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बचपन

" बचपन "
नासमझ हूं मुश्किल है समझ पाना " बचपन " था मेरा कितना सयाना
 मासूमियत भरा अल्हड़ और बेबाक़ी
ज़रा ज़रा मस्तमौला थोड़ा सा दीवाना
जवानी रहती है भागदौड़ की 
जीने की ख्वाहिशें रंग बिरंगी 
और मेरा उसको न संभाल पाना
आहिस्ता सी तेज़ सरकती उम्र की गिनती
जानकर लेकिन आप ही उसे भूलाना
थका जब आज थोड़ा रुकी और याद आया
बचपन में दोस्तों का बेतुका सा शायराना
दोपहर की शाम और शाम का रात होना,
फिर भी निडरता से बाहर ही खेलते जाना
उसपर मां की पुकार और लाड़ से थपथपाना
सुबह बिन पढ़े ही स्कूल को चले जाना
टीचर की डांट कर अनसुनी बातों की धूल उड़ाना,
यारों सँग पक्के वादों की झूठी कसमें कहा जाना
कितने सूंदर दिन थे वो, हर मौसम कितना रहता था सुहाना
उफ़्फ़... 
कितना प्यारा बचपन था हमारा
हर दिन और महीनों का  बेवज़ह ही खत्म  हो जाना
चाहूं ओर थोड़ा सा बचपन के साथ फिर से जाना
बेवजहों है आज  की ये जिम्मेदारियां
इनसे ही बच निकलूं कैसे  फिर चाहूं भाग जाना
बुढ़ापा बुलाने लगे जब दबें पांव हौले हौले से
नहीं चाहूं उस और फिर जाना
थोड़ी सी ही सही ले जा जिंदगी वहाँ
फिर से उस सिरफ़िरे सुकूँ में
जी भर चाहूं हंसना और गुदगुदाना
बचपन था मेरा सयाना ।।

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