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रुबाइ





ये मत पूछो हम से यारों
हम कितने बेगाने हैं! 
दर-दर की ठोकर खाते हैं
तबीअत के मनमाने हैं!! 
हम से तुम हमदर्दी सीखो
दुनिया के ग़म-ख़ाने में, 
जितने ग़म हैं दुनिया भर में
सब जाने-पहचाने हैं!! 

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