ग़ज़ल
🌹🌹🌹 ग़ज़ल 🌹🌹🌹
गुल-ए-दर्द के से ख़ज़ाने बहुत हैं।
मिरे पास ग़म के तराने बहुत है।
न हो पाएगा तुम से इनका मुदावा।
मिरे ज़ख़्मे-ख़न्दां पुराने बहुत हैं।
जो आना है तो आ ही जाओगे वरना।
न आने के दिलबर बहाने बहुत हैं।
कहां तक छुपाऊं में चेहरे को अपने।
तिरे शहर में जाम-ख़ाने बहुत हैं।
तिरे दिल में हो तो मज़ा ही अलग है।
वगरना नगर में ठिकाने बहुत हैं।
अभी से न पहलू बदल ज़िन्दगी तू।
अभी नाज़ तेरे उठाने बहुत हैं।
उठाते हो दो नाली बन्दूक़ क्यों तुम।
तुम्हारी नज़र के निशाने बहुत हैं।
फ़राज़ ऐसे फेंको न सुलगा के तीली।
यहां फूस के आशियाने बहुत हैं।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसानवी।
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hema mohril
26-Mar-2025 05:08 AM
amazing
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kashish
03-Feb-2025 05:19 AM
v nice
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madhura
30-Jan-2025 06:08 AM
beautiful
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