Ham tumhen chahte Hain aise
नहीं, उन्हें सोनिया का रिश्ता नहीं चाहिए। उन्हें जानवी ही चाहिए।
"तुम नहीं जानती जयराज सिंघानिया को," सोमनाथ ने कहा, "बहुत अजीब सा आदमी है। मुझे सोनिया के लिए डर लगता है। सोनिया उसके साथ नहीं निभा सकती। इतना सनकी आदमी है, उसे तो कभी किसी ने हँसते हुए भी नहीं देखा। सोनिया उसके साथ एक दिन भी नहीं रह सकती। बिज़नेस के सिलसिले में मैं उससे बहुत बार मिला हूँ। हर किसी से तो वह अच्छे से बात भी नहीं करता। जानवी की शादी हो जाने दो, खुद देख लेना तुम।"
और उसका एक बच्चा है, सोनिया कैसे संभालेगी उसे? "जानवी की शादी हो जाने दो, हमारे रिश्तेदारी होते ही हमें बहुत बड़ा कांटेक्ट मिल रहा है। सोनिया के लिए और बहुत से लड़के हैं मेरी नज़र में।"
दादा जी, जया और राजन बातें कर रहे थे। तभी एक लड़की बाहर से भागती हुई आई।
"धीरे चलो, धीरे। ऐसे क्यों भाग रही हो? क्या हुआ?" दादाजी इसकी हालत देखकर अपनी जगह से खड़े हो गए। जया और राजन भी उसकी तरफ देखने लगे।
क्योंकि जो लड़की भाग कर आ रही थी, उसकी जीन्स घुटने से फटी हुई थी और घुटने से खून निकल रहा था। साथ में उसकी कुहनी पर भी चोट के निशान थे। मगर उसने हाथ में कुछ पकड़ा हुआ था।
"यह क्या है, बेटा?" दादाजी ने घबरा कर पूछा।
उसने अपने घुटनों की तरफ देखा। "मैं अमरूद के पेड़ पर चढ़ गई थी, उसकी टहनी ज़्यादा स्ट्रांग नहीं थी, वह टूट गई। नीचे गिरने की वजह से चोट लग गई।" उसने अपने हाथ का अमरूद खाते हुए कहा। "सिक्योरिटी गार्ड मेरे पीछे पड़ गया था, उस वजह से मुझे दीवार फाँदनी पड़ी।"
तभी सोमनाथ और उसकी पत्नी तनु भी वापस बाहर आ गए थे। उन्होंने पूरी बात सुन ली।
"क्या कहेंगे कि हम तुम्हें खाने को नहीं देते जो तुम चोरी करती हो?" तनु ने कहा।
"आंटी, इसे चोरी नहीं कहते। पता है अमरूद के पेड़ पर चढ़ना कितना अच्छा लगता है! और हाँ, उसे घर का जो सिक्योरिटी गार्ड है, उस बेचारे को ज़रूर मुश्किल हो जाती है। मैं उसके लिए सैंडविच लेकर जाती हूँ, उससे माफी माँगने के लिए।"
"तो तुम ऐसा करती ही क्यों हो जो तुम्हें माफ़ी माँगनी पड़े?" जया ने उसे कहा।
"आंटी, आपने कभी किया है ऐसा?" जानवी ने जया से पूछा।
उसकी बात पर जया ने राजन की तरफ देखा। "नहीं बेटा, हम दोनों ने तो ऐसा कभी नहीं किया।"
"तो करके देखिए, कितना मज़ा आता है!"
"मगर तुम्हारी चोट?"
"दो दिन में ठीक हो जाएगी। इसके ऊपर मैंने मिट्टी डाल ली थी," जानवी ने लापरवाही से कहा।
"मिट्टी डालने से इंफ़ेक्शन हो जाती है," तनु कहने लगी।
"मगर मुझे नहीं होती, आंटी!" वह हँस कर अंदर जाने लगी।
"रुको, बेटा," दादाजी ने कहा। "बैठो जहाँ पर।"
वह वापस आकर बैठ गई। "बेटा, ये तुमसे मिलने के लिए आए हैं, तुम्हारे राजन अंकल और जया आंटी।"
"किसलिए?" जानवी ने कहा।
"मैंने तुम्हें बताया था ना कि मैंने तुम्हारे लिए राजन अंकल का बेटा पसंद किया है। इन्हें तुम अपने लिए पसंद हो।"
"मैंने आपसे कह दिया था कि जो आपको अच्छा लगे वैसे ही कीजिए," जानवी ने अमरूद खाते हुए लापरवाही से कहा।
जय अपने हाथ से कंगन उतारती है और जानवी को पहनाने लगती है। "यह क्या है, आंटी जी?"
"शगुन के कंगन हैं, बेटा," उसने मुस्कुरा कर कहा। साथ ही वह अपने पर्स से एक अंगूठी निकालती है और जानवी के हाथ में पहना देती है।
"जय इस टाइम इंडिया में नहीं है। वह कल आएगा तो उसने मुझसे कहा कि मॉम आप ही अंगूठी पहना देना, तो इसलिए मैंने पहना दी।" जय उसका हाथ पकड़ कर, जिसमें मिट्टी और खून भी लगा हुआ था, उसमें अंगूठी पहना देती है। जानवी ने एक नज़र अंगूठी की तरफ देखा।
"अगर जय इस टाइम इंडिया में नहीं था तो आप उसके बेटे को ही साथ ले आते, वो जानवी से भी मिल लेता। आखिर जी उसकी माँ बनने वाली है," तनु ने जानबूझकर कहा।
चाहे जो भी हो, वो जानवी का रिश्ता एक इतने बड़े बिज़नेसमैन के साथ होता नहीं देख सकती थी। उसकी बात पर जया और राजन ने जानवी के चेहरे की तरफ देखा।
"सही बात है, आप युग को ले आते, मैं उससे मिल लेती," जानवी ने लापरवाही से कहा।
"तो मुझे उसका नाम पता है?" तनु ने जानवी से सवाल किया।
"दादाजी ने बताया था मुझे उसके बारे में।"
"तो मैं फिर कल मिल लेना," जया ने कहा।
"कल? कल आप लोग उसे लेकर आ रहे हैं?" जानवी कहने लगी।
"अब परसों संडे को शादी हो रही है, तो कल तुम अपने लिए लहँगा पसंद करने आ रही हो, मैं उसे भी साथ ले आऊँगी," जया ने कहा।