Nisha

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सर गुज़िश्त आज़ाद बख्त बादशाह की


            वह गुलाम आया और ख्वाजा का पयाम लाया ,की अगर मेहरबानी फरमाइए तो हमारा खुदा वंद सब साहब का मुश्ताक़  है ,चल कर मुलाक़ात कीजिये। सौदागर बच्चा तो यह चाहता , बोला : क्या मुज़ायक़ा !  जैसे ही ख्वाजा के नज़दीक  आया और उस पर ख्वाजा की नज़र पड़ी ,एक बरछी इश्क़ की सीने में गड़ी। ताज़ीम की खातिर सर व क़द  उठा ,लेकिन हवास बख्ता। सौदागर बच्चे ने दरयाफ्त किया की अब या दाम में आया। आपस में बगल गिरी हुई। ख्वाजा ने सौदागर  बच्चे की पेशानी को बोसा दिया और अपने बराबर बिठाया। बहुत सा तमलुक करके पूछा  की अपने नाम व नस्ब  से मुझे आगाह करो ,कहा से आना हुआ ,और कहा का इरादा है  ? सौदागर बच्चा बोला की इस कम  तरीन का वतन रोम है ,और क़दीम से इस्ताम्बुल ज़ाद बोम है। मेरे क़िब्ला गाहि सौदागर है। अब बा सबब  पीरी के ताक़त सैर व सफर की नहीं रही ,इस वास्ते मुझे रुखसत किया है की कार बार तेजारत का सिखु। आज तलक  मैंने क़दम घर से बाहर न निकाला था ,यह पहला ही सफर दरपेश हुआ ,दरिया की राह हो हवा न पड़ा  ,खुश्की की तरफ से क़स्द किया। लेकिन इस अज्म  (भाषा) के मुल्क में आपके अख़लाक़ और खूबियों का जो शोर  है ,महज़ साहब की मुलाक़ात की आरज़ू में यहाँ तक आया हु। बारे फ़ज़ल इलाही से खिदमत शरीफ में मुशर्रफ  हुआ ,और उससे ज़्यादा पाया ,तमन्ना दिल की बार आयी ,खुदा सलामत रखे। अब यहाँ से कोच करूँगा।

 यह सुनते ही ख्वाजा के अक़्ल व होश जाते रहे। बोला की ए फ़रज़न्द ! ऐसी बात मुझे न सुनाओ ,कोई दिन गरीब खाने में  कर्म  फरमाओ। भला यह तो बताओ की तुम्हारा असबाब और नौकर चाकर कहा है ? सौदागर बच्चे ने  कहा  की मुसाफिर का घर सरा है ,उन्हें वहा छोड़ कर ,मैं आपके पास आया हु। ख्वाजा ने कहा की भटियार खाने   में रहना मुनासिब नहीं ,मेरा इस शहर में एतबार है और बड़ा नाम है ,जल्द उन्हें बुलवा लो। मैं एक मकान तुम्हारे असबाब के लिए खाली कर देता हु। जो कुछ जींस लाये हो ,मैं देखु ,ऐसी तदबीर करूँगा की यही तुम्हे बहुत सा नफ़अ मिले। तुम भी खुश  होंगे ,और सफर के हर्ज मर्ज से बचोगे ,और मुझे भी चंद रोज़ रहने से अपना अहसान मंद करोगे  .सौदागर बच्चे ने ऊपरी दिल ,से उज़्र किया ,लेकिन ख्वाजा ने पज़ीरा न किया ,और अपने गुमाश्ते (गायब) को फ़रमाया की बार जल्द भेजो ,और कारवा सिरा से इनका असबाब मंगवा कर ,फलाने मकान में रखवाओ।

 सौदागर बच्चे  जंगी गुलाम को उनके साथ कर दिया  की सब माल लदवा कर  ले , और आप शाम तलक ख्वाजा के साथ  बैठा रहा। जब गुज़री का वक़्त हो चूका ,और दुकान बढ़ाई ,ख्वाजा घर को चला। तब दोनों गुलामो में से एक ने कुत्ते  को बगल में लिया ,दूसरे ने कुर्सी और कालीन को उठाया ,और उन दोनों हब्शी गुलामो ने उस पिंजरे को मज़दूरों  के सर पर धर दिया ,और आप पांचो हथियार बांधे साथ हुए। ख्वाजा सौदागर बच्चे का हाथ हाथ में लिए ,बाते करता  हुआ  आया।

सौदागर बच्चे ने देखा की मकान आली शान लायक बादशाहो  या अमीरो के है ,अब नहर फर्श चांदनी का बिछा है , और मसनद के रु बा रु  असबाब ऐश का चुना है। कुत्ते की संदली भी उसी जगह बिछाई। और ख्वाजा सौदागर बच्चे को लेकर बैठा , हाज़िर शराब की दोनों पीने लगे। जब सर खुश हुए ,तब ख्वाजा ने खाना माँगा। दस्तरख्वान बिछा ,और दुनिया की नेमत चुनी गयी। पहले एक लांगरी में खाना लेकर ,सर पोश तलाई ढँक कर ,कुत्ते के वास्ते ले गए  ,और एक दस्तख्वाँ बिछा कर ,उसके आगे धरी। कुत्ता संदली से उतर ,जितना चाहा ,उतना खाया ,और सोने की लगन  में पानी पिया ,फिर चौकी पर जा बैठा। गुलामो ने रुमाल से हाथ धो मुंह धो कर उसका साफ़ किया। फिर उस ताबक़ और  लगन को गुलाम पिंजरे के नज़दीक ले गए ,और ख्वाजा से कुंजी मांग कर ,ताला खोला।

उन दोनों इंसानो को बाहर निकल कर ,कई सोंटे मार कर ,कुत्ते का झूठा उन्हें खिलाया और वही पानी पिलाया ,फिर ताला बंद कर कर चाभी ख्वाजा के हवाले कर दी। जब यह सब हो चूका ,तब ख्वाजा ने अपना खाना शुरू किया। सौदागर बच्चे को यह हरकत पसंद न आयी घिन खा कर ,हाथ खाने में न डाला। हर चंद ख्वाजा ने मन्नत की  तुम क्यू नहीं कहते हो ?सौदागर बच्चे ने कहा : यह हरकत तुम्हारी अपने से बदनुमा मालूम हुई ,इसलिए की इंसान अशरफुल  मख़लूक़ात है ,और कुत्ता नजस उल ऐन (नापाक) है। पस खुदा के दो बंदो को कुत्ते का झूठा खिलाना ,किस मज़हब और मिल्लत में रवा है ?फ़क़त यह गनीमत नहीं जानते की वे तुम्हारे क़ैद में है ?नहीं तो तुम और वे बराबर है। अब मरी पर शक आयी  की तुम मुस्लमान नहीं ,क्या जानू कौन हो ,की कुत्ते को पूजते हो ?मुझे तुम्हारा खाना  मकरूह है ,जब तलक यह शुबा दिल से दूर न हो।

ख्वाजा ने कहा : ए बाबा ! जो कुछ तू कहता है मैं सब समझता हु। और इसी खातिर बदनाम हु की  इस हशर की खलकत  ने मेरा नाम ख्वाजा सग परास्त रखा है। इसी तरह पुकारते है ,और मशहूर किया है। लेकिन खुदा की लानत काफिरो और मुशरिको  पर हो जाये। कलमा पढ़ा और सौदागर बच्चे की खातिर जमा की। तब सौदागर बच्चे ने पूछा  की अगर मुस्लमान बा दिल हो ,तो उसका क्या बाअस है ? ऐसी हरकत करके  अपने आपको बदनाम किया है। ख्वाजा ने कहा : ए फ़रज़न्द ! नाम मेरा बदनाम है ,और दो गुना महसूल इस शहर में भरता हु ,इसी वास्ते की यह भेद किसी पर ज़ाहिर न हो। तू भी मुझे माफ़ रख ,की न मुझमे क़ुदरत कहने की है और न तुझे ताक़त सुनने की है।   सौदागर बच्चे ने अपने दिल में गौर की की मुझे अपने काम से काम है ,क्या ज़रूर है जो नाहक़ में ज़्यादा मजूज़ हु ? बोला : खैर आगरा लायक कहने की नहीं तो न  कहिये। खाने में हाथ डाला और निवाला उठा कर खाने लगा।  दो महीने तक इस होशियारी और अक़्ल मंदी से सौदागर बच्चे ने ख्वाजा के साथ गुज़ारा की किसी पर हरगिज़ न खुला की यह औरत है। सब यही जानते थे की यह मर्द है। ख्वाजा से रोज़ बा रोज़ ऐसी मुहब्बत ज़्यादा  हुई की एक दम अपनी आँखों से जुदा न करता।

 

        एक दिन ऐन में नोशी की सोहबत में सौदागर बच्चे ने रोना शुरू कर दिया। ख्वाजा ने देखते ही खातिर दारी की ,और रुमाल से आंसू पोंछने लगा  ,और सबब का पूछा। सौदागर बच्चे ने कहा : ए क़िब्ला ! क्या कहु? काश्के तुम्हारी खिदमत में बंदगी  पैदा न की होती और यह शफ़क़त ,जो साहब मेरे हक़ में करते है ,न करते। अब दो मुश्किलें  मेरे पेश आयी है।: न तुम्हारी खिदमत से जुदा होने का जी चाहता है ,और न रहने का इत्तेफ़ाक़ यहाँ हो सकता है।  ए.बी.ए. जाना ज़रूरी हुआ ,लेकिन  जुदाई से उम्मीद ज़िन्दगी की नज़र नहीं आती।

यह बात सुन कर ख्वाजा बे इख़्तियार ऐसा रोने लगा की हिचकी बंध गयी ,और बोला की ए नूर ए चश्म ! ऐसी जल्दी इस अपने बूढ़े खादिम  से सैर हुए की उसे दिल गिर किये जाते हो ? क़स्द रवाना होने का दिल से जुदा करो ,जब तलक मेरी ज़िन्दगी है  ,रहो। तुम्हारी जुदाई से एक दम में जीता न रहूँगा ,बगैर अजल के मर जाऊंगा। और इस मुल्क फारस  की अब व हवा बहुत खूब और अच्छी है ,बेहतर तो यु है की एक आदमी मुतबार भेज कर ,अपने माँ बाप को  यही बुलवा लो। जो कुछ सवारी और बार बरदारी मौजूद हो ,मैं खुद हाज़िर करू। जब माँ बाप तुम्हारे और घर बार सब आया ,अपनी ख़ुशी से कार बार तेजारत का क्या करू। मैंने भी इस उम्र में ज़माने की बहुत अख्तिया खींची है। और मुल्क मुल्क फिरा हु ,अब बूढ़ा हुआ फ़रज़न्द नहीं रखता ,मैं तुझे अपने बेटे से जनता हु ,और अपना वली अहद  मुख़्तार करता हु। मेरे कार खाने से भी होशियार और खबरदार हो। जब तलक जीत हु ,एक टुकड़ा खाने को  अपने हाथ से दो ,जब मर जाऊं ,गाड़ दाब देना ,और सब माल मेरा ले लेना।


        तब सौदागर बच्चे ने जवाब दिया की सच में साहब ने ज़्यादा बाप से मेरी ग़म ख्वारी और खातिर की की मुझे माँ बाप भूल गए। लेकिन इस आसी के बाप ने एक साल की रुखसत दी थी ,अगर देर लगाऊंगा ,तो वे इस पीरी में रोते रोते मर जायँगे। पस रजा मंदी बेटे की ,खुश नोवी खुदा की है। और अगर वह मुझसे न राज़ी होंगे तो मैं डरता हु की शायद दुआ बद (बुरा) न करे। की दोनों जहां में खुदा की रहमत से महरूम रहु। अब आप की यही शफ़क़त है की बंदे  को हुक्म कीजिये की फरमाना किबला गाह बजा लाये ,और हक़ बाप से अदा हो जाये। और साहब की तवज्जह का अदाए शुक्र  ,जब तलक दम बा दम है ,मेरी गर्दन पर है। अगर अपने मुल्क में भी जाऊंगा ,तो हर दम दिल व जान  से याद करूँगा। खुदा मेहरबान है ,शायद फिर कोई ऐसा सबब हो की क़दम बोसी हासिल करू।

गरज़ सौदागर बच्चे ने ऐसी ऐसी बाते लून  मिर्ची लगा कर ख्वाजा को सुनाई ,की वह बेचारा लाचार होकर होंठ चाटने लगा।  बस की उसपर फरिफ्ता हो रहा था ,कहने लगा : अच्छा अगर तुम नहीं रहते तो मैं तुम्हारे साथ चलता हु। मेंतुझको अपनी जान के बराबर जानता हु ,पस जब जान चली जाये तो खली बदन किस काम आये ?अगर तू इसी में  रेज़ा मंद है तो चल ,और मुझे भी ले चल। सौदागर बच्चे से यह कह कर ,अपनी भी तैयारी सफर करने लगा। और गुमाश्तों को हुक्म किया की बार बरदारी की फ़िक्र जल्दी करो।

जब ख्वाजा की चलने की खबर मशहूर हुई ,वहा के सौदागरों ने सुन कर सबने तये सफर का किया। ख्वाजा सग परस्त ने गंज और जवाहर बे शुमार नौकर चाकर ,गुलाम अनगिनत ,तोहफे और असबाब शहाना बहुत सा साथ लेकर ,शहर के बाहर तंबू और चौबे और सरा परदे और कुंडले खड़ा करवा कर ,उनमे दाखिल हुआ। जितने तेजारत  वाले थे ,अपनी अपनी बिसात माल सौदागरी का लेकर हम राह हुए ,ब्राये खुद एक लश्कर हो गया।

 

          एक दिन जोगनी को पीठ दे कर वहा से निकला।हज़ारो ऊँटो पर असबाब के ,और खच्चरों पर संदूक नक़द जवाहर के लाद कर ,पांच सौ गुलाम दश्त केचाक और ज़ंग व रूम के मुसलह (हथियार) साहब शमशीर ,ताज़ी व टर्की व इराक़  वा अरबी घोड़ो पर चढ़ कर चले। सबके पीछे ख्वाजा और सौदागर बच्चा क़ीमती कपडे पहने हुए  सुखपाल पर सवार  ,और एक तख़्त बग़दादी ऊँट पर कसा ,उसपर कुत्ता मसनद पर सोया हुआ ,और उन दोनों क़ैदियों के क़ुफ़स  एक शटर पर लटका हुआ ,रवाना हुए। जिस मंज़िल में पहुंचे ,सब सौदागर ख्वाजा की बारगाह  में आकर  हाज़िर होते ,और दस्तरख्वान पर खाना खाते ,और शराब पीते। ख्वाजा ,सौदागर बच्चे के साथ होने की ख़ुशी में ,शुक्र खुदा का करता ,और कोच दर कोच चला जाता था। बारे ,बा खैर व आफ़ियत नज़दीक कुस्तुन्तुनिया  के आ पहुंचे। बाहर शहर क मुक़ाम किया। सौदागर बच्चे ने कहा : ए क़िब्ला !अगर रुखसत दीजिये तो मैं जाकर माँ बाप को देखु  ,और मकान साहब के वास्ते खाली करू ,जब मिज़ाज सामी में आये ,शहर में दाखिल हो जाइये।



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