सैर दूसरे दरवेश
बा मोजब हुक्म
बादशाह के ,उस आधी रात में मलका को (जो जोनर ,भवरे में पली थी ,और सिवाए अपने महल के
दूसरी जगह न देखि थी ) भोई ले जाकर एक मैदान में की वहा परिंदा न मारता ,इंसान का तो
क्या ज़िक्र है ,छोड़ कर चले आये। मलका के दिल अजब हालत गुज़रती थी की एक दम में क्या
था और क्या हो गया ? फिर अपने खुदा की जनाब
में शुक्र करती और कहती : तू ऐसा ही बे नियाज़ है ,जो चाहा सो किया ,और जो चाहता
है सो करता है ,और जो चाहेगा सो करेगा। जब
तलक नथनों में दम है तुझसे न उम्मीद नहीं होती। इसी अंदेशे में आँख लग गयी। जिस वक़्त
सुबह होने लगी मलका की आंख खुल गयी ,पुकारी
की वज़ू का पानी लाना ! फिर एक बारगी रात की बात चीत याद आयी की तू कहा और यह बात कहा ? यह कह कर उठ
कर तयम्मुम किया ,और दो गाना शुक्र का पढ़ा
.ए अज़ीज़ !मलका की इस हालत के सुनने से छाती फटती है ,उस भोले भाले जी से पूछना
चाहिए की क्या कहता होगा !
गरज़ इस मियाने
में बैठी हुई खुदा से लौ लगाए रही थी ,और यह
कबित उस दम पढ़ती थी।
जब दांत न थे ,तब दूध दिए ,जब दांत दिए ,कहा अन्न न दिए है।
जो जल में थल में पंछी पूस की सुध लेत ,सो तेरी भी ले है।
काहे को सोच करे मन मुर्ख ,सोच करे कुछ हाथ न ए है।
जान को देत ,अजान को देत
,जहान को देत ,सोतो को भी दे है।
सच है जब कुछ
बन नहीं आता ,तब खुदा ही याद आता है। नहीं तो अपनी अपनी तदबीर में हर एक लुक़मान और
बू अली सीना है। अब खुदा के कारखाने का तमाशा
सुनो। इसी तरह तीन दिन रात साफ़ गुज़र गए की मलका के मुंह में एक खेल भी उड़ कर न गयी। वह फूल सा बदन ,सूख
कर कांटा हो गया। और वह रंग ,जो कुंदन सा दमकता
था ,हल्दी सा बन गया। मुंह में फेफड़ी बंध गयी ,आँखे पथरा गयी ,मगर एक दम अटक
रहा था की वह आता जाता था। जब तलक सांस तब
तलक आस। चौथे रोज़ सुबह को एक दरवेश ख़ज़र की सी सूरत ,नूरानी चेहरा ,रोशन दिल आकर पैदा
हुआ। मलका को उस हालत में देख कर बोला : ए बेटी !अगरचे तेरा बाप बादशाह है ,लेकिन तेरी
क़िस्मत में यह भी बुरा था। इस फ़क़ीर बूढ़े को अपना खादिम समझ ,और अपने पैदा करने वाले
का रात दिन धयान रख ,खुदा खूब करेगा ,और फ़क़ीर
के कचकोल में जो टुकड़े भीख के मौजूद थे ,मलका के रु बा रु रखे और पानी की तलाश में फिरने लगे। देखे तो एक
कुंआ तो है ,पर डोल रस्सी कहा ,जिससे पानी भरे।
थोड़े पत्ते दरख्त से तोड़ कर दोना बनाया
,और अपनी सीली खोल कर। उसमे बाँध कर ,निकाला और मलका को कुछ खिलाया पिलाया। बारे ,टक होश आया ,इस मर्द खुदा ने बेकस
और बेबस जान कर ,बहुत सी तसल्ली दी ,खातिर जमा की
,और आप भी रोने लगा ,मलका जब ग़म ख्वारी और दिलदारी उसकी बेहद देखि। तब उनके
भी मिज़ाज को इस्तेक़लाल हुआ। उस रोज़ से उस पीर
मर्द ने यह मुक़र्रर किया की सुबह को भीख मांगने के लिए शहर में निकल जाता ,जो टुकड़ा पारचा पाता मलका के पास ले
आता और खिलाता।
इस तौर से थोड़े
रोज़ गुज़रे ,एक दिन मलका ने तेल सर में डालने और कंघी चोटी करने का क़स्द किया। जोहि
मुबाफ़ खोला ,चुटले (चोटी ) में से एक मोती
का दाना गोल अब दार निकल पड़ा। मलका इस दरवेश को दिया और कहा : शहर में इसको बेच लाओ।
वह फककेर उस गोहर को बेच कर ,उसकी क़ीमत बादशाह ज़ादी के पास ले आया .तब मलका ने हुक्म किया की एक मकान गुजरान के पास
बनवाओ। फ़क़ीर ने कहा :ए बेटी ! नीव दिवार को
खोद कर ,थोड़ी सी मिटटी जमा करो ,एक दिन में पानी लेकर , गारा कर कर ,घर की बुनियाद
दुरुस्त कर दूंगा। मलका ने उसके कहने से मिटटी
खोदनी शुरू करदी। जब एक गज़ गहरा गढ़ा खोदा गया। ज़मीन के निचे से एक दरवाज़ा नमूदार हुआ। मलका ने उस दरवाज़े को
साफ़ किया। एक बड़ा घर जवाहर अशर्फियों से मामूर नज़र आया। मलका ने पांच चार लप अशर्फियों की ले कर फिर बंद
किया ,और मिटटी देकर ऊपर से हमवार कर दिया
,इतने में फ़क़ीर आया ,मलका ने फ़रमाया की राज और कारीगर और अपने काम के उस्ताद
और मज़दूर जल्द दस्त बुलाओ ,जो इस मकान पर एक
ईमारत बादशाहना की ताक कुस्रा का जुफ्त हो, और क़स्र नोमान से सबक़त ले जाये और शहर पनाह और क़िला और बाग़ और
बावली और एक मुसाफिर खाना को ला सानी हो ,जल्द
तैयार करे ,लेकिन पहले नक़्शा उनका एक कागज़ पर दुरुस्त करके हुज़ूर में ला दे ,जो पसंद
किया जाये।
फ़क़ीर ने ऐसे ही कारकुन ,कारकर्दा ,जिहोश लेकर हाज़िर कर दिए। तामीर होने लगी। और नौकर चाकर हर एक कारखाना जात की खातिर चुन चुन कर फेमिदा और बा दियानत मुलाज़िम होने लगे। उस ईमारत आलिशान की तैयारी की खबर रफ्ता रफ्ता बादशाह ज़िल्ले सुभहानी को (जो क़िब्ला गाह मलका के थे) पहुंची। सुन कर बहुत हैरान हुए और हर एक से पूछा की यह कौन शख्स है जिन ने यह महल्लात (महल) बनाने शुरू किये है ? उसकी कैफियत से कोई वाक़िफ़ न था जो अर्ज़ करे सभो ने कानो पैट हाथ रखे की कोई गुलाम नहीं जानता की उसका बानी कौन है . तब बादशाह ने एक अमीर को भेजा और पैगाम दिया की मैं उन मकानों कइ देखने को आना चाहता हु ,और यह भी मालूम नहीं की तुम कहा की बादशाह ज़ादी हो और किस खानदान से हो ,यह सब कैफियत करनी अपने लिए मंज़ूर है।
जोहि मलका ने यह खुश खबरि सुनी ,दिल में बहुत शाद होकर लिखी की जहा पनाह सलामत ! हुज़ूर की तशरीफ़ लाने की खबर ,तरफ गरीब खाने के ,सुन कर निहायत ख़ुशी हासिल हुई ,और सबब हुरमत और इज़्ज़त इस कम तरीन का हुआ। ज़हे नसीब इस मकान के ! की जहा क़दम मुबारक का निशाँ पड़े ,और वहा के रहने वालो में दामन दौलत साया करे ,और नज़र तवज्जा से वो दोनों सरफ़राज़ हुए। यह लड़की उम्मीद वार है की कल रोज़ पंज शंबा रोज़ मुबारक है ,और मेरे नज़दीक बेहतर रोज़ नो रोज़ से है , आपकी ज़ात मुशाबा आफ़ताब के है ,तशरीफ़ फरमा कर अपने नूर से इस ज़र्रा बे मिक़्दार को क़द्र व मन्ज़िलत बख्शिए ,और जो कुछ मौजूद हो नोश फरमाए ,यह ऍन गरीब नवाज़ी और मुसाफिर परवरी है ,और उस उम्दा को भी कुछ तवाज़े कर कर ,रुखसत किया।
बादशाह ने अर्ज़ी
पढ़ी और कहला भेजा की हमने तुम्हारी दावत क़ुबूल की। अलबत्ता आएंगे। मलका ने नोकरो और
सब कारोबारियों को हुक्म किया की लवाजमा ज़ियाफ़त
का ऐसे सलीक़े से तैयार हो की बादशाह देख कर और खा कर ,बहुत महफूज़ हु। और अदना आला जो बादशाह की रकाब
में आये सब खा पी कर खुश हो कर जाये .मलका
के फरमाते और ताकीद करने से सब क़िस्म के खाने
और मीठे ,इस ज़ायक़े के तैयार हुए की अगर बहमन की बेटी खाती तो कलमा पढ़ती। जब
शाम हुई और बादशाह मुंडे तख़्त पर सवार हो कर ,मलका के मकान की तरफ तशरीफ़ लाये .मलका अपनी खास ख्वास सहेलियों के लेकर इस्तेकबाल
के वास्ते चले। जो बादशाह के तख़्त पर नज़र पड़ी
,इस आदाब से मुजरा शाहाना किया की यह यह क़ायदा देख कर बादशाह को भी हैरत ने
लिया। और इसी अंदाज़ से जलवा कर कर बादशाह को तख़्त मुरासा पर ला बिठाया। मलका ने सवा
लाख रूपये का चबूतरा तैयार करवा रखा था। ,और
एक सौ एक कश्ती जवाहर और अशर्फी और नूर बाफ़ी और रेशमी और ज़रदवजी की लगा रखी थी। और दो ज़ंजीर फील ,और दस रास एस्प इराकी और यमनी मुरासा के साज़
से तैयार कर रखे थे ,नज़र गुजरने। और आप दोनों
हाथ बांधे रु बा रु खड़ी रही। बादशाह ने बहुत मेहरबानी से फ़रमाया की तुम किस मुल्क की शहज़ादी हो और यहाँ किस सूरत से आना
हुआ ?
मलका ने आदाब बजा लेकर इल्तेमास किया की यह लोंडिवाही गुनहगार है ,जो गज़ब सुल्तानी के बाअस ,इस जंगल में पहुंची .और ये सब तमाशे खुदा के है जो आप देखते है। यह सुनते ही बादशाह के लहू ने जोश मारा ,उठ कर मुहब्बत से गले लगा लिया ,और हाथ पकड़ के ,अपने तख़्त के पास कुर्सी बिछवा कर ,हुक्म बैठने का किया। लेकिन बादशाह हैरान और ताज्जुब में बैठे थे। फ़रमाया की बादशाह बेगम को कहो की बादशाह जादियो को अपने साथ जल्दी लेकर आये .जब वह आयी ,माँ ,बहनो ने पहचाना और गले मिल कर रोई और शुक्र किया। मलका ने अपनी माँ और बहनो हमशीरो के रु बा रु इतना कुछ नक़द और जवाहर रखा की खज़ाना तमाम आलम का उसके पासंग में न चढ़े। फिर बादशाह ने सबको साथ बिठा कर खासा नोश जान फ़रमाया।
जब तलक जहा पनाह
जीते रहे ,इसी तरह गुज़री। कभी कभी आप आते और कभी मलका को भी अपने साथ महलो में ले जाते। जब बादशाह रेहलत फ़रमाई ,सल्तनत
इस अकलीम की मलका को पहुंची ,की उनके सिवा दूसरा
कोई लायक इस काम के न था। ए अज़ीज़ !सर गुज़िश्त यह है जो तूने सुनी। बस दौलत खुदा
दाद को हरगिज़ ज़वाल नहीं होता ,मगर आदमी की
नियत दुरुस्त चाहिए। बल्कि जितनी खर्च करो ,उसमे इतनी ही बरकत होती है। खुदा की क़ुदरत में ताज्जुब करना ,किसी
मज़हब में रवा नहीं। दायी ने यह बात कह कर कहा : अब अगर क़स्द वह के जाने का और उस खबर लाने का ,दिल में मुक़र्रर
रखते हो ,तो जल्दी रवाना हो। मैंने कहा : उसी वक़्त मैं जाता हु ,और खुदा चाहिए तो जल्द फिर आता हु। आखिर रुखसत
हो कर ,और फ़ज़ल इलाही पर नज़र रख कर ,उस सिम्त को चला।
बरस दिन के अरसे में ,हर्ज मर्ज खींचता हुआ ,शहर नेम्रोज़ में जा पंहुचा। जितने वहा के आदमी हज़ारी और बुज़ारी नज़र पड़े ,सियाह पोश थे। जैसा अहवाल सुना था अपनी आँखों से देखा। कई दिनों के बाद चाँद रात हुई। पहली तारीख ,सारे लोग उस शहर के छोटे बड़े लड़के बाले ,उमरा बादशाह ,औरत मर्द , एक मैदान में जमा हुए। मैं भी अपनी हालत में हैरान सर गर्दान ,उस कसरत के साथ ,अपने माल मुल्क से जुदा ,फ़क़ीर की सूरत बना हुआ खड़ा देखता था ,की देखिये पर्दा गैब से क्या ज़ाहिर होता है। इतने में एक गाव सवार ,मुंह में कफ भरे ,जोश व खरोश करता हुआ ,जंगल में से बाहर निकला ,यह अजीज़ जो इतनी मेहनत करके उसके अहवाल दरयाफ्त करने की खातिर गया था ,देखते ही उसे हवास बख्ता होकर हैरान खड़ा रह गया ,वह जवा मर्द ,क़दीम क़ायदे पर जो जो काम करता था ,कर कर फिर गया। और खलकत शहर की ,शहर की तरफ मुतवज्जा हुई। जब मुझे होश आया तब मैं पछताया की यह क्या तुझसे हरकत हुई ? अब महीने भर फिर राह देखनी पड़ी। लाचार सबके साथ चला आया और उस महीने को ,माहे रमज़ान के जैसे ,एक एक दिन गिन कर काटा। बारे दूसरी चाँद रात आयी ,मुझे गोया ईद हुई . गर्रे को फिर बादशाह खलकत समेत वही जाकर जमा हुए ,तब मैंने दिल में इरादा किया की अबकी बार जो हो सो हो ,अपने आपको संभाल कर ,इस माजरा अजीब को मालूम करना चाहिए।