Nisha

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सर गुज़िश्त आज़ाद बख्त बादशाह की

      

        आखिर उसी क़िले के पास जिसका मैंने पहले रोज़ दरवाज़ा बंद देखा था ,ले  गए। और बहुत से आदमियों ने मिल कर ताला  खोला और ताबूत और संदूक को अंदर ले चले ले चले। एक पंडित मेरे नज़दीक आया और  समझाने लगा की मांस एक दिन जन्म पाता है  रोज़ नास होता है। दुनिया का यही अवा गवन है। अब यह तेरी स्त्री और पूत और धन और चालीस दिन का असबाब भोजन का मौजूद है ,उसको ले और यहाँ रह ,जब तलक बड़ा बुत तुझ पर मेहरबान हो। मैंन गुस्से में चाहा  की उस बुत पर और वहा के रहने वालो पर और इस रीत व रस्म पर लानत कहु और उस  ब्राह्म।*ण को धूल झक्कड़ करू। वही मर्द अजमी अपनी ज़बान में मअना हुआ की खबरदार !  हरगिज़  दम मात  मार। अगर कुछ भी बोला तो उसी वक़्त तुझे जला देंगे। खैर जो तेरी क़िस्मत में था सो हुआ ,अब खुदा के कर्म  से उम्मीद* वार रह ,शायद अल्लाह तुझे यहाँ से जीता निकाले।

आखिर सब मुझे तन तनहा छोड़ कर इस हिसार से बाहर निकले और दरवाज़ा फिर बंद कर दिया। उस वक़्त मैं अपनी तन्हाई और बेबसी पर बे इख़्तियार  रोया। और उस औरत की लूथ पर लाते मारने लगा की ए मुर्दार ! अगर तुझे जन्ते मर जाना था और पेट से क्यू हुई थी ? इसमें दिन चढ़ा और धूप गरम हुई। सर का भेजा पकने लगा और घुटन  के मारे रूह निकलने लगी। जिधर देखता हु ,मुर्दो की हड्डिया और संदूक जवाहर के ढेर लगे है। तब कई संदूक  पुराने लेकर निचे ऊपर रखे की दिन को धूप से और रात को ओस से बचाओ हो। आप पानी की तलाश करने लगा  .एक तरफ झरना सा देखा की क़िले की दिवार में पत्थर का तराशा हुआ घड़े के मुंह के मुआफ़िक है। बारे  कई दिन उस पानी और खाने से ज़िन्दगी हुई।

आखिर आज़ूक़ा तमाम हुआ। मैं घबराया और खुदा की जनाब में फरियाद की। वह ऐसा करीम है की दरवाज़ा कोट का खोला  और एक मुर्दे को लाये। उसके साथ एक पीर मर्द आया। जब उसे भी छोड़ कर गए। यह दिल में आया  की इस बूढ़े को मार उसके खाने का संदूक सब का सब लेले। एक संदूक का पाया हाथ में लेकर उसके पास गया  .वह बेचारा सर जानो पर धरे हैरान बैठा था। मैंने पीछे से आकर  सर में ऐसा मारा की सर फट कर भेजा निकल पड़ा और फ़ौरन जान बहक हुआ। उसका आज़ूक़े लेकर मैं  खाने लगा। मुद्दत तलक यही मारा काम था की जो ज़िंदा  मुर्दे के साथ आता ,उसे मैं मार डालता और खाने का असबाब ले कर बा फ़राग़त खाता।

 

           बाद कितनी मुद्दत के एक मर्तबा एक  लड़की ताबूत  के हमराह आयी ,निहायत  क़ुबूल सूरत ,मेरे दिल ने चाहा की इसे भी मारु। उसने मुझे देखा और मारे डर के बेहोश हो गयी। मैं उसका भी आज़ूक़े उठा कर पाने पास ले आया। लेकिन अकेला न खाता जब भूक लगती ,खाना उसके नज़दीक ले जाता और साथ मिल कर खाता। जब उस औरत ने देखा  की मुझे यह शख्स नहीं सताता ,दिन बा दिन उसकी वहशत कम हुई और राम होती चली। मेरे मकान में आने जाने लगी एक रोज़ उसका अहवाल पूछा की तू कौन है ?  उसने जवाब दिया की बादशाह के वकील की बेटी हु। अपने चाचा के बेटे से मंसूब हुई थी। शब् उरूसी के दिन उसे कोलंज हुआ ,ऐसा दर्द से तड़पने लगा की एक आन की  आन में मर गया। मुझे उसके ताबूत के साथ लाकर यहाँ छोड़ गए है। तब उसने मेरा अहवाल पूछा। मैंने भी तमाम व कमाल बयां किया और कहा : खुदा ने तुझे मेरी खातिर यहाँ भेजा है ,वह मुस्कुरा कर चुपकी हो रही।

 

        इसी तरह कई दिन में आपस में मुहब्बत हो गयी। मैंने उसे अरकान मुसलमानी के सीखा कर कलमा पढ़ाया। और  सोहबत की। वह भी हामला हुई। एक बेटा पैदा हुआ। क़रीब तीन बरस के इसी  सूरत से  गुज़री। जब लड़के दूध बढ़ाया  ,एक रोज़ बीबी से कहा की यहाँ कब  तलक रहेंगे और किस यहाँ से निकलेंगे ? वह बोली :खुदा निकाले  तो  निकले ,नहीं तो एक रोज़ ऐसे ही मर जायँगे। मुझे उसके कहने पर और अपने रहने पर कमाल रिक़्क़त आयी। रोते रोते सो गए। एक शख्स को ख्वाब में देखा की कहता है की :पर नाले की राह से निकलना है तो निकल। मैं मारे  ख़ुशी के चौंक पड़ा और जोरू को कहा की लोहे की मीखे और सीखे जो पुराने संदूको में है ,जमा करके ले आओ  तो इसको कुशादा करू। गरज़ मैं उस मोरी के मुंह पर मीख रख कर पत्थरो से ऐसा ठोकता की थक जाता। एक बरस  की मेहनत  में सुराख़ इतना बड़ा हुआ की आदमी निकल सके।

बाद उसके मुर्दो की आस्तीनों में अच्छे अच्छे जवाहर चुन कर भरे। और साथ लेकर ऐसी राह से हम तीनो बाहर निकले। खुदा  का शुक्र किया और बेटे को काँधे पर बिठा दिया। एक महीना हुआ है की सरे राह छोड़ कर ,मारे डर के जंगल पहाड़ो  की राह से चला आता हूँ। जब गुरसंघी होती है। घास पात खाता हु ,ताक़त बात कहने की मुझमे नहीं। यह मेरी हक़ीक़त है जो तुमने सुनी बादशाह सलामत ! मैंने उसकी हालत पर तरस खाया और हम्माम  करवा  कर अच्छा लिबास पहनवाया ,  और अपना नायब  बनाया।  और मेरे घर में मलका से कई लड़के पैदा हुए ,लेकिन  खुर्द साली  मर मर गए। एक बेटा पांच बरस का हो कर मरा। उसके ग़म में मलका ने भी वफ़ात पायी ,मुझे कमाल  ग़म हुआ और वह मुल्क बगैर उसके काटने लगा।  दिल उदास हो गया। इरादा अज्म  का किया ,बादशाह से अर्ज़  कर कर ,खिदमत शाह बंदरी की  उस जवान को दिलवा दी। इस अरसे में बादशाह भी मर गया। मैं इस वफादार  कुत्ते को और सब माल खज़ाना जवाहर साथ लेकर निशापुर में आ रहा ,इस वास्ते की मेरे भाईओ के अहवाल   से कोई वाक़िफ़ न हुए। मैं ख्वाजा सग्ग परसत मशहूर हुआ। और इस बदनामी में दुगना महसूल आज तक  बादशाह ईरान की सरकार में भरता हु।

 

          अचानक यह सौदागर बच्चा वहा गया ,उसके वसीले से जहा पनाह का क़दम बोस किया। मैंने पूछा : क्या यह तुम्हारा फ़रज़न्द नहीं ?ख्वाजा ने जवाब दिया : क़िब्ला आलम ! यह मेरा बेटा ,आप ही की रईयत है। लेकिन अब मेरा  मालिक और वारिस  जो कुछ कहिये सो यही है। यह सुन कर सौदागर बच्चे से मैंने पूछा की तू किस ताजिर का  लड़का है और तेरे माँ बाप कहा है ? उस लड़के ने ज़मीन चूमी और जान की अमान मांगी और बोला की यह लड़की  सरकार  के वज़ीर की बेटी है। मेरा बाप हुज़ूर के अताब में बा सबब इसी ख्वाजा  लालो के पड़ा। और हुक्म यह हुआ की अगर एक साल तक  उसकी बात कुर्सी नशीन न होगी ,तो जान से मारा जायेगा। मैंने सुन कर यह भेस  बनाया और अपने आप निशापुर पहुंचाया।  खुदा ने ख्वाजा को बा मॉ कुत्ते और लालो  के हुज़ूर में हाज़िर कर दिया  .आप ने तमाम अहवाल सुन लिया। उम्मीद वार हु की मेरे बूढ़े बाप की मुख्लिसि हो।

यह बयान वज़ीर ज़ादी से सुन कर ,ख्वाजा ने एक आह की और बे इख़्तियार गिर पड़ा। जब गुलाब उस पर छिड़का गया ,तब होश आया। और बोला हाय काम बख्ती ! इतनी दूर से यह रंज व  मेहनत खींच कर ,मैं इस उम्मीद पर आया  था की इस सौदागर बच्चे को तंबीह कर कर अपना फ़रज़न्द करूँगा। और अपने माल मताअ का हिबा नामा लिख  दूंगा ,तो मेरा नाम रहेगा और सारा आलम उसे ख्वाजा ज़ादा कहेगा। सो मेरा ख्याल खांम हुआ ,और वैसा ही काम हुआ। उनने औरत   हो कर मुझ पीर को खराब किया। मैं औरत के चरित्र में पड़ा। अब मेरी वह कहावत हुई : घर में रहे न तीर्थ गए ,मूंड मुंडा फ़ज़ीहत हुई।

क़िस्सा मुझे उसकी बे करारी और नाला विज़ारी पर रहम आया। ख्वाजा को नज़दीक बुलाया और कान में मुज़्दा उसके  वस्ल का सुनाया की ग़मगीन मत हो ,उसी से तेरी शादी कर देंगे। खुदा चाहे तो औलाद तेरी होगी और यही तेरी  मालिक होगी। इस खुश खबरी सुनने से उसको तसल्ली हुई। तब मैंने कहा की वज़ीर ज़ादी को महल में ले जाओ।  और वज़ीर को पंडित खाने से  ले आओ ,और हम्माम में नहलाओ ,और कपड़े पहनाओ , मेरे पास लाओ। जिस वक़्त  वज़ीर आया ,अब फर्श तक उसका इस्तेकबाल फ़रमाया। और अपना बुज़ुर्ग जान कर गले लगाया ,और नए  सिरे से कलमदान विजारत का इनायत फ़रमाया। और ख्वाजा को को भी जागीर व मुनसिब दिया। और अच्छाई देख कर वज़ीर  ज़ादी से निकाह पढ़वा कर मंसूब। किया

कई साल में दो बेटे और एक बेटी उसके घर में पैदा हुए। चुनांचा बड़ा बेटा मुल्क तुज्जर (तिजारत) ,और छोटा हमारी सरकार का मुख़्तार है। ए दुरवेशों! मैंने इस लिए नक़ल तुम्हारे सामने की की कल रात दो फ़क़ीरों की दरगुज़िश्त मैंने सुनी थी।  अब तुम दोनों भी जो बाक़ी रहे हो ,यह समझो की हम उसी मकान में बैठे है और मुझे अपना खादिम  और इस घर को अपना तकिया जानो। बेबसों अपनी अपनी सैर का अहवाल कहो ,और चंद दिन मेरे पास रहो  .जब फ़क़ीरों ने बादशाह की तरफ से बहुत खातिर दारी देखि ,कहने लगे : खैर जब तुमने गदाओ से उल्फत  की तो हम दोनों भी अपना माजरा बयां करते है। सुनिए।

 


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