सैर चौथे दरवेश की
एक रोज़ पहाड़
पर जाकर मैंने भी इरादा किया की अपने आपको गिरा कर खत्म कर दू। जैसे इरादा गिरने का किया ,वही सवार ,साहब ज़ुल्फ़िक़ार
बुर्का पोश आ पंहुचा। और बोला की क्यू तू अपनी
जान खोता है ? आदमी पर दुःख दर्द सब होता है। अब तेरे बुरे दिन गए ,और भले दिन आये।
जल्द रोम को जा तीन शख्स ऐसे ही आगे गए है।
उनसे मुलकात कर और वहा के सुल्तान से मिल। तुम पांचो का मतलब एक ही जगह मिलेगा।
इस फ़क़ीर की सैर का यह माजरा है ,जो अर्ज़ किया। बारे बिशारत से अपने
मौला मुश्किल कशा की मुर्शिदों के हुज़ूर में आ पंहुचा हु। और बादशाह ज़िल्ले अल्लाह की भी मुलाज़िमत हासिल
हुई ,चाहिए की अब सब खातिर जमा हो।
यह बाते चार दरवेश और बादशाह आज़ाद बख्त में हो रही थी की इतने में एक माहल्ली बादशाह के महल में से दौड़ा हुआ आया ,और मुबारक बाद की तस्लीम बादशाह के हुज़ूर बजा लाया , और अर्ज़ की इस वक़्त शहज़ादा पैदा हुआ की आफ़ताब व माहताब उसके हुस्न के रु बा रु शर्मिंदा है। बादशाह हैरान होकर पूछा की ज़ाहिर में तो किसी को हमल ( प्रेग्नेंट )न था ,यह आफ़ताब किसके बुर्ज से नमूदार हुआ ? उसने इल्तेमास किया की माहरु ख्वास ,जो बहुत दिनों से गज़ब बादशाही में पड़ी थी। बेकसों के मानिंद एक कोने में रहती थी। और मारे डर के उसके नज़दीक कोई न जाता था न अहवाल पूछता था। उसपर यह फ़ज़ल इलाही हुआ की चाँद सा बेटा उसके पेट से पैदा हुआ।
बादशाह को ऐसी
ख़ुशी हासिल हुई की शायद शादी मर्ग हो जाये। चारो फ़क़ीर ने भी दुआ दी की भला बाबा ! तेरा आबाद रहे ,और इसका क़दम मुबारक हो ,तेरे साये के तले बूढ़ा बड़ा
हो। बादशाह ने कहा : यह तुम्हारे क़दम की बरकत है। क़सम से अपने तो गुमान में भी यह बात
न थी। इजाज़त हो तो जाकर देखु। दरवेशो ने कहा : बिस्मिल्लाह ! सिधारे। बादशाह महल में
तशरीफ ले गए। शहज़ादे को गोद में लिया और शुकर परवरदिगार का किया। कलेजा ठंडा हुआ। वही
छाती से लगाए हुए ला कर ,फ़क़ीरों के क़दमों पर डाला। दरवेशो ने दुआए पढ़ कर झाड़ फूँक दिया। बादशाह ने जश्न की तैयारी की। दोहरी
नौबते झड़ने लगी। ख़ज़ाने का मुंह खोल दिया। दाद व दहश से एक कोड़ी के मुहताज लो लखपति कर दिया। अरकान दौलत
जितने थे। सबको दो चंद जागीर व मुनसिब के फरमान
हो गए। जितना लश्कर था ,उन्हें पांच बरस की तलब इनाम हुई। मशाइख और बड़े लोग को मदद मआश
और तमगा इनायत हुआ। बे नवाओ के मीते और टक्क्र गुदाओ के चमले अशर्फी और रुपयों
की से भर दिया और तीन बरस का खज़ाना सबको माफ़
किया ,की जो कुछ बोये जोते अपने घर ले जाये।
तमाम शहर में ,हज़ारी बाज़ारी के घरो में जहा देखु वहा नाच हो रहा है। मारे ख़ुशी के हर एक अदना आला बादशाह वक़्त बन बैठा है। ऐन शादी में एक बारगी अन्दरून महल से रोने पीटने का गुल उठा। ख्वासे और तुकिनिया और और महली खुजे ,सर में खाक डालते हुए बाहर निकल आये। और बादशाह से कहा की जिस वक़्त शहज़ादे को नहला धुला कर दायी की गोद में दिया ,एक अबरका का टुकड़ा आया और दायी को घेर लिया। बाद एकदम के देखि तो अंगा बेहोश पड़ी है और शहज़ादा गायब हो गया। यह क्या क़यामत टूटी ! बादशाह यह सुन कर हैरान हुआ .और तमाम मुल्क में वावेला पड़ी। दो दिन तलक किसी के घर हांडी न चढ़ी। शहज़ादे का गम खाते और अपना लहू पीते थे।
गरज़ ज़िंदगानी से लाचार थे जो इस तरह जीते थे। जब तीसरा दिन हुआ वही बादल फिर आया ,और एक पंगोला जड़ाऊ ,मोतियों की तोड़ पड़ी हुई लाया। उसे महल में रख कर आप हवा हुआ। लोगो ने शहज़ादे को उसमे अंगूठा चूसते हुए पाया। बादशाह बेगम ने जल्दी बलाये लेकर ,हाथो में उठा कर ,छाती से लगा लिया। देखा तो कुरता आबे रवा का ,मोतियों का दर दामन टिका हुआ गले में है। और इसपर शलूका तेमामि का पहनाया है। और हाथ पाव में खड़वे मुरस्सा के। और गले में हेकल नोरतन की पड़ी है। और झुनझुना चुसनी चट्टे बट्टे जड़ाऊ धरे है। सब मारे ख़ुशी के वारी फेरी होने लगी और दुआए देने लगी की तेरी माँ का पेट ठंडा रहे और तू बूढ़ा बड़ा हो।
बादशाह ने एक बड़ा नया महल तैयार करवाया ,और फर्श बिछवाया ,उसमे दरवेशो को रखा। जब सल्तनत के काम से फरागत होती ,तब आ बैठते। और सब तरह की खिदमत और खबर गीरी करते। लेकिन हर चाँद की नो चंदी जुमेरात को वही पारह अब्र आता और शहज़ादे को लेकर जाता। बाद दो दिन के तोहफे खिलोने और सौगाते हर एक मुल्क की और हर एक क़िस्म के शहज़ादे के साथ ले आता। जिनके देखने से अक़्ल इंसान की हैरान हो जाती। इसी क़ायदे से बादशाह ज़ादे ने खैरियत से सातवे बरस में पाव दिया। सालगिरह के रोज़ बादशाह आज़ाद बख्त ने फ़क़ीरों से कहा की साईं अल्लाह ! कुछ मालूम नहीं होता की शहज़ादे को कौन ले जाता है और फिर दे जाता है ? बड़ा ताज्जुब है। देखिये अंजाम इसका क्या होता है ! दरवेशो ने कहा : एक काम करो ,एक शुक्क़ा इस मज़मून का लिख शहज़ादे के गहवारे में रख दो तुम्हारी मेहरबानी और मुहब्बत देख कर ,अपना भी दिल मुश्ताक़ मुलाक़ात का हुआ है। अगर दोस्ती की राह से अपने अहवाल की खबर दीजिये ,तो यह खातिर जमा हो और हैरानी बिलकुल दफा हो। बादशाह ने उसी तरह सलाह दरवेशो के ,अफ़शानि कागज़ पर एक टुकड़ा इसी इबारत का लिखा ,और महदे ज़ररी में रख दिया।
शहज़ादा मामूल की तरह गायब हुआ। जब शाम हुई ,आज़ाद बख्त दरवेशो के बिस्तरों पर आकर बैठे और कलमा कलाम हुआ। एक कागज़ लिपटा हुआ बादशाह के पास आया। खोल कर पढ़ा तो जवाब खत का था। यही दो लाइन लिखी थी की हमें भी अपना मुश्ताक़ जानिए। सवारी के लिए तख़्त जाता है। इस वक़्त अगर तशरीफ़ लाईये तो बेहतर है .एक दूसरे से मुलाक़ात हो। सब असबाब ऐश व तरब का मुहैया है ,साहब की जगह खाली है ,बादशाह आज़ाद बख्त दरवेशो को हम राह लेकर तख़्त पर बैठे। वह तख़्त हज़रात सुलेमान (आ. स) के तख़्त की तरह हवा पर चला। रफ्ता रफ्ता मकान पर जा उतरा की ईमारत आली शान और तैयारी का सामान नज़र आता है ,लेकिन यह मालूम नहीं होता की यहाँ कोई है या नहीं। इतने में किसी ने एक एक सलाई सुलेमानी सुरमे की इन पांचो आँखों में फेर दी। दो दो बूंदे आंसू के टपक पड़ीं। परियो का अखाड़ा देखा की इस्तेकबाल की खातिर गुलाब पाशे लिए हुए और रंग बै रंग जोड़े पहने हुए खड़ा है।
आज़ाद बख्त आगे चले ,तो दूर दूर तक हज़ारो परी ज़ाद अदब से खड़े है। और सदर में एक तख़्त ज़मुर्रद का रखा है। इस पर मलिक शहबाल शाहरुख़ का बेटा तकिये लगाए बड़े तुज़क से बैठा है। और एक परीजाद लड़की रु बा रु बैठी शहज़ादा बख्तियार के साथ खेल रही है। और दोनों बगल में कुर्सियां और संदलिया क़रीने से बिछी है ,उनपर उम्दा परीजाद ,बैठे है। मलिक शहबाल बादशाह को देखते ही सर व क़द उठा ,और तख्त से उतर कर बगल गीर हुआ ,और हाथ में हाथ पकड़े अपने बराबर तख़्त पर लाकर बिठाया। और बड़े तपाक और गर्मजोशी से बाहम गुफ्तुगू होने लगी ,तमाम रोज़ हंसी ख़ुशी खाने मेवे और खुश्बुवे की ज़ियाफ़्त रही। और राग रंग सुना किये। दूसरे दिन जब फिर दोनों बादशाह जमा हुए ,शहबाल ने बादशाह से दरवेशो के साथ लाने की कैफियत पूछी।
बादशाह ने चारो बे नवाओ का माजरा जो सुना था ,मुफ़स्सल बयां किया सिफारिश की और मदद चाही की उन्होंने की उन्होंने इतनी मेहनत और मुसीबत खींची है ,अब साहिब की तवज्जह से अगर अपने अपने मक़सद को पहुंचे तो सवाब अज़ीम है। और यह मुख्लिस भी तमाम उम्र शुक्र गुज़ार रहेगा। आपकी नज़र तवज्जह से इनसब का बड़ा पार होता है। मलिक शहबाल ने सुन कर कहा : बा सरो चश्म ,मैं तुम्हारे फरमाने से क़ासिर नहीं। यह कह कर ,निगाह गर्म से देवो और परियो की तरफ देखा। और बड़े बड़े जिन्न ,जो जहा सरदार थे ,उनको नामे लिखे की इस फरमान के देखते ही अपने आपको हुज़ूर पुर नूर में हाज़िर करो। अगर किसी के आने में देर होगा ,तो अपनी सजा पायेगा ,और पकड़ा हुआ आएगा। और आदम ज़ाद ख़्वाह औरत ख़्वाह मर्द ,जिसके पास हो ,उसे अपने साथ लिए आये। अगर कोई पोशीदा कर रखेगा और दूसरी बार ज़ाहिर होगा ,तो उसका जन व बच्चा कूल्हों में पीरा जाएगा। और उसका नाम व निशान बाक़ी न रहेगा।
यह हुक्म नामा लेकर देव चारो तरफ खड़े हुए .यहाँ दोनों बादशाहो में सोहबत गर्म हुई और बाते इख़्तिलात (विचारो पर होने लगी। इसमें मलिक शहबाल दरवेशो से से मुखातिब होकर बोला की अये अपने खुद की आरज़ू लड़के होने की थी। और दिल में यह अहद किया था की अगर खुदा बेटा दे या बेटी ,तो उसकी शादी बनी आदम (इंसान) के बादशाह के यहाँ जो लड़का पैदा होगा ,इससे क्या करूँगा। इस नियत करने के बाद मालूम हुआ की बादशाह बेगम पेट से है। बारे ,दिन और घड़िया और महीने गिनते गिनते पुरे दिन हुए और यह लड़की पैदा हुई। वादे के मुताबिक़ ,तलाश करने के वास्ते आलमे जिन्नियात को मैंने हुक्म क्या : चार दांग दुनिया में जुस्तुजू करो ,जिस बादशाह या शहंशाह के यहाँ फ़रज़न्द पैदा हुआ हो ,उसको बा जींस एहतियात से जल्द उठा कर लाओ। फरमान के परीजाद चारो तरफ पर अगंदा हुए। बाद देर के इस शहज़ादे को मेरे पास ले आये।
मैंने शुक्र खुदा का किया और अपनी गोद में ले लिया। अपनी बेटी से ज़्यादा इसकी मुहब्बत मेरे दिल में पैदा हुई। जी नहीं चाहता की एकदम नज़रो से जुदा करू। लेकिन इस खातिर भेज देता हु की अगर इसके माँ बाप न देखेंगे तो उनका क्या अहवाल होगा। .लिहाज़ा हर महीने में एक बार मंगा लेता हु। कई दिन अपने नज़दीक रख कर ,फिर भेज देता हु। इंशा अल्लाह अब हमारे तुम्हारे मुलाक़ात हुई ,उसकी क्तखुदायी कर देता हु। मौत हयात सबको लगी पड़ी है ,भला जीते जी उनका सहरा देख ले।
बादशाह आज़ाद बख्त यह बाते मलिक शहबाल की सुन कर और उसकी खुबिया देख कर ,निहायत महफूज़ हुए और बोले : पहले हमको शहज़ादे के गायब हो जाने और फिर आजाने से अजब अजब तरह के खतरे दिल में आते थे। लेकिन अब साहब की गुफ्तुगू से तसल्ली हुई ,यह बेटा अब तुम्हारा है। जिसमे तुम्हारी ख़ुशी हो सो कीजिये। गरज़ दोनों बादशाहो की सोहबत मानिंद शक़्कर शेर की रहती और ऐश करते। दस पांच दिन के अरसे में बड़े बड़े बादशाह गुलिस्तांन इरम के और कोहिस्तान के जज़ीरो के जिन की तलब की खातिर लोग तैनात हुए थे। सब आकर हुज़ूर में हाज़िर हुए। पहले मलिक सादिक़ से फ़रमाया की तेरे पास जो आदम ज़ाद है ,हाज़िर करे। उसने निपट गम गुस्सा खा कर ,लाचार उस गुल इज़ार को हाज़िर किया। और विलायत अम्मान के बादशाह से शहज़ादी जिन की ,जिस के वास्ते शहज़ादा मलिक नेमरोज़ का गाद सवार होकर बना था ,मांगी। उसने बहुत सी उज़्र माज़रत करके हाज़िर की। जब बादशाह फरंग बेटी ,और बहज़ाद खान को तलब किया। सब मुनकिर पाक हुए और हज़रत सुलेमान की क़सम खाने लगे।
आखिर दरियाए कुलज़म के बादशाह से जब पूछने की नौबत आयी तो वह सर निचा करके चुप हो रहा। मलिक शहबाल ने उसकी खातिर की , और क़सम दी ,और उम्मीद वार सरफ़राज़ी का क्या , और कुछ धौंस धड़ का भी दिया। तब वह भी हाथ जोड़ कर अर्ज़ करने लगा की बादशाह सलामत ! हक़ीक़त यह है की जब बादशाह अपने बेटे के इस्तेकबाल की खातिर दरिया पर आया और शहज़ादे ने मारे जल्दी के घोड़ा दरिया में डाला ,अचानक में इस रोज़ सैर व शिकार की खातिर निकला था। उस जगह मेरा गुज़र हुआ। सवारी खड़ी करके देखा यह तमाशा देख रहा था। उसमे शहज़ादी को भी घोड़ी दरिया में ले गयी। मेरी निगाह जो उसपर पड़ी ,दिल बे इख़्तियार हुआ। परिजादो को हुक्म किया की शहज़ादी को घोड़े के साथ ले आओ। उसके बहज़ाद खान ने घोड़ा फेंका। जब वह भी गोते खाने लगा दिलावरी और मर्दानगी पसंद आयी ,उसको भी हाथो हाथ पकड़ लिया। उन दोनों को लेकर मैंने सवारी फेरी। सो वे दोनों सही सलामत मेरे पास मौजूद है।
यह अहवाल कह कर दोनों को रु बा रु बुलाया। और सुल्तान शाम शहज़ादी की तलाश बहुत की और सभी से बहुत सख्ती से नरमी से सवाल किया। लेकिन किसी ने हामी न भरी और न नाम व निशान पाया। तब मलिक शहबाल ने फ़रमाया की कोई बादशाह या सरदार गैर हाज़िर भी है। या सब चुके है ? मगर एक मुसलसल जादू जिसने कोहे क़ाफ़ के पर्दे में एक क़िला जादू के इल्म से बनाया है ,वह अपने गुरूर से नहीं आया है। और हम गुलामो को ताक़त नहीं जो बा ज़ोर उसको पकड़ लाये। व बड़ा क़ल्ब मकान है ,और वह खुद भी बड़ा शैतान है।
यह सुन कर मलिक शहबाल को तैश आया और लड़ाकी फ़ौज जिनो और परिजादो की तैनात की और फ़रमाया : अगर रास्ती में उस शहज़ादी को साथ लेकर हाज़िर हो ,उसको ज़ेर व ज़ब्र करके बाँध कर ले आओ। और उसके घढ़ और मुल्क को तबाह व बर्बाद करके गधे क हल फिरवा दो। वही हुक्म होते ही ऐसे कितनी फ़ौज रवाना हुई की एक आध दिन के अरसे में वैसे जोश खरोश वाले सरकश को हलक़ा बा गोश करके पकड़ लाये ,और हुज़ूर में दस्त बदसता खड़ा किया। मलिक शहबाल ने हर चंद सर उठा कर पूछा ,लेकिन इस मगरूर ने सिवाए न का है न की .निहायत को गुस्से होकर फ़रमाया की इस मरदूद के बंद बंद जुदा करो ,और खाल खींच कर भस भरो। और परीजाद के लश्कर को तैनात किया की कहे क़ाफ़ में जाकर ढूंढ कर पैदा करो। वह लश्कर तैनात शहज़ादी को भी तलाश करके लाया .और हुज़ूर में पहुंचाया। इन सब असीरो ने और चारो फ़क़ीरों ने मलिक शहबाल का हुक्म और इंसाफ देख आकर दुआ दी और शाद हुए। बादशाह आज़ाद बख्त भी बहुत खुश हुए। तब मलिक शहबाल ने फ़रमाया की मर्दो को दीवान ख़ास में ,और औरतो को बादशाही महल में दाखिल करो। और शहर में आईना बंदी का हुक्म। करो और शादी की तैयारी जल्द हो। गोया हुक्म की देर थी।
एक रोज़ नेक घड़ी और मुबारक महूरत देख कर शहज़ादा बख्तियार का अक़्द अपनी बेटी रोशन अख्तर से बाँधा। और ख्वाजा ज़ादा यमन को दमिश्क़ की शहज़ादी से बियाह हो गया। और मलिक फारस के शहज़ादे का निकाह बसरा की शहज़ादी से कर दिया। और अज्म के बादशाह ज़ादे को फरंग की मलका से मंसूब किया। और नेम्रोज़ के बादशाह की बेटी को बहज़ाद खान को दिया। और शहज़ादा नेम्रोज़ को जिन की शहज़ादी हवाले की। और चीन की शहज़ादे को उस पीर अजमी की बेटी से ,जो सादिक़ क़ब्ज़े में थी क्तखुदा किया। हर एक न मुराद ,बा दौलत मलिक शहबाल के अपने अपने मक़सद और मुराद को पंहुचा। बाद उसके चालीस दिन तक जश्न फ़रमाया और ऐश व इशरत में रात दिन मशगूल रहे।
आखिर मलिक शहबाल ने हर एक बादशाह ज़ादे को तोहफे और सौगाते और माल असबाब दे दे कर ,अपने अपने वतन को रुखसत किया। सब बा ख़ुशी व खातिर जमई रवाना हुए ,और यह खैर व आफ़ियत से जा पहुंचे ,और बादशाहत करने लगे। मगर एक बहज़ाद खान और ख्वाजा ज़ादा यमन का अपनी ख़ुशी से बादशाह आज़ाद बख्त की रफक़त में रहे। आखिर यमन के ख्वाजा ज़ादे को खानसमा ,और बहज़ाद खान को मेरे बख्शी शहज़ादा साहब इक़बाल मतलब बख्तियार की फ़ौज का क्या। जब तलक जीते रहे ,ऐश करते रहे। इलाही ! जिस तरह चारो दरवेश और पाँचवा बादशाह आज़ाद बख्त अपनी मुराद को पहुंचे इसी तरह हर एक न मुराद का मक़सद दिली क्रम व फ़ज़ल से बर ला। ...... ..... .
अमीन या रब्बुल आलमीन
Anjali korde
23-Jan-2025 05:55 AM
👌👌👌
Reply
Pranav kayande
21-Jan-2025 01:58 AM
👍👍
Reply
RISHITA
20-Jan-2025 05:29 AM
👌👌
Reply