एक वक्त ऐसा-14-Oct-2025
एक वक्त ऐसा
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आता एक वक्त ऐसा !
जब खत्म हो जाती है! परिवार में उसकी "अहमियत "
एक झटके में! अपनों के नज़रों में दूर कहीं रात की
घनी अंधेरी में खो जाती है",कद्र "उसकी।
बन जाती है, 'वो ' ! अपनों के माथे की बोरासी !
घर का वो ! "मार्गदर्शी" वो खरोंदा का एक
लौता "शहंशाह " । है, उसकी आंखों में लहू
के आशु! खींची है माथे पर लकीर एक पुरानी
यादों कि!
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आता एक वक्त ऐसा!
था! कभी एक वक्त "मदहोशी" की।
जब 'मतवाली' हवाओं में! गुंजा करती थीं।
तारिफों की सुरीली संगीत।
कानों में बज उठतीं थीं,सहनाईयां! " तालियों " कि।
जब निकलती 'सवारी' गल्लियों की उन टेढ़ी - मेढ़ी
राहों से" राम सलाम "की होती थीं, बारिश!
एक मिट्ठी "मुलाकातों" की।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आता एक वक्त ऐसा!
नगर का वो 'बादशाह वो शहंशाह' पड़ा है आज
प्लास्टिक की टुट्टी कुर्सी पर बेजान ,बेकार ।
उमड़ रही है ह्रदय में दर्द की एक सैलाब!
ख़ामोश खड़ी है आज एक चेहरा।
न समझ आयी ये ज़िन्दगी न कभी कोई समझ
पायेगा ये ज़िन्दगी को!जिन अपनों को अपना
मान कर बसायीं मैंने एक 'जिंदगी ' बनायी मैंने
एक मिट्टी का 'खरोंदा ' जिनके लिए लुटायी मैंने
बुढ़ापे का सहारा 'संपति 'एक जमा पूंजी अपनी!
खोयी मैंने "जवानी" अपनी पत्थरों के उन खादानों में।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आता एक वक्त ऐसा!
आज उन्हीं की आंखों में चुभने लगा मैं।
बन कर एक "तिनका "! जिनके लिए कभी
बहायी थी, मैंने कतरा-कतरा लहू अपना ।
कभी अपनों को साथ हंसते - खेलते यूं !
छोटी - छोटी बातों पर खुशियां मनाते देख
मन में जगी थी, एक लालसा कुछ वर्ष और
जीने की थी! एक तमन्ना "जगरनाथ स्वामी की दर्शन
पर पुरी "जाने की। था! एक सपना आंखों में!
संग अपनों के 'समुद्र'की लहरों से एक बार ही
सही टकरा आता मैं।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आता एक वक्त ऐसा!
टुट गई वो 'लालसा' बिखेर गया वो आंखों
का 'सपना'!देख कर अपनों का पल - पल
बदलते रंग गिरगिट की तरह ।
बहने लगी नेत्रों से किमती मोतियों की
वो धारा।चीख उठी है,मन एक उच्ची स्वर में!
प्रभु श्री राम जल्द बुलावा भेजे अपने द्वार में।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आता एक वक्त ऐसा।