kapil sharma

Add To collaction

ट्वाइलाइट




  मेरी माँ मुझे एयरपोर्ट छोड़ने आई थीं, कार की खिड़कियाँ खुली हुई थीं। फीनिक्स में पचहत्तर डिग्री तापमान था, आसमान एकदम साफ और बादल,रहित नीला था। मैंने अपनी पसंदीदा शर्ट पहन रखी थी , बिना बाँहों वाली, सफेद लेस वाली; ये एक तरह से विदाई के रूप में पहनी थी। मेरा कैरी,ऑन सामान एक गर्म जैकेट (पार्का) था।

उत्तर,पश्चिम वॉशिंगटन स्टेट के ओलंपिक प्रायद्वीप में “फॉर्क्स” नाम का एक छोटा,सा शहर है, जो हमेशा बादलों की चादर से ढका रहता है। इस मामूली शहर में पूरे अमेरिका में सबसे ज़्यादा बारिश होती है। मेरी माँ इस उदास, हमेशा ढंके रहने वाले शहर से मुझे लेकर भाग आई थीं जब मैं कुछ ही महीनों की थी। हर गर्मी की छुट्टियों में जब तक मैं चौदह साल की नहीं हुई, मुझे वहाँ एक महीना बिताना पड़ता था। फिर उस साल मैंने साफ मना कर दिया; पिछले तीन सालों से पापा , चार्ली , दो हफ्ते के लिए कैलिफोर्निया में मेरे पास छुट्टियाँ बिताने आते थे।

और अब मैं खुद को फिर से फॉर्क्स भेज रही थी , एक ऐसा फ़ैसला जिसे मैंने भारी मन से लिया। मुझे फॉर्क्स से नफ़रत थी।

मुझे फीनिक्स से प्यार था। वहाँ की धूप और झुलसाने वाली गर्मी मुझे भाती थी। वो ऊर्जा से भरा, फैला हुआ शहर मुझे अच्छा लगता था।

“बेला,” मेरी माँ ने कहा , शायद हजारवीं बार , जब मैं प्लेन में चढ़ने वाली थी।

“तुम्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं है।”

  मेरी माँ बिल्कुल मेरी तरह दिखती हैं, बस उनके बाल छोटे हैं और चेहरे पर हँसी की लकीरें हैं। जब मैंने उनकी बड़ी,बड़ी मासूम आँखों में देखा, तो अंदर तक डर का एक झटका महसूस हुआ। मैं अपनी प्यारी, कभी,कभी बेसुध रहने वाली माँ को अकेले कैसे छोड़ सकती थी? हाँ, अब उनके साथ फिल है, तो शायद बिल भर जाएंगे, फ्रिज में खाना होगा, कार में पेट्रोल और रास्ता भटकने पर किसी को कॉल भी कर सकेंगी… लेकिन फिर भी…

“मैं जाना चाहती हूँ,” मैंने झूठ कहा। मैं हमेशा से खराब झूठ बोलने वाली रही हूँ, लेकिन ये झूठ मैंने इतने बार बोला था कि अब ये सच जैसा लगने लगा था।

“चार्ली को मेरा हैलो कहना।”

“कहूँगी।”

“जल्द मिलेंगे,” उन्होंने ज़ोर देकर कहा।

“तुम जब चाहो वापस आ सकती हो , मुझे ज़रूरत पड़ी तो मैं तुरंत वापस आ जाऊँगी।”

लेकिन उनके वादे के पीछे छिपे बलिदान को मैं उनकी आँखों में देख सकती थी।

“मेरे लिए मत सोचो,” मैंने कहा।

“सब बढ़िया होगा। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, माँ।”

उन्होंने मुझे ज़ोर से गले लगाया, फिर मैं प्लेन में चढ़ गई, और वो चली गईं।

  फीनिक्स से सिएटल तक की उड़ान चार घंटे की है, फिर एक छोटे जहाज़ से पोर्ट एंजलिस तक एक और घंटे की, और वहाँ से फॉर्क्स तक एक घंटे की कार यात्रा। उड़ान से मुझे कोई परेशानी नहीं होती; लेकिन चार्ली के साथ कार में बिताया एक घंटा थोड़ा चिंता का विषय था।

 चार्ली ने पूरी स्थिति को काफी अच्छे से संभाला था। वो सच में खुश लग रहे थे कि मैं पहली बार लंबे समय के लिए उनके साथ रहने आ रही थी। उन्होंने मुझे पहले ही स्कूल में दाखिल करवा दिया था और कार दिलवाने में मदद भी करने वाले थे।

 लेकिन चार्ली के साथ रहना थोड़ा अजीब लगने वाला था। हम दोनों में से कोई बहुत बातूनी नहीं था, और वैसे भी मुझे नहीं पता था कि बात क्या करें। मैं जानती थी कि वो मेरी इस फैसले से थोड़ा ज़्यादा ही हैरान थे , मेरी माँ की ही तरह, मैंने कभी अपनी फॉर्क्स के प्रति नफरत छुपाई नहीं थी।

 जब मैं पोर्ट एंजलिस उतरी, तो बारिश हो रही थी। मैंने इसे कोई अपशकुन नहीं माना , बस एक सच्चाई मानी। मैं पहले ही सूरज से विदाई ले चुकी थी।

चार्ली मुझे क्रूज़र लेकर लेने आए थे। ये मुझे पहले से पता था। फॉर्क्स के अच्छे लोगों के लिए चार्ली “पुलिस चीफ स्वान” हैं। मैंने कार खरीदने का मन इसलिए भी बनाया था, क्योंकि मैं लाल,नीली लाइटों वाली पुलिस कार में बैठकर पूरे शहर में घूमना नहीं चाहती थी। पुलिस कार देखकर हर कोई धीरे चला करता है।

जब मैं प्लेन से उतरकर लड़खड़ाते हुए निकली, तो चार्ली ने एक हाथ से मुझे हग किया और खुद,ब,खुद मुझे सँभाल लिया।

“तुमसे मिलकर अच्छा लगा, बेल्स,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।

“तुम ज़्यादा नहीं बदली हो। रिनी कैसी है?”

“माँ ठीक हैं। आपसे मिलकर अच्छा लगा, डैड।”

मैं उन्हें मुँह पर “चार्ली” नहीं कह सकती थी।

मेरे पास ज़्यादा सामान नहीं था। ज़्यादातर अरिज़ोना के कपड़े वॉशिंगटन के लिए हल्के थे। माँ और मैंने मिलकर कुछ सर्दियों के कपड़े खरीदे थे, लेकिन वो भी कम थे। सब सामान आसानी से क्रूज़र की डिक्की में आ गया।

“मैंने तुम्हारे लिए एक अच्छी कार ढूंढी है, बहुत सस्ती,” उन्होंने सीट बेल्ट बाँधते हुए कहा।

“कैसी कार?” मुझे उनके कहने के अंदाज़ पर शक हुआ , “तुम्हारे लिए अच्छी कार” की जगह बस “अच्छी कार” क्यों नहीं कहा?

“असल में ट्रक है, शेवी।”

“कहाँ से मिला?”

“तुम्हें बिली ब्लैक याद है, ला पुष का?” ला पुष वो छोटा सा इंडियन रिजर्वेशन है समुंदर के किनारे।

“नहीं।”

“वो गर्मियों में हमारे साथ मछली पकड़ने आता था,” चार्ली ने याद दिलाया।

शायद इसलिए मुझे याद नहीं था , मैं दर्दनाक और गैरज़रूरी चीजों को याद नहीं रखती।

“अब वो व्हीलचेयर पर है,” चार्ली बोले, जब मैंने कुछ नहीं कहा,

“तो अब चला नहीं सकता, और उसने अपना ट्रक मुझे सस्ते में दे दिया।”

“कौन से साल का है?” उनके चेहरे के बदलते हावभाव से मुझे पता चल गया कि वो नहीं चाहते थे मैं ये सवाल करूँ।

“बिली ने इंजन पर काफ़ी काम किया है , असल में इंजन नया ही है।”

उन्हें शायद लगा कि मैं इतनी आसानी से मान जाऊँगी।

“वो ट्रक कब खरीदा?”

“शायद 1984 में।”

“क्या वो नया खरीदा गया था?”

“नहीं… मेरा मतलब, शायद वो ट्रक साठ के शुरुआती या पचास के आखिरी सालों का है,” उन्होंने शर्माते हुए कबूल किया।

“डैड, मुझे कारों के बारे में ज़्यादा नहीं पता। अगर उसमें कुछ गड़बड़ हुई, तो मैं ठीक नहीं कर पाऊँगी और मैकेनिक भी नहीं अफोर्ड कर सकती…”

“सच में बेला, वो गाड़ी बढ़िया चलती है। अब वैसी चीजें बनती नहीं हैं।”

“वो चीज़…” मैंने सोचा , चलो एक nickname तो मिला।

“कितनी सस्ती थी?” आख़िरकार, यही बात सबसे ज़्यादा मायने रखती थी।

“बेटा, असल में मैंने पहले ही वो तुम्हारे लिए खरीद ली है। एक होमकमिंग गिफ्ट के तौर पर।” चार्ली ने मेरी तरफ उम्मीद भरी नज़र से देखा।

वाह। फ्री ट्रक।

“आपको इसकी ज़रूरत नहीं थी, डैड। मैं खुद खरीद लेती।”

  “मुझे कोई परेशानी नहीं है। मैं चाहता हूँ कि तुम यहाँ खुश रहो।” उन्होंने सड़क की तरफ देखते हुए कहा। चार्ली अपने जज़्बात ज़ुबान से जताने में सहज नहीं थे। ये बात मैंने उनसे ही पाई है।

मैंने भी सीधा सामने देखते हुए कहा:

“ये बहुत अच्छा किया आपने, डैड। शुक्रिया। मैं सच में इसकी कद्र करती हूँ।”

  ये कहने की ज़रूरत नहीं थी कि फॉर्क्स में खुश रहना मेरे लिए नामुमकिन था। उन्हें मेरे साथ दुखी नहीं होना चाहिए। और वैसे भी, मैं फ्री ट्रक के इंजन पर सवाल नहीं उठाती।

“अब तो, तुम्हारा स्वागत है,” उन्होंने बुदबुदाते हुए कहा, मेरे धन्यवाद से फिर एक बार झेंप गए।

हमने मौसम पर थोड़ी और बातें कीं , जो कि गीला था , और बाकी सफर चुपचाप खिड़की से बाहर देखते हुए कटा।

  बेशक, सब कुछ बेहद सुंदर था; मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकती थी। हर चीज़ हरी थी , पेड़ों के तने काई से ढके थे, शाखाएँ हरियाली की छत बनाकर लटक रही थीं, ज़मीन पर फर्न की चादर बिछी थी। यहाँ तक कि हवा भी पत्तों के बीच से छनकर हरी लग रही थी।

ये बहुत ज़्यादा हरा था , जैसे कोई पराई, विदेशी दुनिया।

 आख़िरकार हम चार्ली के घर पहुँचे। वो अब भी उसी छोटे से दो,बेडरूम वाले घर में रहते थे, जो उन्होंने मेरी माँ के साथ शादी के शुरू में खरीदा था। उनका रिश्ता भी बस उन्हीं शुरूआती दिनों तक ही चला था। घर के सामने सड़क पर खड़ी थी मेरी “नई” , कम से कम मेरे लिए , ट्रक। उसका रंग हल्का फीका लाल था, बड़े गोल फेंडर और उभरे हुए केबिन के साथ। मेरी हैरानी की हद नहीं रही , मुझे वो बहुत पसंद आई। मुझे नहीं पता था कि वो चलेगी या नहीं, लेकिन मैं खुद को उसमें बैठे देख सकती थी। और वैसे भी, वो भारी लोहे की बनी थी , वैसी गाड़ियाँ जो एक्सीडेंट में खुद तो बच जाती हैं, और सामने वाली को चकनाचूर कर देती हैं।

 “वाह, डैड! ये तो मुझे बहुत पसंद आई! शुक्रिया!” अब कल का मेरा डरावना दिन थोड़ा कम बुरा लगेगा। अब मुझे ना तो दो मील पैदल स्कूल जाना पड़ेगा, और ना ही पुलिस कार में बैठना पड़ेगा।

“अच्छा लगा तुम्हें पसंद आया,” चार्ली ने फिर थोड़ी शर्म से कहा।

सारा सामान ऊपर ले जाने में बस एक ही चक्कर लगा। मुझे घर के पश्चिमी हिस्से का कमरा मिला, जो सामने वाले लॉन की तरफ खुलता था। वो कमरा मेरे लिए जाना,पहचाना था…

 वो कमरा मेरा ही था जब से मैं पैदा हुई थी। लकड़ी का फर्श, हल्के नीले रंग की दीवारें, ऊपर को उठी हुई छत, खिड़की पर पीली पड़ चुकी लेस के परदे , ये सब मेरी बचपन की यादों का हिस्सा थे। चार्ली ने इसमें सिर्फ दो ही बदलाव किए थे , पालने की जगह एक बेड और फिर मेरी उम्र के साथ एक डेस्क जोड़ दी थी। अब उस डेस्क पर एक सेकंडहैंड कंप्यूटर था, जिसका मोडेम के लिए फोन लाइन ज़मीन पर स्टेपल की गई थी, सबसे नज़दीकी फोन जैक तक। ये माँ की शर्त थी, ताकि हम आसानी से एक,दूसरे से संपर्क कर सकें। मेरा बचपन वाला रॉकिंग चेयर अब भी कोने में रखा था।

 सीढ़ियों के ऊपर सिर्फ एक छोटा,सा बाथरूम था, जिसे मुझे चार्ली के साथ शेयर करना था। मैं ज़्यादा सोचने की कोशिश नहीं कर रही थी इस बारे में।

चार्ली की सबसे अच्छी बात ये थी कि वो मेरे ऊपर मंडराते नहीं थे। उन्होंने मुझे अकेले छोड़ दिया ताकि मैं अपने सामान को खोलकर ठीक से रख सकूँ , एक ऐसा काम जो मेरी माँ के साथ बिल्कुल असंभव होता। अकेले रहना अच्छा लग रहा था, मुस्कुराने या खुश दिखने की ज़रूरत नहीं थी; खिड़की से गिरती बारिश को उदासी से देखने और कुछ आँसू बहा लेने में एक राहत थी। मैं अभी ज़ोर,ज़ोर से रोने के मूड में नहीं थी। वो मैं रात के लिए बचाकर रख रही थी, जब मुझे अगली सुबह के बारे में सोचना होगा।

 Forks High School में सिर्फ 357 , अब 358 , स्टूडेंट्स थे; जबकि मेरे पुराने स्कूल में मेरी जूनियर क्लास में ही 700 से ज़्यादा थे। यहाँ के सारे बच्चे एक,दूसरे के साथ बड़े हुए थे , उनके दादा,दादी भी साथ खेले थे। मैं “बड़ी सिटी से आई नई लड़की” बनने वाली थी , एक जिज्ञासा, एक अजीब चीज़।

शायद, अगर मेरा लुक फीनिक्स जैसी लड़की जैसा होता, तो मैं इसका फायदा उठा सकती। लेकिन मैं कभी भी कहीं फिट नहीं हुई। मुझे गहरी टैन स्किन, एथलेटिक बॉडी, सुनहरे बाल होने चाहिए थे , वॉलीबॉल प्लेयर या चीयरलीडर जैसी , वो सब चीज़ें जो “वैली ऑफ द सन” की लड़की से उम्मीद की जाती हैं।

इसके बजाय, मेरी स्किन आइवरी जैसी थी, वो भी बिना नीली आँखों या लाल बालों के बहाने के, जबकि वहाँ हमेशा धूप रहती थी। मैं हमेशा पतली रही हूँ, लेकिन किसी एथलीट जैसी नहीं , मुझे कभी भी वो कॉर्डिनेशन नहीं आया जिसकी स्पोर्ट्स में ज़रूरत होती है। मैं खुद को शर्मिंदा किए बिना खेल नहीं सकती , और पास खड़े लोगों को भी चोट पहुँच सकती है।

जब मैंने अपने कपड़े पुराने पाइन की बनी ड्रेसर में रख दिए, तो बाथरूम के सामान का बैग लेकर मैं ऊपर बाथरूम में गई, ताकि सफर के बाद खुद को थोड़ा ठीक कर सकूँ। जब मैंने आईने में अपना चेहरा देखा, बालों में कंघी करते हुए, जो अब भी नम और उलझे हुए थे , शायद ये रोशनी का असर था, लेकिन मैं पहले से ही ज़्यादा पीली और बीमार दिख रही थी। मेरी स्किन कभी,कभी अच्छी लगती थी , एकदम साफ, जैसे पारदर्शी , लेकिन ये सब रंग पर निर्भर करता था। और यहाँ तो मेरे पास कोई रंग ही नहीं था।

आईने में अपने इस फीके रूप को देखकर, मुझे मानना पड़ा कि मैं खुद से झूठ बोल रही थी। बात सिर्फ मेरे लुक्स की नहीं थी। और अगर मैं तीन हज़ार बच्चों वाले स्कूल में भी अपनी जगह नहीं बना पाई, तो यहाँ क्या उम्मीद थी?

मैं अपने उम्र के लोगों से ठीक से जुड़ नहीं पाती थी। शायद सच्चाई ये थी कि मैं किसी से भी ठीक से जुड़ नहीं पाती थी। मेरी माँ, जो इस दुनिया में मुझसे सबसे ज़्यादा करीब थीं, वो भी कभी मुझसे एक लय में नहीं थीं। कभी,कभी मुझे लगता था कि जो चीज़ें मैं अपनी आँखों से देखती हूँ, वो शायद बाकी दुनिया से अलग हैं। शायद मेरे दिमाग में कोई गड़बड़ी है।

लेकिन कारण मायने नहीं रखता। जो असर होता है, वही मायने रखता है। और कल सिर्फ शुरुआत होगी।

उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाई, रो लेने के बाद भी। बारिश और हवा की आवाज़ें छत पर लगातार गूंजती रहीं और पृष्ठभूमि में नहीं गईं। मैंने खुद को पुराने, फीके कंबल से ढँक लिया, और बाद में तकिए को भी सिर पर रख लिया। लेकिन मैं आधी रात के बाद ही सो पाई, जब बारिश एक हल्की सी फुहार में बदल गई।

सुबह खिड़की के बाहर सिर्फ मोटा कोहरा दिख रहा था, और मुझे घुटन जैसा महसूस होने लगा था। यहाँ आसमान कभी दिखाई ही नहीं देता था; जैसे किसी पिंजरे में बंद हूँ।

चार्ली के साथ ब्रेकफास्ट शांतिपूर्ण था। उन्होंने मुझे स्कूल के लिए गुड लक कहा। मैंने उन्हें थैंक्यू कहा, ये जानते हुए कि उनकी उम्मीद बेकार थी। गुड लक मुझसे हमेशा दूर रहती थी। चार्ली पहले निकल गए , पुलिस स्टेशन, जो उनकी बीवी और परिवार था। उनके जाने के बाद, मैं पुराने ओक टेबल पर एक बेढंगे कुर्सियों में से एक पर बैठ गई और उनके छोटे से किचन को देखा , डार्क पैनल वाली दीवारें, ब्राइट येलो कैबिनेट, सफेद लिनोलियम फ्लोर। कुछ भी नहीं बदला था। माँ ने ये कैबिनेट्स अठारह साल पहले पेंट की थीं, ताकि घर में थोड़ी धूप आ जाए।

छोटे से लिविंग रूम में, जो एक रूमाल जितना था, फायरप्लेस के ऊपर कुछ तस्वीरें थीं , पहले चार्ली और माँ की वेगास वाली शादी की तस्वीर, फिर हॉस्पिटल में मेरी पैदाइश के बाद की एक फोटो, जिसे किसी नर्स ने खींचा था, और फिर मेरे स्कूल की तस्वीरें, हर साल की। वो तस्वीरें देखना शर्मनाक था , मुझे कुछ करना पड़ेगा ताकि चार्ली उन्हें कहीं और रख दें, कम से कम जब तक मैं यहाँ रहूँ।

इस घर में रहकर ये समझना नामुमकिन नहीं था कि चार्ली अब तक माँ को भुला नहीं पाए थे। ये बात मुझे असहज कर देती थी।

मैं स्कूल ज़्यादा जल्दी नहीं पहुँचना चाहती थी, लेकिन घर में और रुक पाना मुश्किल था। मैंने जैकेट पहनी , जो किसी बायोहैज़र्ड सूट जैसी लग रही थी , और बारिश में बाहर निकल गई।

अब भी सिर्फ फुहार हो रही थी, इतनी नहीं कि मैं तुरंत भीग जाऊँ, जब मैंने दरवाज़े के पास छत की किनारी के नीचे छुपाई चाबी निकाली और ताला बंद किया। मेरे नए वॉटरप्रूफ बूट्स की आवाज़ बड़ी अजीब लग रही थी , मुझे पैरों के नीचे कंकड़ की चटक याद आ रही थी। मैं दोबारा अपनी ट्रक को निहार नहीं पाई, जैसे चाहती थी , कोहरे से घिरे इस गीलेपन से निकलने की जल्दी थी।

ट्रक के अंदर सुखद रूप से सूखा था। या तो बिली ने, या चार्ली ने इसे साफ़ किया था, लेकिन सीटों पर अब भी हल्की,सी तंबाकू, पेट्रोल और पेपरमिंट की मिली,जुली खुशबू थी। इंजन ने राहत की बात मानी , तुरंत चालू हो गया, लेकिन बहुत ज़ोर से गूंजा। ठीक है, इतनी पुरानी ट्रक में कुछ तो गड़बड़ होगी ही। एंटीक रेडियो काम करता था , ये उम्मीद नहीं थी, लेकिन अच्छा लगा।

स्कूल ढूँढना मुश्किल नहीं था, हालांकि मैं वहाँ पहले कभी नहीं गई थी। स्कूल भी बाकी चीज़ों की तरह हाइवे के पास ही था। उसे देखकर समझ नहीं आता था कि ये स्कूल है , बस एक साइन था, जिस पर “Forks High School” लिखा था, उसी ने मुझे रुकने पर मजबूर किया। वो जगह जैसे कुछ एक जैसे घरों का समूह लग रही थी, जो मारून ईंटों से बने थे। इतने सारे पेड़ और झाड़ियाँ थीं कि उसका आकार भी साफ़ नहीं दिखता था। कहाँ गया वो इंस्टिट्यूट वाला फील? मैंने नॉस्टैल्जिया में सोचा। कहाँ गईं चेन,लिंक फेंस और मेटल डिटेक्टर्स?

मैं पहले बिल्डिंग के सामने ट्रक पार्क की , जहाँ छोटे से साइन पर “FRONT OFFICE” लिखा था। वहाँ और कोई कार नहीं थी, तो मुझे लगा शायद यहाँ पार्किंग की इजाज़त नहीं है, लेकिन मैंने सोचा कि अंदर जाकर डायरेक्शन पूछ लेना बेहतर होगा, बजाय इसके कि मैं बारिश में इधर,उधर घूमती रहूँ।

मैं ट्रक से बाहर निकली और गहरे हेजेज के बीच पत्थर के छोटे रास्ते पर चल पड़ी। दरवाज़ा खोलने से पहले मैंने एक लंबी साँस ली।

अंदर तेज़ रोशनी थी, जितनी उम्मीद थी उससे ज़्यादा गर्म। ऑफिस छोटा था; एक छोटा,सा वेटिंग एरिया था जिसमें पैड वाले फोल्डिंग चेयर रखे थे, नारंगी धब्बों वाला कमर्शियल कारपेट, दीवारों पर नोटिस और अवॉर्ड्स, और एक बड़ी घड़ी जो बहुत तेज़ टिक,टिक कर रही थी। हर तरफ प्लास्टिक के बड़े गमलों में पौधे थे, जैसे बाहर की हरियाली काफी न हो।

कमरे को एक लंबा काउंटर दो हिस्सों में बाँट रहा था, जिसके ऊपर पेपर्स से भरी टोकरी और रंग,बिरंगे फ्लायर्स चिपके थे। काउंटर के पीछे तीन डेस्क थीं, जिनमें से एक पर एक बड़ी, लाल बालों वाली औरत बैठी थी, चश्मा लगाए हुए। उसने पर्पल टी,शर्ट पहन रखी थी , जिसे देखकर मुझे अपने कपड़े ज़्यादा लगने लगे।

उसने ऊपर देखा।

“Can I help you?”

“मैं इसाबेला स्वान हूँ,” मैंने बताया, और देखा कि उसके चेहरे पर एकदम से पहचान की चमक आ गई। मुझे पहले से ही एक्सपेक्ट किया जा रहा था, शायद गॉसिप का विषय भी थी , चीफ़ की उड़नखटोला एक्स,वाइफ की बेटी, आख़िरकार घर लौट आई।

“Of course,” उसने कहा। उसने अपनी डेस्क पर खतरनाक रूप से ऊँची कागज़ों की ढेर में से मेरे डॉक्यूमेंट्स निकाले।

“यह रहा तुम्हारा शेड्यूल, और स्कूल का नक्शा,” उसने कुछ पेपर्स काउंटर पर लाकर मुझे दिखाए।

उसने मेरे क्लासेज समझाए, नक्शे पर बेस्ट रूट हाईलाइट किया, और एक स्लिप दी जिसे हर टीचर से साइन करवाकर मुझे दिन के अंत में वापस देना था। उसने मुस्कुराकर कहा कि उम्मीद है मुझे फॉर्क्स में अच्छा लगेगा , चार्ली की ही तरह। मैंने भी जितनी हो सकी उतनी सच्ची मुस्कान दी।

जब मैं वापस अपनी ट्रक के पास पहुंची, तो दूसरे छात्र भी आना शुरू हो चुके थे। मैंने स्कूल के आसपास गाड़ी चलाई, ट्रैफिक लाइन के पीछे,पीछे। खुशी हुई यह देखकर कि ज्यादातर कारें मेरी तरह पुरानी थीं, कोई दिखावटी नहीं। घर पर मैं पैराडाइज़ वैली जिले के कुछ कम आय वाले इलाक़ों में रहती थी। वहाँ अक्सर छात्र पार्किंग में नई मर्सिडीज़ या पोर्श जैसी कारें देखना आम था। यहाँ सबसे अच्छी कार एक चमचमाती वोल्वो थी, जो अलग लग रही थी। फिर भी, जैसे ही मैं पार्किंग में रुकी, मैंने इंजन बंद कर दिया ताकि ज़ोर से आवाज़ न हो और ध्यान न जाए।

मैं ट्रक में रखे नक्शे को देखकर उसे याद करने की कोशिश कर रही थी; उम्मीद थी कि पूरा दिन नक्शा हाथ में लेकर घूमना न पड़े। सारी चीजें बैग में डालकर कंधे पर पट्टा डाला और गहरी सांस ली। “मैं कर सकती हूँ,” मैंने खुद से धीरे से कहा। कोई मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएगा। आखिरकार सांस छोड़ी और ट्रक से बाहर निकली।

मैंने अपना चेहरा हुड के नीचे छुपाए रखा, जब मैं पैदल फुटपाथ की ओर बढ़ी, जो किशोरों से भरा था। मेरी साधारण काली जैकेट ध्यान आकर्षित नहीं कर रही थी, ये सोचकर मुझे राहत मिली।

कैफेटेरिया के पास पहुंचकर तीसरी बिल्डिंग आसानी से दिखाई दी। पूर्वी कोने पर सफेद चौकोर में बड़ा काला “3” बना था। जैसे,जैसे मैं दरवाज़े के पास पहुंची, मेरी साँसें तेज़ होने लगीं, जैसे मैं घबराने लगी हूँ। मैंने सांस रोकने की कोशिश की और दो लड़कियों को देखते हुए दरवाज़े से अंदर चली गई।

कक्षा छोटी थी। मेरे सामने वाली लड़कियाँ दरवाज़े के अंदर कोट हटाने लगीं। मैंने भी वैसा ही किया। वे दो लड़कियाँ थीं , एक गोरी, झरनी जैसी, और दूसरी भी फिक्की, हल्के भूरे बालों वाली। कम से कम मेरी त्वचा यहाँ अलग नहीं दिख रही थी।

मैं शिक्षक के पास गई, जो एक लंबे, गंजे बालों वाले आदमी थे, जिनके डेस्क पर नाम था मिस्टर मेसन। उन्होंने मेरा नाम देखकर आश्चर्य से मुझे घूरा , ये अच्छा संकेत नहीं था , और मैं शर्म के मारे तुरंत लाल हो गई। लेकिन कम से कम उन्होंने मुझे कक्षा में सबके सामने परिचय दिए बिना, पीछे एक खाली सीट पर बैठा दिया। पीछे बैठने से सहपाठी मुझे घूर नहीं पाए, लेकिन कुछ ने फिर भी घूरा। मैंने नीचे देख कर शिक्षक द्वारा दी गई पढ़ाई की सूची को ध्यान से पढ़ना शुरू किया। उस सूची में ब्रोंटे, शेक्सपियर, चौसर, फॉकनर जैसे लेखक थे। मैंने ये सब पहले पढ़ रखा था। ये सुनकर थोड़ी राहत मिली… लेकिन साथ ही ये उबाऊ भी था। मैं सोच रही थी कि क्या मेरी माँ मुझे पुराने निबंधों की फाइल भेजेगी या उसे धोखा समझेगी। मैं शिक्षक की बातें सुनते,सुनते अपने मन में ऐसे कई सवाल कर रही थी।

घंटी बजी, जो एक नाक वाली सीटी की तरह आवाज़ कर रही थी, तभी एक लंबा, दुबला लड़का जिसके चेहरे पर दाने थे और बाल तेल की तरह काले, मेरी ओर झुका और बोला,

“तुम Isabella Swan हो ना?” वह बहुत मददगार, शतरंज क्लब वाला लड़का लग रहा था।

“बेला,” मैंने उसे सही किया। उसके आस,पास तीन,चार छात्र मेरी ओर देखने लगे।

“अगली क्लास कहाँ है?” उसने पूछा।

मुझे अपना बैग देखना पड़ा।

“अरे, गवर्नमेंट, जेफरसन के साथ, बिल्डिंग छह में।”

चारों तरफ देखने की कोशिश की लेकिन सभी की निगाहें मुझ पर थीं।

“मैं बिल्डिंग चार जा रहा हूँ, तुम्हें रास्ता दिखा सकता हूँ…” वह ज़्यादा मददगार था।

“मैं एरिक हूँ,” उसने अपना परिचय दिया।

मैं हिचकिचाते हुए मुस्कुराई।

“धन्यवाद।”

हमने अपनी जैकेटें लीं और बारिश में बाहर निकले, जो तेज हो गई थी। मुझे लगा जैसे हमारे पीछे कुछ लोग इतने करीब चल रहे हैं कि मेरी बातें सुन सकते हैं। उम्मीद थी मैं पागल नहीं हो रही।

“तो, ये जगह फीनिक्स से बहुत अलग है, है ना?” उसने पूछा।

“बहुत,” मैंने कहा।

“वहाँ ज्यादा बारिश नहीं होती, है ना?”

“साल में तीन,चार बार।”

“वाह, कैसा लगता होगा?” उसने जिज्ञासु होकर पूछा।

“धूप,” मैंने बताया।

“तुम ज़्यादा सुनहरी नहीं लगती।”

“मेरी माँ आधी एल्बिनो हैं।”

वह मेरा चेहरा देखकर थोड़ा हिचकिचाया, और मैं सोचने लगी कि यहाँ के बादल और मेरी मज़ाकिया बातों का मेल शायद नहीं होगा। कुछ महीनों में मैं व्यंग्य करना भूल जाऊंगी।

हम कैफेटेरिया के पीछे, जिम के पास दक्षिणी इमारतों की तरफ बढ़े। एरिक मुझे सीधे दरवाज़े तक लेकर गया, जो साफ़ चिह्नित था।

“शुभकामनाएँ,” उसने कहा जब मैंने दरवाज़ा छुआ।

“शायद हमारी और क्लासें साथ हों।” वह आशावान था।

मैंने हल्की मुस्कान दी और अंदर चली गई।

बाकी सुबह भी लगभग इसी तरह बीती। मेरा ट्रिग्नोमेट्री शिक्षक, मिस्टर वार्नर, जिन्हें मैं पहले से ही इस विषय की वजह से नापसंद करती थी, अकेले उन्होंने मुझे कक्षा में खड़ा होकर खुद को परिचय देने को कहा। मैं हकलाई, लाल हुई, और अपनी जूतों पर ठोकर खाते हुए अपनी सीट पर बैठी।

दो क्लासों के बाद, मैं कई चेहरों को पहचानने लगी। हमेशा कोई न कोई हिम्मत वाला मुझसे मिलकर पूछता कि मुझे फॉर्क्स कैसा लग रहा है। मैं कूटनीतिक बनने की कोशिश करती, लेकिन ज़्यादातर झूठ बोलती। कम से कम अब नक्शे की ज़रूरत नहीं पड़ती थी।

एक लड़की दोनों ट्रिग्नोमेट्री और स्पैनिश क्लास में मेरे बगल में बैठती और लंच के लिए मेरे साथ चलती। वह छोटी थी, मेरी पांच फुट चार इंच से कई इंच छोटी, लेकिन उसके घुंघराले काले बाल हमारी ऊंचाई का फर्क कम कर देते थे। उसका नाम याद नहीं था, इसलिए मैं मुस्कुराकर उसकी बातें सुनती रही।

हम एक बड़े टेबल के आखिर में बैठे, जहाँ उसके कई दोस्त थे, जिन्हें उसने मुझसे मिलवाया। मैं उनके नाम भूल गई जैसे ही उसने बताया। वे उसकी हिम्मत से प्रभावित लग रहे थे जो उसने मुझसे बात की। अंग्रेज़ी के लड़के, एरिक ने कमरे के पार से हाथ हिलाया।

और यहीं, कैफेटेरिया में, उन सात जिज्ञासु अजनबियों से बातचीत करने की कोशिश करते हुए, मैंने पहली बार उन्हें देखा।

वे कैफेटेरिया के कोने में बैठे थे, जहाँ से मैं सबसे दूर था। पाँच लोग थे। वे बात नहीं कर रहे थे, न ही खाना खा रहे थे, हालांकि उनके सामने खाना रखा था जिसे उन्होंने छुआ भी नहीं था। वे मेरी तरफ ऐसे नहीं देख रहे थे जैसे बाकी छात्र देखते थे, इसलिए उन्हें देखना सुरक्षित था। लेकिन ये सब बातें नहीं थीं जो मेरी नजरें उनके पास टिक गईं।

वे एक जैसे नहीं दिखते थे। तीन लड़कों में से एक बड़ा था , मांसपेशियों से भरा, एक गंभीर वजन उठाने वाले जैसा, जिसके बाल काले और घुंघराले थे। दूसरा लंबा, दुबला लेकिन मजबूत था, और सुनहरे बालों वाला। तीसरा लंबा, कम मांसपेशियों वाला, अव्यवस्थित, कांस्य रंग के बालों वाला था। वह लड़कों से ज़्यादा लड़कपन वाला दिखता था, जो कॉलेज या यहाँ तक कि शिक्षक लग सकते थे।

लड़कियाँ एक,दूसरे की विपरीत थीं। लंबी लड़की बड़ी और आकर्षक थी। उसकी काया सुंदर थी, बिलकुल स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड के स्विमसूट अंक की कवर गर्ल जैसी, जिससे आसपास की हर लड़की की आत्म,सम्मान को चोट लगती। उसके सुनहरे बाल कमर तक लहराते थे। छोटी लड़की नन्ही, बहुत पतली, छोटे,छोटे चेहरे वाली थी। उसके गहरे काले बाल छोटे और हर तरफ उछले हुए थे।

और फिर भी, वे सभी एक जैसे ही थे। उन सबकी त्वचा चॉक जैसी सफेद थी,इस बिना धूप वाले कस्बे के सभी छात्रों में सबसे ज़्यादा पीली। मुझसे भी ज़्यादा, जो खुद को अल्बिनो मानती थी। उनके बालों के रंग अलग,अलग थे, लेकिन उनकी आँखें बेहद गहरी थीं। और उन आँखों के नीचे गहरे साये थे,बैंगनी, जैसे चोट के निशान। मानो वे सब पूरी रात सोए ही न हों, या जैसे किसी टूटी हुई नाक से उबर रहे हों। हालांकि उनकी नाक, और बाकी सारे नैन,नक्श, सीधे, परिपूर्ण और तीखे थे।

लेकिन यही वजह नहीं थी कि मेरी नज़र उनसे हट नहीं रही थी।

मैं उन्हें इसीलिए घूर रही थी क्योंकि उनके चेहरे,इतने अलग, फिर भी इतने एक जैसे,इतने चौंका देने वाले, अमानवीय रूप से सुंदर थे। वे ऐसे चेहरे थे जिन्हें आप केवल फैशन पत्रिका के एअरब्रश किए हुए पन्नों पर देखते हैं। या फिर किसी पुराने महान चित्रकार द्वारा बनाए गए किसी स्वर्गदूत के चेहरे के रूप में। यह तय करना मुश्किल था कि उनमें सबसे सुंदर कौन है,शायद वह परिपूर्ण सुनहरे बालों वाली लड़की, या वह कांस्य,जैसे बालों वाला लड़का।

वे सभी कहीं और देख रहे थे,एक,दूसरे से दूर, बाकी छात्रों से दूर, और किसी खास दिशा में भी नहीं, जितना मैं देख सकी। तभी वह छोटी सी लड़की अपनी थाली उठाकर खड़ी हुई,बंद शीतल पेय, बिना कटा हुआ सेब,और मंच पर चलने वाली नर्तकी जैसी फुर्ती से बाहर चली गई। मैं उसकी पतली, नृत्य जैसी चाल पर हैरान हो गई, जब तक कि उसने थाली कूड़ेदान में नहीं डाली और पिछले दरवाज़े से फिसलती हुई निकल नहीं गई, उस गति से भी तेज़, जितनी मैं संभव मानती थी। मेरी नज़र फिर से बाकी पर पड़ी, जो अब भी वैसे ही जमे हुए बैठे थे।

“वे कौन हैं?” मैंने अपनी स्पेनिश कक्षा वाली लड़की से पूछा, जिसका नाम मैं भूल चुकी थी।

जैसे ही उसने ऊपर देखा कि मैं किसकी बात कर रही हूं,हालाँकि शायद मेरे लहजे से वह पहले ही समझ गई थी,तभी वह दुबला,पतला, लड़कों जैसा दिखने वाला, शायद सबसे छोटा लड़का अचानक उसकी ओर देखने लगा। बस एक पल के लिए। फिर उसकी गहरी आँखें मेरी ओर घूम गईं।

उसने तुरंत निगाह फेर ली, मुझसे भी तेज़ी से, और मैं शर्म से लाल होते हुए तुरंत नीचे देखने लगी। उस एक क्षणिक झलक में, उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था,जैसे उसने अनायास ही ऊपर देखा हो, मानो उसका नाम पुकारा गया हो, लेकिन पहले ही तय कर लिया हो कि जवाब नहीं देना है।

मेरी पड़ोसिन झेंपकर हँस दी, और मेरी ही तरह अपनी नजरें मेज़ पर गड़ा दीं।

“वे हैं एडवर्ड और एमेट कुल्लन, और रोज़ाली और जैस्पर हाले। जो चली गई थी वह ऐलिस कुल्लन थी; वे सब डॉक्टर कुल्लन और उनकी पत्नी के साथ रहते हैं।” उसने यह बात बहुत धीमी आवाज़ में कही।

मैंने कनखियों से उस सुंदर लड़के की ओर देखा, जो अब अपनी थाली को देख रहा था, अपने लंबे, सफेद हाथों से एक बैगेल को टुकड़ों में तोड़ रहा था। उसके होंठ बहुत तेजी से हिल रहे थे, लेकिन वे मुश्किल से खुल रहे थे। बाकी तीनों अब भी कहीं और देख रहे थे, फिर भी मुझे महसूस हुआ कि वह उनसे धीरे,धीरे कुछ कह रहा था।

अजीब, अलोकप्रिय नाम थे। दादा,दादी के ज़माने वाले। लेकिन शायद यहाँ पर ये नाम प्रचलित हों,छोटे शहरों के नाम? आखिरकार मुझे याद आया कि मेरी पड़ोसी का नाम जेसिका था,एकदम आम। मेरे पुराने स्कूल में इतिहास की कक्षा में दो जेसिका थीं।

“वे… बहुत अच्छे दिखते हैं,” मैंने साफ़,साफ़ बेहद मामूली शब्दों में कहा।

“हाँ!” जेसिका फिर से हँस पड़ी।

“लेकिन वे सब आपस में हैं,एमेट और रोज़ाली, और जैस्पर और ऐलिस मेरा मतलब है। और वे सब साथ रहते हैं।” उसके स्वर में छोटे शहर की चकित आलोचना थी। लेकिन अगर मैं ईमानदारी से कहूं, तो मानना पड़ेगा कि फीनिक्स में भी यह चर्चा का विषय बनता।

“इनमें से कुल्लन कौन हैं?” मैंने पूछा। “वे एक जैसे नहीं दिखते…”

“ओह, वे सगे नहीं हैं। डॉक्टर कुल्लन बहुत जवान हैं, बीस या तीस के आसपास। ये सब गोद लिए हुए हैं। हाले भाई,बहन हैं,जुड़वां,दोनों गोरे बालों वाले, और ये पालित संतान हैं।”

“वे पालित बच्चों की उम्र से थोड़े बड़े नहीं हैं?”

“अब हैं, जैस्पर और रोज़ाली दोनों अठारह साल के हैं, लेकिन वे मिसेज़ कुल्लन के साथ तब से हैं जब वे आठ साल के थे। शायद वह उनकी मौसी हैं या कुछ ऐसा।”

“ये बहुत अच्छा है,इतनी कम उम्र में इतने बच्चों की परवरिश करना।”

“हूँ, शायद,” जेसिका ने अनमने ढंग से कहा, और मुझे लगा कि उसे डॉक्टर और उनकी पत्नी से कोई जलन है। वह जो निगाहें उनके बच्चों की ओर फेंक रही थी, उससे यही लगा।

“मुझे लगता है कि मिसेज़ कुल्लन खुद माँ नहीं बन सकतीं,” उसने जोड़ा, मानो इससे उनका त्याग थोड़ा कम हो जाता हो।

इस पूरी बातचीत के दौरान मेरी नज़र बार,बार उस मेज़ पर जाती रही जहाँ वह अजीब परिवार बैठा था। वे अब भी दीवारों को देख रहे थे और कुछ भी नहीं खा रहे थे।

“क्या वे हमेशा से फॉर्क्स में रहते हैं?” मैंने पूछा। मुझे यकीन था कि मैंने उन्हें अपनी गर्मियों की यात्राओं में कभी नहीं देखा।

“नहीं,” उसने ऐसे कहा जैसे यह बात बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए थी, यहाँ तक कि मेरे जैसे नए आगंतुक के लिए भी। “वे दो साल पहले अलास्का से यहाँ आए हैं।”

मैंने एक साथ दया और राहत महसूस की। दया इसलिए कि, जितने सुंदर वे थे, उतने ही अलग और बाहर के भी लगते थे। और राहत इसलिए कि मैं यहाँ अकेली नई नहीं थी,और निश्चित रूप से सबसे रोचक भी नहीं।

जब मैं उन्हें देख रही थी, कुल्लन परिवार का सबसे छोटा सदस्य ऊपर देखता है और इस बार मेरे सीधे संपर्क में आता है,उसकी आँखों में स्पष्ट जिज्ञासा थी। जैसे ही मैंने तुरंत अपनी नज़रें फेर लीं, मुझे लगा उसकी निगाहों में किसी अधूरी उम्मीद की छाया थी।

 “वह लड़का कौन है, जिसके बाल भूरे,लाल हैं?” मैंने पूछा। मैंने कोने से झांक कर देखा, वह अब भी मुझे घूर रहा था, लेकिन बाकी छात्रों की तरह नहीं,उसके चेहरे पर थोड़ी हताशा थी। मैंने फिर से नीचे देख लिया।

“वह एडवर्ड है। वह बेशक सुंदर है, लेकिन समय मत बर्बाद करो। वह किसी से डेट नहीं करता। लगता है यहाँ की कोई लड़की उसे आकर्षक नहीं लगती।” उसने नाक सिकोड़ी, जलन की गंध साफ़ थी। मैंने सोचा, शायद उसने खुद कोशिश की थी और ठुकरा दी गई थी।

मैंने मुस्कान छुपाने के लिए होंठ काटे। फिर मैं उसकी ओर दोबारा देखने लगी। उसका चेहरा दूसरी ओर था, लेकिन मुझे लगा जैसे उसका गाल थोड़ा ऊपर उठा था,मानो वह भी मुस्कुरा रहा हो।

कुछ मिनटों बाद, वे चारों एक साथ मेज़ से उठे। वे सभी स्पष्ट रूप से बहुत ही सुंदर चाल से चल रहे थे,यहाँ तक कि वह लंबा और ताकतवर लड़का भी। उन्हें देखना विचलित कर देने वाला था। एडवर्ड ने मुझे फिर नहीं देखा।

 मैं जेसिका और उसकी दोस्तों के साथ मेज़ पर उससे ज़्यादा समय बैठी रही, जितना मैं अकेली होती तो बैठती। मैं अपने पहले दिन कक्षा में देर नहीं होना चाहती थी। मेरी एक नई परिचिता, जिसने शालीनता से मुझे याद दिलाया कि उसका नाम एंजेला है, अगले घंटे मेरी ही जीवविज्ञान,द्वितीय की कक्षा में थी। हम साथ,साथ चुपचाप चल पड़े। वह भी शर्मीली थी।

जब हम कक्षा में पहुँचे, एंजेला जाकर एक काले टॉप वाली प्रयोगशाला मेज़ पर बैठ गई, जैसी मैं पहले से जानती थी। उसके पास पहले से ही एक साथी था। असल में, हर मेज़ भरी हुई थी सिवाय एक के।

बीच की कतार में, मैंने एडवर्ड कुल्लन को पहचाना उसके असामान्य बालों से,वह अकेली खाली सीट के पास बैठा था।

 जब मैं शिक्षक को अपनी पर्ची देने और हस्ताक्षर करवाने गई, मैं उसे चोरी,छिपे देख रही थी। जैसे ही मैं पास से गुज़री, वह अचानक अपनी कुर्सी में सख्ती से सीधा हो गया। उसने मुझे फिर से घूरा, इस बार उसकी आँखों में एक अजीब, शत्रुतापूर्ण, क्रोधित भाव था। मैं चौंक गई, और एक बार फिर लाल हो गई। मैं रास्ते में रखी एक किताब से टकरा गई और खुद को एक मेज़ के कोने का सहारा देकर संभाला। वहाँ बैठी लड़की खिलखिला दी।

मैंने देखा था कि उसकी आँखें कोयले जैसी काली थीं।

 श्री बैनर ने मेरी पर्ची पर हस्ताक्षर किए और बिना किसी औपचारिकता के मुझे किताब पकड़ा दी। मैं समझ गई कि उनसे मेरी अच्छी बनेगी। और स्वाभाविक रूप से, उन्हें मुझे उसी एक खाली सीट पर भेजना पड़ा,कक्षा के ठीक बीच में, एडवर्ड के पास।

मैं उसकी दी हुई वह शत्रुता भरी निगाह याद करते हुए, भ्रमित मन से सिर झुकाए उसकी बगल में जाकर बैठ गई।

 मैंने नज़र उठाए बिना ही अपनी किताब मेज़ पर रखी और अपनी जगह पर बैठ गई, लेकिन आँखों के कोने से मैंने देखा कि उसकी मुद्रा बदल गई थी। वह मुझसे दूर झुक कर बैठा था, कुर्सी के एकदम किनारे पर, और ऐसा चेहरा मोड़कर बैठा था जैसे उसे कोई बदबू आ रही हो। मैंने चुपके से अपने बालों की खुशबू सूँघी। वे मेरी पसंदीदा स्ट्रॉबेरी शैम्पू की खुशबू दे रहे थे , एक बिल्कुल सामान्य सी, अच्छी खुशबू।

 मैंने अपने बालों को दाहिनी तरफ गिरा लिया, ताकि हमारे बीच एक गहरा परदा बन जाए, और फिर शिक्षक की बातों पर ध्यान देने की कोशिश करने लगी।

दुर्भाग्यवश, विषय कोशिकीय शरीरक्रिया था , एक ऐसा विषय जो मैं पहले ही पढ़ चुकी थी। फिर भी मैंने सावधानीपूर्वक नोट्स बनाए, अपनी निगाहें हमेशा नीचे रखते हुए।

 मैं अपने आप को कभी,कभी उस अजीब लड़के की ओर बालों की ओट से देखने से रोक नहीं पा रही थी। पूरे समय वह उसी सख्त मुद्रा में बैठा रहा , कुर्सी के किनारे, मुझसे जितना दूर हो सके उतना दूर। मैंने देखा कि उसका बायाँ हाथ मुट्ठी में कसकर भींचा हुआ था, उसकी सफेद त्वचा के नीचे नसें उभर आई थीं। उसने अपनी सफेद कमीज़ की बाँहें कोहनी तक चढ़ा रखी थीं, और उसके बाँहों की मांसपेशियाँ उसकी पतली काया के बावजूद आश्चर्यजनक रूप से सख़्त और मज़बूत दिख रही थीं।

 कक्षा का समय बहुत धीरे,धीरे बीतता प्रतीत हो रहा था। शायद इसलिए क्योंकि दिन का अंत निकट था, या शायद इसलिए कि मैं उसकी मुट्ठी खुलने का इंतज़ार कर रही थी , जो कभी नहीं खुली। वह इतना स्थिर बैठा था कि ऐसा लग रहा था जैसे वह साँस भी नहीं ले रहा हो।

उसके साथ ऐसा क्या ग़लत था? क्या यह उसका सामान्य व्यवहार था? मैंने लंच में जेसिका की ईर्ष्या को शायद बहुत जल्दी गलत समझ लिया था।

यह मुझसे जुड़ा नहीं हो सकता , वह तो मुझे जानता तक नहीं।

 मैंने एक बार फिर उसकी ओर देखा, और फिर पछता गई। वह मुझे फिर से घूर रहा था , उसकी आँखों में घृणा साफ़ झलक रही थी। मैंने तुरंत नज़रें फेर लीं, अपनी कुर्सी से सटती चली गई। अचानक दिमाग़ में आया , “अगर नज़रों से मारना मुमकिन होता…”

 उसी पल घंटी बजी, मैं चौंक कर उछल गई, और एडवर्ड कलन अपनी सीट से खड़ा हो गया। वह अत्यंत लचीलेपन के साथ उठा , जितना मैं सोचती थी उससे कहीं ज़्यादा लंबा था , और मेरी ओर पीठ किए बिना, बाकी सभी के उठने से पहले ही दरवाज़े से बाहर निकल गया।

मैं अपनी सीट पर जमी रही, शून्य में ताकती। वह कितना बेरुखा था। यह तो सरासर नाइंसाफ़ी थी। मैंने धीरे,धीरे अपना सामान समेटना शुरू किया, गुस्से को काबू में रखने की कोशिश करती रही, ताकि मेरी आँखों से आँसू न निकल जाएँ। गुस्सा आते ही मेरी आँखें भर आती थीं , ये मेरी सबसे शर्मनाक आदतों में से एक थी।

“क्या तुम इसाबेला स्वान हो?” एक लड़के की आवाज़ आई।

मैंने ऊपर देखा , एक प्यारा सा, बच्चे जैसा चेहरा, बालों को बड़े करीने से जिल लगाकर खड़ा किया हुआ , मुस्कुराता हुआ मेरी ओर देख रहा था। कम से कम उसे मेरी कोई बदबू नहीं आई थी।

“बेला,” मैंने मुस्कराते हुए सुधार किया।

“मैं माइक हूँ।”

“नमस्ते, माइक।”

“क्या अगली कक्षा ढूँढ़ने में मदद चाहिए?”

“मैं तो जिम जा रही हूँ। लगता है, मुझे रास्ता मिल जाएगा।”

 “मेरी अगली क्लास भी वहीं है।” वह इतना उत्साहित हो गया जैसे कोई बड़ी बात हो गई हो, जबकि इस छोटे से स्कूल में यह कोई ताज्जुब की बात नहीं थी।

 हम साथ,साथ जिम की ओर चल दिए। वह काफ़ी बातूनी था , सारी बातचीत लगभग उसी ने की, जिससे मुझे ज़्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ी। वह दस साल की उम्र तक कैलिफोर्निया में रहा था, इसलिए उसे धूप के बारे में मेरी भावनाएँ समझ आ रही थीं। पता चला कि वह मेरी अंग्रेज़ी की कक्षा में भी था। वह अब तक का सबसे अच्छा व्यक्ति था जिससे मैं आज मिली थी।

लेकिन जैसे ही हम जिम में दाखिल होने वाले थे, उसने पूछा, “तो तुमने एडवर्ड कलन को पेंसिल से छेद दिया था क्या? मैंने उसे कभी ऐसा बर्ताव करते नहीं देखा।”

मैं सिहर गई। तो मैं अकेली नहीं थी जिसने उसका अजीब व्यवहार नोट किया था। और शायद यह उसका सामान्य व्यवहार नहीं था। मैंने मूर्ख बनने का नाटक करने का निश्चय किया।

“क्या वही लड़का था जो बायोलॉजी में मेरी बगल में बैठा था?” मैंने मासूमियत से पूछा।

“हाँ,” उसने कहा। “लग रहा था जैसे उसे कोई दर्द हो रहा हो।”

“मुझे कुछ पता नहीं,” मैंने जवाब दिया। “मैंने उससे कोई बात भी नहीं की।”

“वो अजीब लड़का है।” माइक मेरे साथ खड़ा रहा, ड्रेसिंग रूम जाने की बजाय। “अगर मैं तुम्हारे बगल में बैठा होता, तो ज़रूर बात करता।”

मैंने मुस्कुरा कर उसकी बात का जवाब दिया और फिर लड़कियों के चेंजिंग रूम की ओर बढ़ गई। वह दोस्ताना था, उसकी नज़रें मुझे सराह रही थीं। लेकिन यह मेरी चिढ़ को कम नहीं कर सका।

जिम टीचर, कोच क्लैप ने मुझे यूनिफ़ॉर्म तो दे दी, लेकिन आज के लिए पहनने को नहीं कहा। मेरे पुराने स्कूल में दो साल की पी.ई. ही ज़रूरी थी, लेकिन यहाँ चारों साल अनिवार्य थी। फॉर्क्स मेरे लिए सचमुच धरती पर नरक जैसा था।

मैंने एक साथ चल रहे चार वॉलीबॉल मैच देखे। मुझे वो सारे ज़ख्म याद आ गए जो मैंने वॉलीबॉल खेलते हुए झेले थे , और दिए थे , और मुझे हल्की,सी मिचली आने लगी।

आख़िरकार अंतिम घंटी बजी। मैं धीरे,धीरे दफ़्तर की ओर चली, अपने दस्तावेज़ जमा कराने के लिए। बारिश अब थम गई थी, लेकिन हवा तेज़ थी और ठंडी भी। मैंने अपने बाज़ुओं को अपने चारों ओर लपेट लिया।

जब मैं गर्म ऑफिस में दाखिल हुई, तो तुरंत बाहर जाने का मन करने लगा।

एडवर्ड कलन काउंटर के सामने खड़ा था। मैंने उसकी बिखरी कांस्य रंग की लटों को फिर से पहचान लिया।

 उसे मेरी मौजूदगी का आभास नहीं हुआ। मैं पिछली दीवार से सटकर खड़ी हो गई, जब तक कि रिसेप्शनिस्ट खाली न हो जाए।

 वह उससे किसी बात पर बहस कर रहा था , उसकी आवाज़ धीमी और आकर्षक थी। मैंने जल्दी ही बात समझ ली , वह छठी घंटे की बायोलॉजी की कक्षा किसी और समय पर बदलवाना चाह रहा था , कोई भी समय चलेगा, बस बदल जाए।

  मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब मुझसे जुड़ा था। ज़रूर कुछ और कारण रहा होगा। हो सकता है, बायोलॉजी में मेरे आने से पहले ही कुछ हुआ हो। उसकी वो घृणा भरी नज़रें किसी और परेशानी के कारण रही हों। ऐसा संभव नहीं था कि कोई अनजान मुझे देखकर इतनी नफ़रत से भर जाए।

 तभी दरवाज़ा फिर खुला और ठंडी हवा का झोंका कमरे में घुस आया, डेस्क की कागज़ उड़ाने लगा, और मेरे बालों को चेहरे पर फैला दिया। एक लड़की अंदर आई, एक पर्ची डाली और बाहर चली गई। लेकिन एडवर्ड कलन की पीठ तन गई, और वह धीरे,धीरे मुड़ा , उसकी आँखें मुझ पर टिकी थीं, उसके चेहरे पर वही अतिरंजित सुंदरता , लेकिन इस बार उसकी नज़रों में नफ़रत और गुस्सा साफ़ था। एक पल के लिए, मुझे सच्चे डर का एहसास हुआ , मेरी बाँहों के रोएँ खड़े हो गए। उसकी वह नज़र भले ही एक पल के लिए रही हो, लेकिन वह बर्फ़ीली हवा से ज़्यादा ठंडी थी। 





   0
0 Comments