"पास होकर भी साथ नही है"
तू पास होकर भी क्यों साथ नहीं है रिश्ता तो है, मगर अब वो बात नहीं है। नज़रों के सामने है तू हर पल, पर तेरे होने का एहसास नहीं है।
तेरी नज़रें अब मुझसे गिला करती हैं, छिप-छिप कर किसी और से मिला करती हैं। बातें तेरी अब भी सच्ची सी लगती हैं, मगर उनमें पहले जैसे जज़्बात नहीं हैं, तू पास होकर भी क्यों साथ नहीं है।
दगा करती हैं अब अदाएं तेरी, पर आंखें तेरी सच बयान करती हैं। मालूम है मुझे तेरे हर धोखे का, पर ज़ुबां अब भी कहने से डरती है।
दिल मेरा टूटा है, पर अफ़सोस नहीं, दर्द है पर उतना खास नहीं, तू पास होकर भी क्यों साथ नहीं है ।