सैर तीसरे दरवेश की
मैंने कहा मेरे
गुलाम की हवेली नज़दीक है ,अब आ पहुंचे ,खातिर जमा रखो और क़दम उठाओ। झूट तो बोला ,पर
दिल में हैरान था की कहा ले जाऊं ? ऐन राह
पे एक दरवाज़ा बंद नज़र पड़ा। जल्दी से ताले को
तोड़ा मकान के अंदर गए। अच्छी हवेली फर्श बिछा हुआ ,शराब के शीशे भरे ताक में रखे हुए
,और बावर्ची खाने में नान कबाब तैयार थे। एक एक
गुलाबी शराब बुर्तग़ाली की उस गज़क के साथ ली और सारी रात बाहम ख़ुशी की। जब इस
चैन से सुबह हुई ,शहर में गुल मचा की शहज़ादी गायब हुई ,मोहल्ला मुहल्ला गली गली मुनादी
फिरने लगी ,और कुटनिया हरकारे छूटे की जहा
से हाथ आये ,हाज़िर करे। और सब दरवाज़ों पर शहर के बादशाही गुलामो की चौकी आ बैठी। गज़र बानो को हुक्म हुआ की बगैर परवानगी
,चींटी बाहर शहर के न निकल सके। जो कोई सुराग
मलका का लाएगा ,हज़ार अशर्फी और नकदी इनाम पायेगा। तमाम शहर में कुटनिया फिरने
और घर घर में घुसने लगीं।
मुझे जो कमबख्ती लगी ,दरवाज़ा बंद न किया। एक बुढ़िया शैतान की खाला ,उसका खुदा करे मुंह काला ,हाथ में तस्बीह लटकाये ,बुर्का ओढ़े ,दरवाज़ा खुला पाकर बे धड़क चली आयी और सामने मलका के खड़े होकर ,हाथ उठा कर दुआ देने लगी की इलाही ! तेरी नथ चौड़ी सुहाग की सलामत रहे ,और कमाओ की पगड़ी क़ायम रहे। मैं गरीब फकीरनी हु। एक बेटी मेरी है की दो जी से पुरे दिनों दरदीजा में मरती है। और मुझको अपनी ताक़त नहीं की अद्धी का तेल चिराग में जलाऊं ,खाने पीने को तो कहा से लाऊँ। अगर मर गयी तो गौर कफ़न क्यू करुँगी ? और जनि ,तू दायी जनाई को क्या दूंगी ? और जच्चा को सुतवारा ,अचवाँनी कहा से पिलाऊंगी ? आज दो दिन हुए है की भूकी प्यासी पड़ी है। ए साहब ज़ादी ! अपनी खैर कुछ टुकड़ा पारचा दिला,तो उसको पानी पीने का उधार हो।
मलका ने तरस खा कर ,अपने नज़दीक बुला कर ,चार नान और कबाब और एक अंगूठी ऊँगली से उतार कर हवाले की की उसको बेच कर गहना बना लेना ,और खातिर जमा से गुज़ारा करना। और कभी कभी आया करना ,तेरा घर है .उसने पानी दिल की दुआ जिसकी तलाश में आयी थी ,बा जींस पाया। ख़ुशी से दुआए देती और बलाएँ लेती दफा हुई। डेवढ़ी में नान कबाब फ़ेंक दिए ,मगर अंगूठी को मुठी में ले लिया की पता चला मलका के हाथ का मेरे हाथ आया . खुदा उस आफत से जो बचाया चाहिए ,उस मकान का मालिक जवा मर्द सिपाही ,ताज़ी घोड़े पर चढ़ा हुआ नेज़ा हाथ में लिए ,शिकार बंद से एक हिरण लटकाये ,आ पहुंचे। अपनी हवेली का ताला टूटा और किवाड़ खुले पाए ,उस दलाला को निकलते देखा ,मारे गुस्से के एक हाथ उसके झोंटे पकड़ कर लटका लिया और घर मे आया। उसके दोनों पाव रस्सी में बाँध कर एक दरख्त की टहनी में लटकाया। सर तले ,पाव ऊपर किये। एकदम में तड़प तड़प कर मर गयी। उस मर्द की सूरत देख कर खौफ तारी हुई की हवईया उड़ने लगी। और मारे डर के कलेजा कापने लगा। उस अज़ीज़ ने हम दोनों को बदहवास देख कर तसल्ली दी की बड़ी नादानी की तुमने। ऐसा काम किया और दरवाज़ा खोल दिया।
मलका ने मुस्कुरा कर फ़रमाया की शहज़ादा अपने गुलाम की हवेली कह कर मुझे ले आया और मुझको फुसलाया। उसने ज़िद्द किया की शहज़ादा ने बयान सच कहा। जितनी ख़ल्क़ अल्लाह है ,बादशाहो की लोंडी गुलाम है। उन्ही की बरकत और फैज़ से सब की परवरिश और निबाह है। यह गुलाम ,बेदाम दरम ज़र खरीद तुम्हारा है। लेकिन भेद छिपाना अक़्ल का खेल है। अये शहज़ादे! तुम्हारा और मलका का इस गरीब खाने में तवज्जह फरमाना और तशरीफ़ लाना ,मेरी सआदत दोनों जहाँ , और अपने फिदवि को सरफ़राज़ किया। मैं निसार होने को तैयार हु ,किसी सूरत में जान व माल से देने से मना नहीं करूंगा। आप शौक़ से आराम फरमाईये ,अब कोई भी खतरा नहीं है , यह मुर्दार कुटनी अगर सलामत जाती तो ,आफत लाती। आप जब तलक मिज़ाज तशरीफ़ चाहे बैठे रहिये। और जो कुछ दरकार हो ,इस खाना ज़ाद को कहिये। सब हाज़िर करेगा। और बादशाह तू क्या चीज़ है ! तुम्हारी खबर फ़रिश्तो को भी न होगी। उस जवान मर्द ने ऐसी ऐसी बाते तसल्ली की कही की खातिर जमा हुई। तब मैंने कहा : शाबाश ! तुम बड़े मर्द हो। उस मारवत का औज़ हमसे भी जब हो सकेगा ,तब ज़हूर में आएगा तुम्हारा नाम क्या है ? उसने कहा की गुलाम का नाम बहज़ाद खान है। गरज़ छह महीने तक ,शर्त खिदमत की थी ,बा जान व दिल बजा लाया ,खूब आराम से। गुज़री।
एक दिन मुझे अपना मुल्क और माँ बाप याद आये ,इस लिए निहायत फ़िक्र में बैठा था। मेरा चेहरा मुरझाया हुआ देख कर ,बहज़ाद खान रु बा रु हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ और कहने लगा की इस फिदवि से अगर कुछ गलती हुई हो ,तो इरशाद हो। मैंने कहा : अज़बराये खुदा ,यह क्या मज़कूर है ! तुमने ऐसा सुलूक किया की इस शहर में ऐसे आराम से रहे ,जैसे अपनी माँ के पेट में कोई रहता है। नहीं तो ऐसी हरकत हमसे हुई थी तिनका तिनका हमारा दुश्मन था। ऐसा दोस्त हमारा कौन था की ज़रा दम लेते। खुदा तुम्हे खुश रखे ,बड़े मर्द हो ,तब उसने कहा : अगर दिल यहाँ से भर गया हो ,तो जहा हुक्म हो ,वहा खैर व आफ़ियत से पंहुचा दूँ। फ़क़ीर बोला की अगर अपने वतन तक पहचुँ तो माँ बाप को देखूं। मेरी तो यह सूरत हुई ,खुदा जाने उनकी क्या हालत हुई होगी। मैं जिस वास्ते जिला वतन हुआ था ,मेरी तो आरज़ू हो रही है। अब उनकी भी क़दम बोसी वाजिब है। मेरी खबर उनको कुछ नहीं की मरा या जीता है। उनके दिल में क्या गुज़रता होगा ! वह जवां मर्द बोला की बहुत मुबारक हो चलिए। यह कह के ,एक रास घोड़ा तुर्की सौ कोस चलने वाला और एक घोड़ी जल्द , जिसके पर नहीं कटे थे लेकिन शाइस्ता ,मलका की खातिर है। और हम दोनों को सवार करवाया। फिर ज़िरह बक्तर पहन ,सलाह बाँध,ओपचि बन ,अपने जगह पर चढ़ बैठा और कहने लगा : गुलाम आगे हो लेता है ,साहब खातिर जमा से घोड़े दबाये हुए चले आये।
जब शहर के दरवाज़े पर आया ,एक नारा मारा और ताला तोड़ा और निगाह बानो को डांट डपट कर ललकारा की ! अपने खाविंद को जाकर कहो की बहज़ाद खान ,मलका महर निगार और शहज़दा काम गार को ,जो तुम्हारा दामाद है ,हांके पुकारे लिए जाता है। अगर मर्दुमी का कुछ नशा है ,तो बाहर निकलो और मलका को छीन लो। ये न कहो की चुप चाप ले गया। नहीं तो क़िले में बैठे आराम किया करो। यह खबर बादशाह को जल्दी जा पहुंची। वज़ीर और मीर बख्शी को हुक्म हुआ उन तीनो बद्ज़ात मुफ़सिदो को बाँध कर लाओ ,या उनके सर काट कर हुज़ूर में पहुचाओ। एकदम के बाद गट फ़ौज का नमूद हुआ ,और तमाम ज़मीन व आसमान गरदबाद हुआ। बहज़ाद खान ने मलका को और उस फ़क़ीर को एक दर में पुल के ,की बारह और जोन पुर के पुल के बराबर था ,खड़ा किया। और अपने घोड़े को टंगिया कर उस फ़ौज की तरफ फिरा। और शेर की मानिंद गूँज कर फ़ौज दरमियान घुसा। तमाम लश्कर काई सा फट गया ,और यह दोनों सरदारों तलक जा पंहुचा। दोनों के सर काट लिए .जब सरदार मारे गए ,लश्कर तीतर बितर हो गया। वह कहावत है : सर से सर वाह जब बैल फूटी ,राई राई हो गयी। वही आप बादशाह कितनी फ़ौज बक्तर पोशो की साथ लेकर कमक को आये। उनकी भी लड़ाई उस यका जवान ने मार दी शिकस्त फाश खायी।
बादशाह हार गए ,सच है फतह दाद इलाही है। लेकिन बहज़ाद खान ने ऐसी जवान मर्दि की की शायद रुस्तम से भी न हो सकती। जब बहज़ाद खान ने देखा की मामला साफ़ हुआ ,अब कौन बाक़ी रहा है जो हमारा पीछा करेगा ,बे विस्वास होकर और खातिर जमा हो कर ,जहा हम खड़े थे आया ,और मलका को और मुझको साथ लेकर चला। सफर की उम्र कोताह होती है , थोड़े अरसे में अपने मुल्क की सरहद में जा पहुंचे ,एक अर्ज़ी सही सलामत आने की बादशाह के हुज़ूर में ,जो क़िब्ला गाह मुझ फ़क़ीर के थे लिख कर रवाना की। जहा पनाह पढ़ कर शाद हुए ,दोगाना शुक्र अदा किया जैसे सूखे धान में पानी पड़ा। खुश हो कर सब अमीरो को जिलों में लेकर इस अजीज़ के इस्तेकबाल की खातिर लब दरिया आकर खड़े हुए ,और निवड़ो के वास्ते अमीर बहर को हुक्म हुआ। मैंने दूसरे किनारे पर सवारी बादशाह की खड़ी देखि ,क़दम बोसी की आरज़ू में घोड़े को दरिया में डाल दिया ,हीला मार कर हुज़ूर में हाज़िर हुआ .मुझे मारे इश्तियाक़ के कलेजे से लगा लिया।
अब एक और आफत नागहानी पेश आयी। की जिस घोड़े पर मैं सवार था ,शायद वह बच्चा उसी माद यान का था ,जिस पर मलका सवार थी। या जिनसियत ( जेंडर) के वजह से मेरे बैठने की जगह को देख कर ,घोड़ी ने भी जल्दी कर कर ,अपने आपको मलका समेत मेरे पीछे दरिया में गिराया और पीर ने लगी। मलका ने घबरा कर बाग़ खींची। वह मुंह की नरम थी ,उलट गयी। मलका गोते खा कर घोड़ी दरिया में डूब गयी की फिर उन दोनों का निशान नज़र न आया। बहज़ाद खान ने यह हालत देख कर ,अपने आपको घोड़े समेत मलका की मदद की खातिर दरिया में पहुंचाया। वह भी भवँर में आगया ,फिर निकल न सका। बहुत हाथ पैर मारे ,कुछ बस न चला ,डूब गया। जहा पनाह ने यह वारदात देख कर ,महा जाल मंगवा कर फिंकवा। और मल्लाहो और गोता खोरों को फ़रमाया। उन्होंने सारा दरिया छान मारा था की मिटटी लेकर आये , पर वे दोनों हाथ न आये। या फ़क़ीर ! ये हादसा हादसा ऐसा हुआ की मैं सौदाई और जुनूनी हो गया और फ़क़ीर बन कर यही कहता फिरता था : इन नैनो का यही बासीख है ,वो भी देखा यह भी देख। अगर मलका कही गायब हो जाती ,या मर जाती ,तो दिल को तसल्ली आती। फिर तलाश को निकलता या सब्र करता। लेकिन जब ,नज़रो के रु बा रु ग़र्क़ हो गयी ,तो कुछ बस न चला। आखिर जी में यही लहर आयी की दरिया में डूब जाऊं ,शायद अपने महबूब को मर पाऊं।
एक रोज़ रात को इसी दरिया में बैठा ,और डूबने का इरादा कर कर ,गले तक पानी में गया। चाहता हु की आगे पाव रखु और गोता खाऊं ,वही सवार बुर्का पोश ,जिन्होंने तुमको बशारत दी है ,आ पहुंचे। मेरा हाथ पकड़ लिया और दिलासा दिया की खातिर जमा रख ,मलका और बहज़ाद खान जीते है तो अपनी जान न हक़ क्यू खोता है ? दुनिया में ऐसा भी होता है। खुदा की दरगाह से मायूस मत हो। अगर जीता रहेगा ,तो तेरी मुलाक़ात इन दोनों से एक न एक रोज़ हो रहेगी। अब तो रोम की तरफ ,जा और भी दरवेश दिल रेष वहा गए है। उनसे जब तू मिलेगा ,अपनी मुराद को पहुंचेगा। या फ़क़ीर ! बा मुजब हुक्म अपने हादी के ,मैं भी खिदमत शरीफ में आकर हाज़िर हुआ हु। उम्मीद कवि (ताक़त) है की हर एक अपने अपने मतलब को पहुंचे। इस टुकड़ गदा का यह अहवाल था ,जो तमाम कमाल कह सुनाया।