सर गुज़िश्त आज़ाद बख्त बादशाह की
ख्वाजा ने कहा
: तुम्हारी खातिर तो मैं यहाँ आया ,जल्द मिल जुल कर मेरे पास आओ ,और अपने नज़दीक मेरे
उतरने को मकान दो। सौदागर बच्चा रुखसत होकर
अपने घर में आया। सब वज़ीर के महल के आदमी हैरान हुए की यह मर्द कौन घुस आया। सौदागर बच्चा (बेटी वज़ीर
की ) अपनी माँ के पाओ पर जा गिरी ,और रोइ ,और बोली की मैं तुम्हारी जाई हु। सुनते ही वज़ीर की बेगम गालिया देने लगी
की ए तेतरी !तू बड़ी शात्ताहु निकली ,अपना मुंह तूने काला किया और खानदान को रुस्वा
किया। हम तो तेरी जान को रो पीट कर ,सब्र करके तुझसे हाथ धो बैठे थे ,जा दफा हो।
तब वज़ीर ज़ादी ने सर पर से पगड़ी उतार कर फ़ेंक दी और बोली :ए अम्मा जान ! मैं बुरी जगह नहीं गयी ,कुछ बुरा नहीं किया ,तुम्हारे कहने के मुताबिक़ ,बाबा को क़ैद से छुड़ाने की खातिर यह सब फ़िक्र की। अल्हम्दुलिल्लाह ! की तुम्हारी दुआ की बरकत से और अल्लाह के फजल से पूरा काम करके आयी हु ,की निशा पुर से इस सौदागर को उसके कुत्ते के साथ लायी हु। और तुम्हारी अमानत में भी खयानत नहीं की ,सफर के लिए मरदाना भेस किया है। अब एक रोज़ का काम बाक़ी है ,वह कर कर ,क़िब्ला गाह को पंडित खाने से छुड़ाती हु ,और अपने घर में आती हु। अगर हुक्म हो तो फिर जाऊं और एक रोज़ बाहर रह खिदमत में आऊं। माँ ने जब खूब मालूम किया की मेरी बेटी ने मर्दो का काम किया ,और अपने लिए सा तरह सलामत व महफूज़ रखा है ,खुदा की दरगाह में नाक घिसनी की ,और खुश हो कर बेटी को छाती से लगा लिया , और मुंह चूमा ,बलाये ली ,दुआए दी ,और रुखसत किया की तू जो मुनासिब जान ,सो कर मेरी खातिर जमा हुई।
वज़ीर ज़ादी फिर
सौदागर बच्चा बन कर ,ख्वाजा सगपरस्त पास चली। वहा ख्वाजा को जुदाई उसकी आज बस शाक हुई , बे इख़्तियार हो कर कोच किया। अचानक नज़दीक
शहर के ,इधर से सौदागर बच्चा जाता था और उधर से ख्वाजा आता। था उसी में मुलाक़ात हुई। ख्वाजा ने देखते ही कहा : बाबा ! मुझ बूढ़े को अकेला छोड़
कर कहा गया था ? सौदागर बच्चा बोला : आपसे
इजाज़त लेकर अपने घर गया था ,आखिर मुलाज़िमत
के इश्तियाक़ ने वहा रहने न दिया ,आकर हाज़िर हुआ। शहर के दरवाज़े पर दरिया
के किनारे एक बाग़ साया दार देख कर ,खेमा इस्ताद किया और वही उतरे। ख्वाजा और सौदागर बच्चा बहम बैठ कर शराब व
कबाब पीने खाने लगे। जब असर का वक़्त हुआ ,सैर
तमाशे की खातिर खेमे से निकल कर संदीलीयो पर बैठे। अचानक एक कराओल बादशाही उधर आ निकला ,उनका लश्कर और शान देख कर अचंम्भे हो रहा और दिल में कहा : शायद एलची किसी बादशाह का आया ,है खड़ा तमाशा देखता था।
ख्वाजा के शातिर ने उसको आगे बुलाया और पूछा की तू कौन है ?उसने कहा मैं बादशाह का मीर शिकार हु। शातिर ने ख्वाजा से उसका अहवाल कहा। ख्वाजा ने एक गुलाम काफिरी को कहा की जाकर बाज़ दार से कह कर हम मुसाफिर है ,अगर जी चाहे तो आओ बैठ ,क़हवा हाज़िर है। जब मीर शिकार ने नाम सौदागर का सुना ,ज़्यादा हैरान हुआ ,और यतीम के साथ ख्वाजा की मजलिस में आया। तरह तरह का खाना और शान व शौकत सिपाह गुलाम देखे ख्वाजा और सौदागर बच्चे को सलाम किया ,और मर्तबा सग का निगाह किया ,होश उसके जाते रहे हक्का बक्का सा हो गया। ख्वाजा ने उसे बिठला कर क़हवा की ज़ियाफ़त की। करावल ने नाम व निशान ख्वाजा का पूछा। जब रुखसत मांगी ,ख्वाजा ने कई थान और कुछ तोहफे उसे दे कर इजाज़त दी। सुबह को जब बादशाह के दरबार में हाज़िर हुआ ,दरबारियों से ख्वाजा सौदागर का ज़िक्र करने लगा। रफ्ता रफ्ता मुझको खबर हुई ,मीर शिकार को मैंने रु बा रु तलब किया ,और सौदगर का अहवाल पूछा।
उसने जो कुछ
देखा था अर्ज़ किया। सुनने से कुत्ते और दो आदमियों के पिंजरे में क़ैद होने के मुझको
खफगी आयी। मैंने फ़रमाया : वह मर्द और ताजिर क़तल वाजिब है। नसकिचियो को हुक्म किया की
जल्दी जाओ ,उस बे दीन का सर काट लाओ। क़ज़ा कार वही एलची फरंग का दरबार में हाज़िर था
,मुस्कुराया। मुझे और भी गुस्सा आया ,फ़रमाया
की ए बे अदब !बादशाहो के हुज़ूर में बे सबब दांत खोलने ,अदब से बाहर है। बे महल
हंसने से ,रोना बेहतर है। उसने गुज़ारिश की
: जहा पनाह ! कई बाते ख्याल में गुज़रे ,लिहाज़ा फड़वी तबस्सुम हुआ। पहले यह की वज़ीर सच्चा है ,बे क़ैद खाने से रिहाई पायेगा। दूसरे
यह की बादशाह खून न हक़ से इस वज़ीर के बच्चे। तीसरे यह की क़िब्ला आलम ने बे सबब और बे तक़सीर इस सौदागर
को हुक्म क़तल का किया। इन हरकतों से ताज्जुब
हुआ की बे तहक़ीक़ , बेवक़ूफ़ के कहने से ,आप हर
किसी को हुकम क़तल का कर बैठते है। खुदा जाने सच में उस ख्वाजा का अहवाल क्या है ! उसे हुज़ूर में तलब कीजिये ,और उसकी वारदात
पूछिए ,अगर तक़सीर और ठहरे ,तब मुख़्तार हो
,जो मर्ज़ी में आये उससे सुलूक कीजिये।
जब एलची ने इस तरह से समझाया ,मुझे भी वज़ीर का कहना याद आया ,फ़रमाया : जल्द सौदागर को उसके बेटे के साथ और वह सग और हाज़िर करो। कोरची उसके बुलाने को दौड़ाये। एकदम में सबको हुज़ूर में ले आये। रु बा रु तलब किया। पहले ख्वाजा और बेटा आया ,दोनों क़ीमती लिबास पहने हुए। सौदागर बच्चे का जमाल देखने से सब अदना आला हैरान हुए। एक ख्वान तलाई जवाहर से भरा हुआ सौदागर बच्चा हाथ में लिए हुए आया ,और मेरे तख़्त के आगे निछावर कर दिया ,आदाब बजा लेकर खड़ा हुआ। ख्वाजा ने भी ज़मीन चूमि और दुआ करने लगा। गोयाई से बोलता था गोया बुलबुले हज़ार दास्ताँ है। मैंने उसकी लियाक़त को बहुत पसंद किया ,लेकिन उसकी रौ से कहा : ए शैतान आदमी की सूरत ! तूने यह क्या जाल जाल फैलाया है और अपनी राह में कुंआ खोदा है ? तेरा क्या दीन है और यह कौन क़ानून है ?किस पैगम्बर की उम्मत है ?अगर काफिर है ,तो भी यह कैसी मत है ?और तेरा नाम है की तेरा यह काम है ?
उनने कहा : क़िब्ला आलम की उम्र दौलत बढ़ती रहे ,गुलाम का दीन यह है की खुदा एक है ,उसका कोई शरीक नहीं। और मुहम्मद मुस्तफा (स,अ ,व ) का कलमा पढता। और उसके बाद बारह इमाम को अपना पेशवा जानता हु। और मेरा आयीं यह है की पांचो वक़्त की नमाज़ पढता हु ,और रोज़ा रखता हु ,हज भी कर आया हु ,और अपने माल से ज़कात देता हु ,और मुस्लमान कहा जाता हु। लेकिन ज़ाहिर में यह सारे ऐब जो मुझमे भरे है ,जिनके सबब से आप न खुश हुए है ,और तमाम ख़ल्क़ अल्लाह में बदनाम हो रहा हु ,उसके बाद भी ज़ाहिर नहीं कर सकता ,हर चंद सग परस्त मशहूर हु ,और मुज़ाएफ़ महसूल देता हु ,यह सब क़ुबूल किया है ,पर दिल का भेद किसी से नहीं कहा इस बहाने से मेरा गुस्सा ज़्यादा हुआ और कहा : मुझे तू बातो में फुसलाता है ! मैं नहीं मानने का ,जब तलक इस अपनी गुमराही की दलील माक़ूल अर्ज़ करे की मेरे दिल नशीन हो ,तब तो जान से बचेगा। नहीं तो उसके क़सास में तेरा पेट चाक करवाऊंगा ,तो सबको सबक़ हो ,की बार दीगर कोई दीन मुहम्मदी में रखना न करे।
ख्वाजा ने कहा : ए बादशाह ! मुझ कम्बख्त के खून से दर गुज़र कर ,और जितना माल मेरा है की गिनती और शुमार से बाहर है ,सबको ज़ब्त करले और मुझे मेरे बेटे को अपने तख़्त के मेहरबानी करके छोड़ दे ,और जान बख्शी कर। मैंने मुस्कुरा कर कहा : ए बेवक़ूफ़ ! अपने माल की चमक मुझे दिखाता है। सिवाए सच बोलने के ,अब तेरी मुख्लिसि नहीं। यह सुनते ही ख्वाजा की आँखों से बे इख़्तियार आंसू टपकने लगे ,और अपने बेटे की तरफ देख कर एक आह भरी और बोला : मैं तो बादशाह के रु बा रु गुनहगार ठहरा ,मारा जाऊंगा ,अब क्या करू ? तुझे किसको सौंपू ? मैंने डांटा की ए मक्कार ! बस अब उज़्र बहुत किये ,जो कहना है जल्द कह।
तब तो उस मर्द ने क़दम बढ़ा कर ,तख़्त के आस पास आकर ,पाए को बोसा दिया और सिफ़त व सना करने लगा और बोला ! शहंशाह ! अगर हुक्म क़त्ल में न होता ,तो सब सियासते सहता और अपना माजरा न कहता। लेकिन जान सबसे अज़ीज़ है ,कोई आपसे कुंए में नहीं गिरता। पस जान की मुखालिफत वाजिब है ,और तर्क वाजिब का ,खिलाफ हुक्म खुदा के है , खैर ,जो मर्ज़ी मुबारक यही है ,तो निडर इस पीर बूढ़े की सुनिए। पहले हुक्म हो की वह दोनों कटहरे ,जिनमे दो आदमी क़ैद है ,हुज़ूर में लाकर रखे। मैं अपना अहवाल कहता हु ,अगर कही झूट कहु ,तो उनसे पूछ कर मुझे क़ाएल कीजिये और इंसाफ फरमाइए। मुझे यह बात उसकी पसंद आयी। पिंजरों को मंगवा कर ,उन दोनों को निकलवा कर ,ख्वाजा के पास खड़ा किया।
ख्वाजा ने कहा : ए बादशाह ! यह मर्द जो दाहनी तरफ है ,गुलाम का बड़ा भाई है। और जो बाए को खड़ा है ,मंझला बिरादर है। मैं इन दोनों से छोटा हु ,मेरा बाप मुल्क फारस में सौदागर था। जब मैं चौदा बरस का हुआ ,क़िब्ला गाह ने रेहलत की। जब तकफीन से फरागत हुई ,और फूल उठ चुके ,एक रोज़ इन दोनों भाइयो ने मुझे कहा की अब बाप का माल जो कुछ है बांट ले। जिसका दिल जो चाहे ,सो काम करे। मैंने सुन कर कहा : ए भाईयो ! यह क्या बात है ?मैं तुम्हारा गुलाम हु ,भाई चारे का दावा नहीं रखता। एक बाप मर गया ,तुम दोनों मेरे बाप की जगह मेरे सर पर क़ायम हो। एक नान खुश्क चाहता हु ,जिसमे ज़िन्दगी बसर करू और तुम्हारी खिदमत में हाज़िर रहु। मुझे हिस्से से क्या काम है ?तुम्हारे आगे के झूठे से अपना पेट भर लूंगा , और तुम्हारे पास रहूँगा। मैं लड़का हु ,कुछ पढ़ा लिखा भी नहीं ,मुझसे क्या हो सकेगा ?अभी तुम मुझे तरबियत करो।
यह सुन कर जवाब दिया की तू चाहता है अपने साथ हमें भी खराब और मोहताज करे। मैं छुपके एक कोने में रोने लगा। फिर दिल को समझाया की भाई आखिर बुज़ुर्ग है ,मेरी तालीम की खातिर चश्म नुमायी करते है की कुछ सीखे। इसी फ़िक्र में सो गया। सुबह को एक पियादा क़ाज़ी और मुझे एक कमरे में ले गया। वहा देखा तो यही दोनों भाई हाज़िर है। क़ाज़ी ने कहा : क्यू वर्सा (विरासत) बाँट नहीं लेता ? मैंने घर में जो कहा था ,वहा भी जवाब दिया। भाइयो ने जवाब दिया : अगर यह बात अपने दिल से कहता है ,तो हमें ला दावा लिख दे की बाप के माल व असबाब से ,मुझे कुछ इलाक़ा नहीं। तब भी मैंने यही समझा की यह दोनों मेरे बुज़ुर्ग है ,मेरी नसीहत के वास्ते कहते है की बाप का माल लेकर ,बे जा खर्च न करे। बगैर उनकी मर्ज़ी के ,फारिग खत बा मुहर क़ाज़ी मैंने लिख दी ,यह राज़ी हुए मैं घर में आया।
दूसरे दिन मुझसे कहने लगे : ए भाई ! यह मकान जिसमे तू रहता है हमें ज़रूरत है। तू अपनी बोद व बाश की खातिर और जगह लेकर जा रह। तब मैंने कहा की यह बाप की हवेली में भी रहने से भी खुश नहीं। लाचार इरादा उठ जाने का क्या। जहा पनाह ! जब मेरा बाप जीता था ,तो जिस वक़्त सफर सफर से आता था हर एक मुल्क का तोहफा ,सौगात के लाता ,और मुझे देता। इस वास्ते की छोटे बेटे को हर कोई ज़्यादा प्यार करता है। मैंने उनको बेच बेच कर थोड़ी सी अपनी पोंजी बहम पहुचायी थी ,उसी से कुछ खरीद फरोख्त करता। एक बार लड़की मेरी खातिर तरकिस्तान से मेरा बाप लाया ,और एक दफा घोड़े ले कर आया। उनमे से एक बछड़ा नाकाण्ड की हो नहार था ,वो भी मुझे दे दिया। मैं अपने पास से दाना घास उसका करता था।
आखिर उनकी बे मरुव्वती देख कर एक हवेली खरीद की। वहा जा रहा। यह कुत्ता भी मेरे साथ चला आया। वास्ते ज़रुरियात के ,असबाब खाना दारी का जमा किया और दो गुलाम खिदमत की खातिर मोल लिए। और बाक़ी पोंजी से एक दुकान बज़्ज़ाज़ी करके ,खुदा के तवक्कुल पर बैठा। अपनी क़िस्मत पर राज़ी था। अगरचे भाईयो ने बद खुलकी की ,पर खुदा जो मेहरबान हुआ ,तीन बरस के अरसे में ऐसी दुकान जमी की मैं साहब ऐतबार हुआ. सब सरकारों में जो तोहफा चाहता ,मेरी ही दुकान से जाता। उसमे बहुत से रुपये कमाए और निहायत फरागत से गुजरने लगी। हर दम जनाब बारी में शुक्राना करता ,और आराम से रहता।
अचानक जुमे के
रोज़ मैं अपने घर बैठा था की एक गुलाम मेरा सौदे सल्फ को बाजार गया था ,बाद एक दम के
रोता हुआ आया। मैंने सबब पूछा की तुझे क्या हुआ ? खफा हो कर बोला की तुम्हे क्या काम
है ? तुम ख़ुशी मनाओ ,लेकिन क़यामत में क्या जवाब दोगे ? मैंने कहा : ए हब्शी !ऐसी क्या
बला तुझपे नाज़िल हुई ? उसने कहा : यह गज़ब है
की तुम्हारे बड़े भाइयो की चौक के चौराहे में एक यहूदी ने मश्के बांधे है ,और कमचिया
मारता है ,और हँसता है की अगर मेरे रूपये न
दोगे तो मारते मारते मार ही डालूंगा। भला मुझे सवाब तो हपगा ,पस तुम्हारे भाइयो की यह नौबत ,और तुम बे फ़िक्र हो। यह बात अच्छी है
? लोग क्या कहेंगे ? यह बात गुलाम से सुनते ही लहू ने जोश किया। नंगे पाओ बाजार की तरफ दौड़ा ,और गुलामो को कहा
: जल्द रूपये लेकर आओ। जैसे वहा गया देखा तो
जो कुछ गुलाम ने कहा था ,सच है। उन पर मार
पड़ रही है। हाकिम के पियादो को कहा : वास्ते खुदा के ज़रा रह जाओ ,मैं यहूदी से पुछु की ऐसी क्या गलती की है ,जिसके
बदले यह मिला है।
यह कह कर मैं यहूदी के नज़दीक गया और कहा : आज रोज़ आदीना है ,उनको क्यू ज़र्ब शलक कर रहा है ? उसने जवाब दिया : अगर हिमायत करते हो तो पूरी करो ,उनके बदले रुपये हवाले करो ,नहीं तो अपने घर की राह लो। मैंने कहा : कैसे रूपये ? दस्त आवेज़ निकाल , मैं रूपये गिन देता हु। उसने कहा : हाकिम के पास दे आया हु। उसमे मेरे दो गुलाम दो बदरे रूपये लेकर आये। हज़ार रूपये मैंने यहूदी को दिए और भाईओ को छुड़ाया। उनकी यह सूरत हो रही थी की बदन से नंगे ,और भूके पियासे। अपने हमराह घर में लाया ,वही हम्माम में नहलवाया ,नयी पोशाक पहनाई ,खाना खिलाया। हरगिज़ उनसे यह न कहा की इतना माल बाप क्या किया ? शायद शर्मिंदा हो। ए बादशाह ! ये दोनों मौजूद है ,पूछिए की सच कहता हु ,या कोई बात झूट भी है ? खैर जब कई दिन में मार की कोफ़्त से बहाल हुए एक रोज़ मैंने कहा : की ए भाईयो ! अब इस शहर में तुम बे एतबार हो गए हो ,बेहतर यह है की चंद रोज़ सफर करो। यह सुन कर चुप हो रहे मैंने मालूम किया की राज़ी है ,सफर की तैयारी करने लगा। पाल पर तल ,बार बरदारी और सवारी की फ़िक्र करके ,बीस हज़ार रूपये की जींस तेजारत की खरीद की। एक काफला सौदागरों का बुखारे को जाता था , उनके साथ कर दिया।