ग़ज़ल
🌹🌹🌹🌹ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹
दुश्मनी दिल से किसी रोज़ भुलाए तो सही।
वो मुझे अपने कलेजे से लगाए तो सही।
कुछ न कुछ हल तो निकल आएगा मेरे यारो।
बैर क्या है उसे मुझ से वो बताए तो सही।
मैं तो बेताब हूं सुनने को कहानी उसकी।
ह़ाले-दिल अपना किसी दिन वो सुनाए तो सही।
तर्क ख़ुद उस ने किया मिलना-मिलाना मुझ से।
मैं तो आ जाऊंगा वो मुझको बुलाए तो सही।
रास्ता उसको भुला दूंगा मैं मयख़ाने का।
मेरी आंखों से वो आंखों को मिलाए तो सही।
बे-सबब बात बनाने से न होगा कुछ भी।
बाहुनर है तो वो कुछ करके दिखाए तो सही।
कैसे होता है कोई काम समझ जाएगा।
कोई ज़हमत वो किसी रोज़ उठाए तो सही।
मान जाऊंगा मैं सीने से लगा लूंगा उसे।
वो फ़राज़ आ के कभी मुझको मनाए तो सही।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद।
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