Nisha

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सर गुज़िश्त आज़ाद बख्त बादशाह की

 

    

         बाद एक साल के वह कारवां फिर आया ,उनकी खैर खबर कुछ न पायी। आखिर एक आशना से कस्मे  दे कर पूछा। उसने कहा : जब बुखारे (जगह का नाम ) में गए ,एक ने जुवे खाने में अपना तमाम माल हार दिया। अब वहा की जारोब कशी करता है। जुवारी जो जमा होते है ,उनकी खिदमत करता है ,वह खैरात के कुछ देते है।  वहा गुर्गा बना रहता है। और दूसरा बोज़ा फरोश की लड़की पर आशिक़ हो ,अपना माल सारा ख़त्म कर दिया। अब वह बोज़ा खाने की टहल किया करता है।  क़ाफ़ले के आदमी इसलिए नहीं कहते की तू शर्मिंदा होगा।

यह अहवाल इस शख्स से सुन कर ,मेरी अजब हालत हुई। मारे फ़िक्र के नींद भूक जाती रही। ज़ादे राह ले कर इरादा  बुखारे का किया। जब वहा पंहुचा दोनों को ढूंढ ढांढ कर अपने मकान में लाया। ग़ुस्ल करवा कर नई पोशाक पहनाई। और उनकी हालत के डर से एक बात मुंह में न रखी। फिर माल सौदा गिरी का इनके वास्ते ख़रीदा और इरादा घर का किया  .जब नज़दीक निशा पुर के आया ,एक गाव में माल व असबाब के साथ इनको  घर को छोड़ आया ,इसलिए की मेरे आने की किसी को खबर न हो। दो दिन बाद मशहूर किया की मेरे भाई सफर से  आये है  ,कल उनके इस्तेकबाल के लिए जाऊंगा। सुबह को चाहा की जाऊं ,एक गिरहस्त उसी ज़िले का मेरे पास आया   और  फरियाद करने लगा। मैं उसकी आवाज़ सुन कर बाहर निकला। उसे रोता देख कर पूछा की क्यू ज़ार व क़तार  रोता है ? वह बोला : तुम्हारे भाइयो के सबब से हमारे घर लूटे गए ,काश की उनको तुम वहा न छोड़ आते !

मैंने पूछा : क्या मुसीबत गुज़री ? बोला की रात को डाका आया ,  उनका माल व असबाब लूटा और हमारे घर भी लूट ले गए  .मैंने अफ़सोस किया और पूछा की अब  वे दोनों कहा है ? कहा : शहर के बाहर नंगे मूंगे ,खराब खस्ता बैठे है। वही दो जोड़ी कपड़ो के साथ गया पहना कर घर में लाया।  लोग  सुन कर  उनको देखने को आते थे ,और ये मारे शर्मिंदगी के बाहर न निकलते। थे तीन इसी तरह गुज़रे। तब मैंने दिल में गौर की की कब तलक यह कोने में दुबके  बैठे रहेंगे। बने तो उनको अपने साथ सफर में ले जाऊं। 

भाईयो से कहा : अगर फरमाइए तो यह फिदवि आपके साथ चले। ये खामोश रहे। फिर लवाजमा सफर और जींस सौदागरी की तैयार करके चला ,और उनके साथ लिया। जिस वक़्त माल की ज़कात देकर ,असबाब कश्ती पर चढ़ाया और लंगर उठाया ,नाव चली। यह कुत्ता किनारे पर सो रहा था। जब चौंका और जहाज़ को मंझधार में देखा ,हैरान हो कर भोंका ,और दरिया में कूद पड़ा और तैरने लगा।  एक एक पीनसोई दौड़ा दी ,बरसग के लेकर कश्ती में. पहुंचाया। एक महीना खैर व आफ़ियत से गुज़रा। कही मंझला भाई मेरी लौंडी पर आशिक़ हुआ। एक दिन बड़े भाई से कहने लगा की छोटे भाई की मन्नत उठाने से बड़ी शर्मिंदगी हासिल हुई ,उसका तदारक क्या करे ? बड़े ने जवाब दिया की एक सलाह दिल में ठहराई है ,अगर बन आये तो बड़ी बात है। आखिर दोनों ने मस्लेहत करके तजवीज़  की की इसे मार डाले ,और सारे माल असबाब के क़ाबिज़ हो।


        एक दिन मैं जहाज़ कोठरी में सोता था ,और लड़की पाव दबा रही थी ,की मंझला भाई आया और जल्दी से मुझे जगाया। मैं हड़बड़ा कर चौंका और बाहर निकला ,यह कुत्ता भी मेरे साथ हो लिया। देखु तो बड़ा भाई जहाज़ की बाड़ पर हाथ टेके तमाशा दरिया का देख रहा है ,और मुझे पुकारता है। मैंने पास जाकर कहा : खैर तो है ? बोला की अजब तरह का तमाशा हो रहा है की दरियाई आदमी ,मोती क सीपिया और मूंगे कर दरख्त हाथ में लिए हुए नाचते है ,अगर और कोई ऐसी खिलाफ कहता तो मैं न मानता ,बड़े भाई के कहने को रास्त (रास्ता) जाना। देखने को सर  झुकाया ,हर चंद निगाह की ,कुछ नज़र न आया। और वह यही कहता रहा ,अब देखा ? लेकिन कुछ हो तो देखु। इसमें मुझे ग़ाफ़िल पाकर  मंझले ने अचानक पीछे आकर ,ऐसा धकेला की बे इख़्तियार पानी में गिर पड़ा। और वह रोने  धोने लगे की दौड़ यु हमारा भाई दरिया में डूबा। 

इतने में नाव बढ़ गयी ,और दरिया की लहर मुझे कही से कही ले गयी। गोते पे गोते खाता था। आखिर थक गया। खुदा को याद करता था ,कुछ बस न चलता था। एक बारगी किसी चीज़ पर हाथ पड़ा ,आंख खोल कर देखा तो  यही कुत्ता है।  शायद जिस दम मुझे दरिया में डाला ,मेरे साथ यह भी कूदा ,और तैरता हुआ मेरे साथ लिपटा चला जाता  था। मैंने उसकी दुम पकड़ ली ,अल्लाह ने इसको मेरी ज़िन्दगी का सबब किया। सात दिन और रात यही सूरत  गुज़री ,आठवे दिन किनारे जा लगे। .ताक़त न थी ,लेटे लेटे करवटे खा कर जैसे तैसे अपने आपको खुश्की में डाला।  एक दिन बेहोश पड़ा रहा। दूसरे दिन कुत्ते की आवाज़ कान में गयी ,होश में आया खुदा का शुक्र बजा लाया। इधर उधर देखने लगा। दूर से सवाद शहर का नज़र आया ,लेकिन ताक़त कहा की इरादा करू ! लाचार  दो क़दम चलता ,फिर बैठता। इसी हालत से शाम तक कोस भर राह काटी।

बीच में एक पहाड़ मिला ,रात को वहा गिर रहा। सुबह को शहर में दाखिल हुआ। जब बाजार में गया नान बाई और हलवाई की दुकाने नज़र आई। दिल तरसने लगा ,न पास पैसा जो खरीद करू ,न जी चाहे की मुफ्त मांगू। इसी तरह अपने दिल को तसल्ली देता हुआ की अगली दुकान से लूंगा ,चला जाता था ,आखिर ताक़त न रही और पेट में आग लगी। नज़दीक था की रूह बदन से निकले ,नागाह दो जवान को देखा की लिबास आजम का पहने हुए ,और हाथ पकडे चले आते है। उनको देख कर खुश हुआ की यह अपने मुल्क के इंसान है ,शायद आशना सूरत हो  ,उनसे अपना अहवाल कहूंगा।  जब नज़दीक आये तो दोनों मेरे बिरादरे हक़ीक़ी थे। देख कर निपट शाद हुआ ,शुक्र खुदा का किया  की  खुदा ने आबरू रख ली , गैर के आगे हाथ न पिसारा। नज़दीक जाकर  सलाम किया और बड़े   भाई का हाथ चूमा। उन्होंने मुझे देखते ही शोर व गुल किया। मंझले भाई ने तमाचा मारा की मैं लड़खड़ा कर गिर  पड़ा। बड़े दामन पकड़ा की शायद यह हिमायत करेगा ,उसने लात मारी।

गरज़ दोनों ने मुझे खूब बे इज़्ज़त किया ,और हज़रात युसूफ (आ,सलाम ) के भाइयो जैसा काम किया। हर चंद मैंने खुदा के वास्ते  दिए और गिड़गिड़ाया हरगिज़ रहम न खाया। एक खलकत जमा हुई ,सबने पूछा : इसका क्या गुनाह है ? तब भाइयो ने कहा : यह हराम ज़ादा हमारे भाई का नौकर था सो उसको दरिया में डाल दिया ,और माल असबाब सब ले लिया।  हम मुद्दत से तलाश में थे ,आज इस सूरत से नज़र आया है। और मुझसे पूछते थे की ए ज़ालिम ! यह क्या तेरे दिल में आया ,की हमारे भाई को मार खपाया ! क्या उसने तेरी तक़सीर (क़ुसूर) की थी ? उसने  तुझसे क्या बुरा सलूक किया था की अपना मुख़्तार बनाया था ?फिर इन दोनों ने अपने गिरेबान चाक कर डाले ,और बे इख़्तियार झूट मूठ भाई की खातिर रोते थे और लात मुक्की मुझ पर करते थे।

इसमें हाकिम के पियादे आये ,और उनको डांटा की क्यू मारते हो ?और मेरा हाथ पकड़ कर कोतवाल के पास ले गए। ये दोनों भी साथ चले और हाकिम से भी यहि कहा ,और बा तौर रिश्वत के कुछ देकर अपना इंसाफ चाहा ,और खून  नाहक़ का दावा किया। हाकिम ने मुझसे पूछा। मेरी यह हालत थी की मारे भूक और मार पीट के ,ताक़त  बाक़ी न थी। सर निचे किये खड़ा रहा ,कुछ मुंह से न निकला। हाकिम को भी यक़ीन हुआ की यह खुनी है। फ़रमाया की इसे  मैदान में ले जाकर सूली दो। जहा पनाह ! मैंने रूपये देकर इनको यहूदी की क़ैद से छुड़ाया था ,इसके बदले उन्होंने भी रूपये खर्च करके मेरी जान को बख्शा। .यह दोनों हाज़िर है इनसे पूछिए ,खैर मुझे ले गए।  जब दार को देखा ,हाथ  ज़िन्दगी से धोये।

सिवाए इस कुत्ते के ,कोई मेरा रोने वाला न था। इसकी हालत थी की हर एक आदमी के पाव लोटता और चिल्लाता था। कोई लकड़ी कोई पत्थर से मारता  लेकिन यह उस जगह से न सरकता। और मैं रु बा रु क़िब्ला खड़ा हो खुदा को कहता  की इस वक़्त मैं तेरी ज़ात के सिवा मेरा कोई नहीं जो आड़े आये और बे गुनाह को बचाये। अब तो यही बचाये  तो बचता हु। यह कह कर कलमा शाहदत का पढ़ कर तिवरा कर गिर पड़ा। खुदा की हिकमत से इस शहर के  बादशाह को कलंज की बीमारी हुई। उमरा और हकीम जमा हुए। जो इलाज करते थे ,फायदे मंद न होता था। एक बुज़ुर्ग ने कहा  की सबसे बेहतर यह दवा है की मोहताजों को कुछ खैरात करो ,और बंदी दानो को आज़ाद करो  ,दवा से दुआ में बड़ा असर है। वही बादशाह चेले पंडित खानो की तरफ दौड़ाये।

अचानक एक उस मैदान में आ निकला। भीड़ देख कर मालूम किया की किसी को सूली चढ़ाते   है। यह सुनते ही घोड़े को नज़दीक ला कर तलवार  से तनाबे काट दी। हाकिम के पियादो को डांटा और बाज़ रहने को कहा की ऐसे वक़्त  में की बादशाह की यह हालत ,है तुम खुदा के बन्दे को क़त्ल करते हो ! और मुझे छुड़वा दिया।  तब यह दोनों  भाई फिर हाकिम के पास गए ,और मेरे क़त्ल के वास्ते कहा। शाहने ने रिश्वत खाई थी ,जो यह कहते थे सो करता था।

कोतवाल ने उनसे कहा की खातिर जमा रखो ,अब मैं उसे ऐसा क़ैद करता हु की आपसे आप मारे भूको के बे आब व  दाना मर जाये ,किसी को खबर न हो। मुझे  पकड़ लाये और एक गोशे में रखा। उस शहर से बाहर कोस एक पर ,एक पहाड़ था की हज़रत सुलेमान के वक़्त में देवो ने एक कुंआ तंग व तरीक उसमे खोदा था ,उसका नाम ज़िन्दान सुलेमान  कहते थे। जिस पर बड़ा गज़ब बादशाही होता ,उसे वहा महबूस करते ,वह खुद बा खुद मर जाता। रात को चुपके  यह दोनों भाई और कोतवाल के डंडे मुझे उस पहाड़ पर ले गए। और उस गार में डाल कर अपनी खातिर  जमा करके फिरे।

ए बादशाह ! यह कुत्ता मेरे साथ चला गया। जब मुझे कुंए में गिराया तब यह उसकी मेंड पर लेट रहा।  मैं अंदर बेहोश पड़ा था। ज़रा सी हरकत आयी ,तो मैं  आपको मुर्दा ख्याल किया ,और उस मकान को गोर समझा। इसमें दो शख्सों की आवाज़ कान में पड़ी की कुछ आपस में बाते करते है। यही मालूम किया की मुनकर नकीर है ,तुझसे सवाल  करने आये है। सरसराहट रस्सी की सुनी ,जैसे किसी ने वहा लटकाई। मैं हैरत में था ,ज़मीन को टटोलता तो हड्डिया हाथ में आयी।

बाद एक तरफ के आवाज़ चपड़ चपड़ मुंह चलाने की मेरे कान में आयी जैसे कोई कुछ खाता है। मैंने पूछा की ए ! खुदा के बंदो तुम कौन हो ? खुदा के वास्ते बताओ। वो हसे और बोले : यह ज़िन्दान महतर सुलेमान का है ,और हम क़ैदी  है। मैंने उनसे पूछा  : क्या मैं जीता हु ? फिर खिलखिला कर हसे और कहा : अब तलक  तो ज़िंदा है ,पर अब मरेगा। मैंने कहा : तुम जो खाते हो ,क्या हो जो मुझे भी थोड़ा दो। तब झुंझला कर खाली जवाब दिया और कुछ न दिया। वह खा पी कर सो रहे। मैं मारे कमज़ोरी और ताक़त के ,गश में पड़ा रोता था ,और खुदा को याद करता था।  क़िब्ला आलम ! सात दिन दरिया में ,और इतने  भाइयो के बोहतान  के सबब दाना न नसीब न हुआ। अलावा खाने के बदले  मार पीट खायी और ऐसे ज़िन्दान में फंसा की सूरत रिहाई की ख्याल में भी न आती थी।

 

         आखिर जान कनदनी की नौबत पहुंची ,कभी दम आता ,कभी निकल जाता था। लेकिन कभी कभी आधी रात को एक शख्स आता ,और रुमाल में रोटियां और पानी की सुराही डोरी में बांध कर लटका देता और पुकारता। वह दोनों  आदमी जो मेरे पास महबूस थे ,ले लेते और खाते पीते। ऊपर से कुत्ते ने हमेशा यह अहवाल देखते देखते अक़्ल दौड़ाई की जिस तरह  यह शख्स आब व नान कुंए में लटका देता है ,तो भी ऐसी फ़िक्र की कुछ इस बेकस को जो मेरा  खाविंद है ,आज़ूक़ा पहुंचे तो दम बचे। यह ख्याल करके शहर में गया ,नान बाई की दुकान में मिम्बर पर   गुर्दे चुने   हुए धरे थे। जस्त मार कर मार कर एक कलचा मुंह में लिया और भागा। लोग पीछे  दौड़े ढेले मारते थे  लेकिन  उसने नान को नहीं छोड़ा ,आदमी थक कर फिरे।  शहर  के कुत्ते पीछे लगे उनसे लड़ता भिड़ता रोटी को बचाये ,उस चाह पर आया और नान को अंदर डाल दिया। रोज़ रोशन था ,मैंने रोटी को  अपने पास पड़ा देखा और कुत्ते की आवाज़ सुनी ,उसको उठाया  कुत्ता रोटी फ़ेंक कर ,पानी की तलाश में गया।

किसी गाँव के किनारे एक बुढ़िया की  झोपडी थी ,ठिलिया और बधना पानी से भरा हुआ था ,और पीर ज़न चरखा काटती थी।  कुत्ता कोज़े के नज़दीक गया ,चाहा की लोटे को उठाये ,औरत ने डांटा ,लोटा उसके मुंह से छूटा ,घड़े पर गिरा  , मटका फूटा पानी बह गया। बुढ़िया लकड़ी लेकर मारने को उठी। यह सग उसके दामन में लिपट गया ,उसके पाव में मुंह मलने लगा और दुम हिलाने लगा और पहाड़ की तरफ दौड़ गया। फिर उसके पास  आकर कभी रस्सी उठाता कभी डोल मुंह में पकड़ कर दिखाता ,और मुंह उसके क़दमों पर रगड़ता और आँचल चादर का पकड़  कर खींचता। खुदा ने उस औरत के दिल में रहम दिया की डोल रस्सी को लेकर उसके हमराह चली। यह उसका  आंचल पकडे घर से बाहर होकर आगे आगे हो लिया।

आखिर उसको पहाड़ी पर ले आया। औरत एक जी में कुत्ते की इस हरकत से शक हुआ की इसका मिया इस गार में गिरफ्तार है शायद उसकी खातिर  पानी चाहता है। गरज़ पीरज़न को लिए हुए गार के मुंह पर आया। औरत ने लोटा पानी का भर कर रस्सी से लटकाया। मैंने वह बेसिन ले लिया और नान का टुकड़ा खाया दो तीन घूँट पानी पिया  उस पेट कुत्ते को राज़ी किया। खुदा का शुक्र कर कर एक किनारे बैठा ,और खुदा की रहमत का मुन्तज़िर था  की देखिये अब क्या होता है ? यह हैवान बे ज़ुबान इसी तौर से नान ले आता ,और बुढ़िया के हाथ पानी पिलवाता।  जब भटियारों ने देखा की कुत्ता हमेशा रोटी ले जाता है ,तरस खा कर इरादा किया की जब उसे देखते ,एक गिर्दा इसके आगे फ़ेंक देते। और अगर वह औरत पानी न लाती ,तो यह उसके बेसिन फोड़ डालता। लाचार वह भी हर रोज़ एक सुराही पानी की दे जाती। इस रफ़ीक़ ने आब व नान से मेरी खातिर जमा की , और आप ज़न्दान के मुंह पर पड़ा रहता। इस तरह छह महीने गुज़रे। लेकिन जो आदमी ऐसे ज़न्दान में रहे की दुनिया   की हवा  उसकी न लगे। उसका क्या हाल हो ! ज़िन्दगी वबाल हुई। जी में आए की या इलाही ! यह दम निकल जाये तो बेहतर  है।

एक रोज़ रात को वह दोनों क़ैदी सोते थे ,मेरा दिल उमड़ आया ,बे इख़्तियार रोने लगा और खुदा की दरगाह में नक् घिसनी करने लगा पिछले पहर क्या देखता हु की खुदा की क़ुदरत से एक रस्सी गार में लटकी और आवाज़ सहज में सुनी की ए कम्बख्त ,बदनसीब ! डोर का सिरा अपने हाथ में मज़बूत बाँध और यहाँ से निकल। मैंने सुन कर दिल  में ख्याल किया की आखिर भाई मुझ पर मेहरबान हो कर लहू के जोश से आप ही निकालने आये।  निहायत ख़ुशी से  उस रस्सी को कमर में खूब कसा। किसी ने मुझे ऊपर खींचा। रात ऐसी अँधेरी थी की जिसने मुझे निकाला  उसको मैंने न पहचाना की कौन है। जब मैं बाहर आया तब उसने कहा : जल्द आ यहाँ खड़े होने की जगह  नहीं है। मुझमे ताक़त तो न थी ,पर मारे डर के गिरता पड़ता पहाड़ से निचे आया। देखो दो घोड़े जैन बंधे हुए खड़े  है। उस शख्स ने एक पर मुझे सवार किया और एक पर आप चढ़ गया और आगे हुआ। जाते जाते दरिया के किनारे  पर पहुंचा।

 

           सुबह हो गयी इस शहर से दस बारह कोस  निकल आये। उस जवान को देखा की उपचि बना हुआ ,ज़र्रा बख्तर पहने हुए ,चार आईना बांधे हुए ,घोड़े पर पाखर डाले ,मेरी तरफ ग़ज़ब की नज़रो से घूर कर और हाथ अपना दांतो से काट कर  ,तलवार मियान से खींची और घोड़े को जस्त कर कर मुझ पर चलाई। मैंने अपने आपको घोड़े से गिरा दिया  और घिघियाने लगा की मैं बे क़ुसूर हु ,मुझे क्यू क़त्ल करता है ? ए साहब ! वैसे ज़न्दान से मुझे तूने निकाला ,अब यह  बे मररूआती क्या है ? उसने कहा : सच कह तू कौन है ? मैंने जवाब दिया की मुसाफिर हु ,न हक़ की बला  में गिरफ्तार हो गया था ,तुम्हारे ज़रिये से मैं बाहर निकला हु।

खुदा ने उसके दिल में रहम दिया ,तलवार को अंदर किया और बोला : खैर खुदा ,जो चाहे सो करे ! जा तेरी जान बख्शी  की ,जल्द सावर हो ,घोड़ो को जल्द किया और चले। राह में अफ़सोस खाता और पछताता जाता था। ज़ुहर के  वक़्त तक एक जज़ीरे में जा पंहुचा। वहा घोड़े से उतरा मुझे भी उतारा ,घोड़ो को छोड़ा और चरने को छोड़ दिया  . अपनी भी कमर से हथियार खोल डाले और बैठा। मुझसे बोला : ए बदनसीब ! अब अपना अहवाल कह ,तो मालूम हो  की तू कौन है। मैंने अपना नाम निशान बताया , और जो जो कुछ बिपता बीती थी ,उससे आखिर तक कही।

उस जवान ने जब मेरी बात सब सुनी ,रोने लगा और मुखातिब हुआ की ए जवान ! अब मेरा माजरा सुन। मैं कन्या ज़ेर  बाद के देस के राजा की हु। और वह गबरू जो ज़िन्दान सुलेमान में क़ैद है ,उसका नाम बहरा मंद है ,मेरे पिता  के मंत्री का बेटा है। एक रोज़ महाराज ने आज्ञा दी की जितने राजा और कुँअर है मैदान में झरोके निकल कर ,तीर अंदाज़ी और चौगान बाज़ी करे ,तू घुड़ चढ़ी और कस्ब हर एक का ज़ाहिर हो। मैं रानी के नेड़े जो मेरे माता थी ,अटारी पर ओझल बैठी थी  और दायिया और सहेलिया हाज़िर थी तमाशा देखती थी। यह दीवान का पूत सब में सुंदर था ,और घोड़े को कावे देकर कस्ब कर रहा था ,मुझको भाया और दिल से उस पर रीझि। मुद्दत तलक यह बात गुप्त  रही।

आखिर जब बहुत बियाकुल हुई ,तब दायी से कहा और ढेर सारा इनआम दिया। वह उस जवान को किसी न किसी ढब से पोशीदा मेरी  धिराहर में ले आयी। तब यह मुझे चाहने लगा। बहुत दिन इस इश्क़ मुश्क में कटे। एक रोज़ चौकी दारो ने आधी रात को हथियार बांधे और महल में आते देख कर उसे पकड़ा और राजा से कहा। उसे हुक्म क़त्ल किया।  सब अरकान दौलत ने यह सुन कर जान बख्शी करवाई। तब फ़रमाया की इसको ज़िन्दान सुलेमान में डाल दो। और दूसरा जवान जो उसके हमराह असीर है ,उसका भगना है उस रैंन को वह भी उसके साथ था ,दोनों  को उस कुंए में छोड़ दिया। आज तीन बरस हुए की वे फंसे है ,मगर किसी ने नहीं दरियाफ्त किया की यह जवान  राजा के घर में क्यू आया था। भगवान् ने मेरी पत् रखी। उसके शुक्राने के बदले ,मैंने अपने ऊपर लाज़िम किया  है की अन्न और जल उसको पहुंचाया करू। जबसे अठवारे में एक दिन आती हु और आठ दिन का आजुका इकठा दे जाती  हु।

कल की रात सपने में देखा की कोई मांस कहता है की शितबी उठ और घोडा जोड़ा  और कमन्द और कुछ नक़द खर्च  के वास्ते लेकर उस गार पर जा ,और उस बेचारे को वहा से निकाल। यह सुन कर मैं चौक पड़ी और मगन हो कर  मरदाना भेस किया और एक संदूकचा जवाहर वह अशर्फी से भर लिया और यह घोडा और कपड़ा ले कर वहा गयी की कमन्द से उसे खीचू ,कर्म में तेरे था की वैसी क़ैद से इस तरह छुटकारा पाए। और मेरे इस करतब से महरम  कोई नहीं। शायद वह कोई देवता था की तेरी मुख्लिसि की खातिर मुझे भिजवाया। खैर जो मेरे भाग में था सो हुआ। यह कथा कह कर ,पूरी कचोरी मॉस का सालन अंगोछे से खोला। पहले कंद निकाल कर एक कटोरे में घोला  ,और अर्क बेद मुश्क का उसमे डाल कर मुझे दिया। मैंने उसके हाथ से लेकर पिया ,फिर थोड़ा सा नाश्ता किया। उसके बाद मुझे लुंगी बंधवा कर दरिया में ले गयी ,कैची से मेरे सर के बाल कतरे ,नाख़ून लिए , नहला धुला कर  कपडे पहनाये ,नए सर से आदमी बनाया। मैं दो गाना शुक्राने का रु बा रु क़िब्ला हो कर पढ़ने लगा। वह नाज़नीन  उस मेरी हरकत को देखती रही।

जब नमाज़ से फारिग हुआ ,पूछने लगी की यह  तूने क्या काम किया ? मैंने कहा : जिस ख़ालिक़ ने सारी खलकत को  पैदा किया और तुझ सी महबूबा से मेरी खिदमत करवाई और तेरे दिल को मुझ पर मेहरबान किया वैसे ज़िन्दान  से खलास करवाया ,उसकी ज़ात ला शरीक है ,उसकी मैंने इबादत की और बंदगी बजा लाया और अदाए  शुक्र किया। यह बात सुन कर कहने लगी : तुम मुस्लमान हो ? मैंने कहा : शुक्र अल्हम्दुलिल्लाह ! बोली : मेरा दिल तुम्हारी बातो से खुश हुआ मुझे भी सिखाओ और कलमा पढ़ाओ। मैंने दिल में कहा : अल्हम्दुलिल्लाह की यह हमारे दीन की शरीक हुई। गरज़ मैंने ला इलाहा...... पढ़ा और उससे पढ़वाया। फिर वहा से घोड़ो पर सवार हो कर हम दोनों  चले। रात को उतरते तो वह ज़िक्र दीन ईमान का करती और सुनती और खुश होती। इसी तरह दो महीने तलक  पेहम शबाना रोज़ चले गए।

आखिर एक विलायत में पहुंचे की दरमियानं सरहद मुल्क ज़ेर बाद और सरनदीप के थी। एक शहर नज़र आया की  आबादी में इस्तांबुल से बड़ा और आब व हवा बहुत खुश और अच्छी है। बादशाह उस शहर का किसरा से ज़्यादा  आदिल है। देख कर दिल निपट शाद हुआ। एक हवेली खरीद करके बोद बाश मुक़र्रर की। जब कई दिन में रंज  सफर से आसूदा हुए ,कुछ असबाब ज़रूरी दुरुस्त करके बीबी से शरई मुहम्मदी के निकाह किया और रहने लगा। तीन  साल में वहा के अकाबिर व असगिर से मिल जुल कर एतबार बहम पहुंचाया और तेजारत का ठाठ  फैलाया। आखिर वहा के सब सौदागरो से सबक़त  ले गया। एक रोज़ वज़ीर आज़म की खिदमत में सलाम के लिए  चला ,एक मैदान में कसरत ख़ल्क़ अल्लाह की देखि। किसी से पूछा की क्यू इतना भीड़ है ? मालूम हुआ की दो  शख्सों की ज़िना और चोरी करते पकड़ा है , और शायद खून भी किया है ,उनको संग सार करने को लाये है।

मुझे सुनते ही अपना अहवाल याद आया की  एक दिन मुझे भी इसी तरह सूली चढाने ले गए थे ,खुदा  ने बचा लिया। आया ये  कौन है जो ऐसीं बला में गिरफ्तार  हुए है ? मालूम नहीं की रास्त है ,या मेरी तरह तोहमत में गिरफ्तार हुए है है ! भीड़ को चीर कर अंदर घुसा देखा तो यही मेरे दोनों भाई है की टिड्डिया कसे सरापा ब्रह्ना उनको लिए जाते है।  उनकी सूरत देखते ही खून ने जोश किया  और कॉलेजा जला महसूलो को एक मुठी अशर्फिया दी और कहा : एक  रुका करो  और वहा से घोड़े को सरपट फ़ेंक कर हाकिम के घर गया। एक दाना याक़ूत बे बहा का नज़र गुज़राना और इनकी शिफ़ाअत की। हाकिम ने कहा : एक शख्स इनका दावेदार है और उनके गुनाह साबित हुए है ,और बादशाह का हुक्म हो चूका है मैं लाचार हु।

बारे ,बहुत मन्नत विज़ारी से हाकिम ने दावेदार को बुला कर पांच हज़ार रूपये पर राज़ी किया की वो दावा खून का माफ़  करे। मैंने रूपये गिन दिए और ला दावा लिखवा लिया और ऐसी बला से मुख्लिसि दिलवाई। जहा पनाह इनसे  पूछिए ! की सच कहता हु या झूठ बकता हु। वे दोनों भाई सर निचे किये शर्मिंदा खड़े थे। खैर उनको छुड़वा कर  घर में लाया हम्माम( वाशरूम) करवा कर लिबास पहनवाया दीवान खाने में रहने  को दिया। इस मर्तबे अपने  क़बीले को  उनके रु बा रु न किया। उनकी खिदमत  में हाज़िर रहता और उनके साथ खाना खाता और सो जाता  .तीन बरस   इनकी खिदमत दारी  में गुज़री और इनसे भी कोई हरकत बुरा वाक़ये न हुआ की उसका रंजीदगी हो.जो मैं  सवार हो कर कही जाता तो  ये घर में रहते।

          अचानक वह बीबी नेक बख्त एक दिन हम्माम को गयी थी जब दीवान खाने में आयी कोई मर्द नज़र न पड़ा उसने बुर्का उतारा। शायद मंझला भाई लेटा हुआ जागता था। देखते ही आशिक़ हुआ। बड़े भाई से कहा। दोनों ने मेरे मार डालने  की आपस में सलाह की। मैं इस हरकत से मुताल्लिक़ खबर न रखता था। बल्कि दिल में कहता था की अल्हम्दुलिल्लाह !इस मर्तबा अब तक उन्होंने कुछ ऐसी बात नहीं की शायद गैरत को काम फ़रमाया। एक रोज़ बाद  खाने के बड़े भाई साहब आब दीदा हुए और अपने वतन की तारीफ और ईरान की खुबिया ब्यान करने लगे। यह सुन कर  दूसरे भी बसुरने लगे। मैंने कहा : अगर इरादा वतन का है तो बेहतर मैं ताबे मर्ज़ी के हु मेरी भी यही आरज़ू है  अब इंशाल्लाह मैं भी आपकी रकाब में चलता हु। इस बीबी से दोनो भाइयो की उदासी का मज़कूर किया और  अपना इरादा भी कहा।  वह आक़िला बोली की  तुम जानो लेकिन फिर कुछ दगा क्या चाहते है। ,यह तुम्हारी जान  के दुश्मन है ,तुमने सांप आस्तीन में पाले है। और इनकी दोस्ती का भरोसा रखते हो ! जो जी चाहे सो करो लेकिन मोज़ियो (नुकसान देने वाले) खबरदार रहो। हर तक़दीर थोड़े अरसे में तैयारी सफर करके खेमा मैदान में इस्ताद किया। बड़ा काफला जमा किया और मेरी सरदारी और काफला बाशी पर राज़ी हुए। अच्छी राह देख कर रवाना हुआ।  लेकिन उनकी तरफ से अपनी जानिब में होशियार रहता और सब सूरत से फरमा बरदारी और दिल जोई उनकी करता। 



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