज बाहर तक जाती है 

फिर घर में बगावत न हो तो क्या ? हो ।।


बेटे के लिए सुंदर बहु ला दी गई है 

तीन कमरों की मंजिल बना दी गई है 

एक में रहन गुजारा, एक से किराया और 

खाली कमरे पर बगावत न हो तो क्या ? हो ।।


बड़ी बहू बहुत निकम्मी और नालायक है 

मां यह कहकर बेटो को क्या ? सिखाती है 

कि तेरे जैसा कोई और नहीं मेरे बेटे  

फिर बहू से ही जाकर चुपके से मिले मां 

तो बेटो से बगावत न हो तो क्या ? हो ।।


सेवा की बहुत भूखी होती है मां 

अलग रहने वाले बेटो पर चुप रह जाती है 

और घर में कमा कर लाने वाले 

को फटकार लगा दे 

उस पर बगावत न हो तो क्या ? हो ।।


बेटो को बहुत परखती है मां 

ससुराल से जाने क्यों दूर रखती है मां 

और फिर बेटे की सास को जज बनाकर 

बेटे को मुजरिम कर देती है मां 

फिर बेटो से बगावत न हो तो क्या ? हो 


एक बेटा वर्षो से अलग रहता है 

दूसरा महीनों से अलग है 

तीसरा का हफ्ता शुरू हो गया 

आखिर तक सब देखता आया छोटा बेटा 

उसकी बारी पर बगावत न हो तो क्या ? हो 


बेटो के हौंसले बुलंद हो जाते है 

चंद पैसे जो जेब में आ जाते है 

भूल जाते है कभी कभी मां बाप भी 

बेटो से पहले मां बाप के झोले भर जाते है 

फिर ऐसे तानो से 

बगावत न हो तो क्या ? हो ।।


    - गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी 

    - दिनांक :22/09/2024

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1 Comments

Arti khamborkar

19-Dec-2024 03:44 PM

v nice

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