Sunita gupta

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बहुधा

विषय _बहुधा
शीर्षक _ बार - बार 
विधा _ कविता 
बहुधा सोचा, बहुधा समझा,
फिर भी मन क्यों है उलझा?

बहुधा चाहा चुप रह जाना,
पर शब्दों ने साथ न छोड़ा।

बहुधा पथ पर चलने की ठानी,
पर राहों ने मोड़ न छोड़ा।

बहुधा चाहा ख़ुशबू बन जाँऊ, 
पर संग हवा ने न बिखेरा।

   बहुधा सूरज- सा, चमकूँ  मैं,
पर छाया ने मुझको घेरा।

बहुधा चाहा गीत लिखूँ, 
पर सुर में दर्द समा गया।

बहुधा चाहा मौन रहूँ, 
पर दिल का हाल बता गया।

बहुधा देखा टूटते ख्वाबों को,
पर आस ने थाम लिया मुझे।

बहुधा गिरा, बहुधा संभला
पर साहस ने जीत लिया मुझे।

बहुधा अँधेरों से डर कर भागा,
पर रोशनी ने राह दिखा दी।

बहुधा सोचा किस्मत क्या है,
पर कर्म ने पहचान बना दी। 
सुनीता गुप्ता

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3 Comments

hema mohril

26-Mar-2025 05:05 AM

amazing

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kashish

09-Feb-2025 07:40 AM

👌👌

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Sunita gupta

07-Feb-2025 12:30 PM

शीर्षक बहुधा

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