परिंदे
परिंदे
कब तक रहोगे कैद परिंदे,
जाओ तुम भी उड़ान भरो।
इस सुन्दर दुनिया को,
जाओ जाकर तुम भी देखो।।
इस पिंजरे में याद तुम्हारी,
कैद करके रख लूँगी मैं।
जब भी आये याद तुम्हारी,
उड़ते परिंदों को देखा करूँगी मैं।।
नीले-नीले आसमान में,
पंख पसार उड़ जाओगे।
नदियाँ,झरने,फूल,कलियाँ,
सब से मिलकर आओगे।।
भूल ना जाना मुझे परिंदे,
ख्यालों में याद रखना तुम
जब भी मेरी याद सताए,
इसी जगह में मिलना तुम।।
सरिता ल "माही"